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एकता शक्ति फाउंडेशन को मिला है सत्ता का सरंक्षण, डकार जाती है बच्चों का भोजन और उसकी गुणवत्ता
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हरनौत के विधायक व पूर्व शिक्षा मंत्री हरिनारायण सिंह का संरक्षण, उनके गांव के पैत्रिक जमीन पर बना है मिड डे मिल किचेन प्रोजेक्ट भवन
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कहने को मिलता है उन्हें 20 हजार रुपये मासिक किराया, लेकिन प्रोजेक्ट में है उनकी पूंजीगत हिस्सेदारी
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तलवे चाटते हैं विभागीय अधिकारी, हर मामले में गढ़ दी जाती है उल्टी कहानी
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प्रोजेक्ट किचेन से स्कूल तक भोजन पहुंचाने में लगता है काफी समय, इस दौरान मेंढ़क पकने सा गर्म भोजन रहने का सबाल नहीं
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उपरी दबाव में जिला प्रशासन ने मामले का खुलासा करने वाले रसोईया और मास्टरों पर ही गिरा दी गाज, ताकि कहीं कोई मुंह न खोले
खबर है कि जिले के चंडी प्रखंडान्तर्गत उत्क्रमित मध्य विद्यालय,जलालपुर के मध्याह्न भोजन में मेंढक पाए जाने के मामले में प्रभारी प्रधानाध्यापक को निलंबित करते हुये रसोइया को 10 दिनों के अंदर हटाने का निर्देश दिया गया है। बिना सूचना के स्कूल से चले गए शिक्षक धर्मेंद्र कुमार और मंटू कुमार कुणाल के वेतन पर रोक लगाते हुए स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश देते हुए अनुशासनिक कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।
यह कार्रवाई डीएम के निर्देश पर गठित तीन सदस्यीय जांच दल के रिपोर्ट के आधार पर की गई है। जांच दल में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना, शिक्षा, बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी मध्याह्न भोजन शामिल थे। इनके ज्वाइंट रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया इस मामले में एनजीओ द्वारा आपूर्ति भोजन में मरा मेंढक खाना बनाने पर गिरने की आशंका से इनकार किया गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भोजन वायलर में तैयार होता है और केन में पैक कर गर्म स्थिति में ही विद्यालय को दिया जाता है। इस स्थिति में मेंढक रहने पर उसका सभी अंग भोजन में मिल जाएगा।
प्रधानाध्यापक, शिक्षक और रसोईया के बयान से स्पष्ट होता है कि खाने में मृत मेंढक विद्यालय परिसर में ही गिरा है और इसके लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रधानाध्यापक जिम्मेवार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार प्रधानाध्यापक, रसोईया और बिना सूचना के गायब दो शिक्षकों को दोषी पाया गया है। जांच दल ने कहा है कि यह गंभीर और विद्यालय के बच्चों के जीवन का प्रश्न है।
उधर जिले के तीन चंडी, नगरनौसा, थरथरी सरीखे प्रखंड क्षेत्रों के स्कूलों में मध्यान भोजन आपूर्ति करने वाली एनजीओ की भूमिका को भी संदेहास्पद मानते हुए जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की गई है। जांच दल को एनजीओ द्वारा भोजन बनाने के स्थल की जांच, भोजन बनाने की प्रक्रिया की जांच कर तीन दिनों के अंदर ज्वाइंट रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है ताकि एनजीओ की भूमिका स्पष्ट हो सके। इस जांच दल में हिलसा अनुमंडल के एसडीओ, भूमि सुधार उप समाहर्ता और वरीय उप समाहर्ता राम बाबू को शामिल है।
