एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। पश्चिम बंगाल के तारापीठ स्थित एक होटल में बिहार के नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा के सामने उनके समर्थकों ने जिस प्रकार की गुंडई की, वेशक वह काफी शर्मनाक है। उससे भी बड़ी शर्मनाक है उनके बचाव में उतरे नेता या मीडिया की मानसिकता। कोई भी होटल के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
लेकिन श्री कुमार के शिकायत में जो भी बातें लिखी गई है, उसकी चपेट में मंत्री और उनके समर्थक ही अधिक लिपटते-निपटते प्रतीत हो रहे हैं।
नीजि सचिव ने मंत्री सुरेश शर्मा के तय कार्यक्रम की चर्चा की है। उन्होंने लिखा है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया। पूर्व सूचना देने की बात दोहराई गई है। पर इससे संबंधित कोई साक्ष्य साथ में पेश नहीं किया गया है।
शिकायती संजीव कुमार मानते हैं कि बुकिंग ऑनलाइन हुई थी। रुम को लेकर झंझट शुरु हुआ। होटल वालों ने मंत्री और बिहार के बारे में अपशब्द कहे। लेकिन मंत्री जी और साथ रहे लोग ऑनलाइन पेमेंट का पैसा नगद वापस चाहते हैं। यह कैसे संभव है।
मंत्री सुरेश शर्मा और उनके प्राइवेट सेक्रेट्री संजीव कुमार को क्या यह मालूम नहीं है कि कि ऑनलाइन पेमेंट की वापसी भी ऑनलाइन ही होती है। उसकी अपनी प्रक्रिया होती है। मतलब जिसके खाता से पैसा आता है, उसी के खाते में पैसा वापस जाता है।
डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वाले अंगूठा छाप लोग भी इस बात को जानते हैं तो फिर इसके लिए होटल में सीनाजोरी करने की कौन-सी जरुरत थी।
सबसे बड़ी बात कि बिहार पुलिस के गार्ड अपने हथियार लेकर पश्चिम बंगाल कैसे पहुंच गए। नियमानुसार इसके लिए पहले डीआईजी को रिक्वेस्ट लेटर देनी होती है। फिर डीआईजी इस पर आईजी से सहमति प्राप्त करते हैं।
अब तक एफआईआर में ऐसे किसी आदेश को एनेक्स्चर के रुप में अटैच नहीं किया गया है, जिससे यह ज्ञात हो कि बिहार पुलिस के गार्ड को दूसरे प्रदेश में ले जाने की अनुमति प्राप्त की गई थी। बगैर अनुमति प्राप्त किए गार्ड का दूसरे प्रदेश में चले जाना इस मामले को काफी गंभीर बना देता है।
एफआईआर में कहा जा रहा है कि झगड़े में हथियार को क्षति पहुंची है। सवाल उठता है कि इस हथियार की क्षति के लिए जिम्मेवार कौन है। हथियार बिहार पुलिस की संपत्ति है और इसे कहीं भी कभी भी ले जाने की अनुमति नियमों के तहत ही प्राप्त है।