उपरोक्त तरह के मीडिया में आई अधिकारिक खबरों से कई तरह के संदेह उत्पन्न होते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि नालंदा जिले के तीन प्रखंडों क्षेत्रों के स्कूलों में एकता शक्ति फाउंडेशन नामक एनजीओ द्वारा मध्यान्न भोजन आपूर्ति में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ियां बरती जा रही है। निर्धारित मापदंड के अनुरुप न तो भोजन पकाया जाता है और न ही वाहनों द्वारों सुरक्षात्मक तरीके से स्कूलों तक पहुंचाया जाता है। ये आम शिकायते हैं लेकिन कभी कोई कार्रवाई कहीं से भी नहीं होती है। इसका एकमात्र कारण है कि एकता शक्ति फाउंडेशन एनजीओ का किचेन सिस्टम के संचालन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से हरनौत के जदयू विधायक एवं पूर्व शिक्षा मंत्री हरिनारायण सिंह का संरक्षण प्राप्त है।
बता दें कि एकता शक्ति फाउंडेशन एनजीओ का यह प्रोजेक्ट हरिनाराय सिंह के खानदानी जमीन पर उस समय लांच किया गया, जब वे पूर्ववर्ती भाजपा-जदयू के नीतिश सरकार में शिक्षा मंत्री थे। कहा जाता है कि एन.एच 30ए किनारे महमदपुर गांव में जमीन लीज की एवज में 20 हजार प्रति माह विधायक के खाते में जाता है। महमदपुर गांव हरिनारायण सिंह का पैत्रिक गांव है और एनजीओ प्रोजेक्ट भवन के ठीक बगल में उनका आलीशान पैत्रिक घर है। कहा तो यहां तक जाता है कि लीज-किराया तो एक आड़ है, एनजीओ प्रोजेक्ट भवन में सारी पूंजी उन्हीं की लगी हुई है, जिसकी कमान उनके बेटे अनिल कुमार के हाथ में है और उसमें काम करने वाले प्रायः उनके ही लगुए-भगुए हैं।
चूकि हरिनारायण सिंह की छवि एक प्रभावशाली नेता की रही है, इसलिये कोई भी अधिकारी किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करनी तो दूर, उसे दबाने या फिर उल्टी कार्रवाई ही कर डालते हैं।
जलालपुर मध्य विद्यालय का ताजा मामला हो या इसके पूर्व बढ़ौना मध्य विद्यालय का या फिर अन्य मामले…ऐसा ही होता रहा है।जिला प्रशासन द्वारा बुधवार को जमालपुर मध्य विद्यालय में मध्यान्न भोजन में मृत मेढ़क मिलने के मामले में हेडमास्टर, रसोईया समेत दो अन्य मास्टर के खिलाफ कार्रवाई की गई है। जिन्हें ईनाम मिलनी चाहिये, सूरदास बने अफसरों ने बिना सच जाने दंड दे दिया।
सबाल उठता है कि क्या कोई चोर खुद को चोर होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है? बिल्कुल नहीं। दंडित लोगों का कसूर सिर्फ इतना है कि उन लोगों ने सच को उजागर किया, उसे छुपाया नहीं। जैसा कि अन्य विद्यालयों में भयवश होता आया है।
नालंदा के डीएम ने जिस जांच दल की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने के निर्देश दिये, वह रिपोर्ट ही हास्यास्पद प्रतीत होती है। एनजीओ प्रोजेक्ट में भोजन बनने, उसे डिब्बा बंद करने एवं उसे स्कूलों तक पहुंचाने में घंटों लगते हैं। जिस स्कूल में घटना घटी है, वहां तक भी बच्चों के भोजन पहुंचाने में एक से दो घंटा अवश्य लगा होगा।
ऐसे में जांच दल के अधिकारी ही बेहतर बता सकते हैं कि एकता शक्ति फाउंडेशन वाले ऐसा कौन सा तकनीक अपनाते हैं कि उतने समय तक भोजन इतना गर्म रहे कि मेढ़क गिरे और पक कर अकड़ जाये। सबसे बड़ी बात कि एनजीओ की तकनीकी आधार पर जिस ब्यालर सिस्टम से भोजन पकाने की बात को जाच दल सुर मिला रहे हैं, वह भी कम हास्यस्पद नहीं है। खिचड़ी या अन्य सामग्री खाने योग्य बनाने का एक निर्धारित मापदंड होता है। उस दौरान मेढ़क सा प्राणी इतना नहीं घुल जायेगा कि पता ही न चले। और स्टील केन में भोजन पैकिंग के दौरान भी तो लापरवाही हो सकती है।
विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी पूरे मामले को और भी संदिग्ध बना डालती है। कहा जाता है कि मामले की सूचना मिलते ही एनजीओ के प्रोजेक्ट प्रभारी संतोष ने मृत मेढ़क को नजर पड़ते ही अपनी जेब में डाल लिया और फिर उसे बाथरुम में फेंक दिया। साथ ही पूर्व शिक्षा मंत्री एवं स्थानीय विधायक की धौंस दिखा कर स्कूल कर्मियों को मामले को ठंढा करने में मदद की धमकी दी। जांच दल ने भी एनजीओ का ही साथ दिया क्योंकि, जल में रह कर मगर से पंगा यहां कौन लेता है? खास कर उस परिस्थिति में जब मिड डे मिल के भ्रष्टचार में सब नंगे हों।