एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (मुकेश भारतीय)। मीडिया हाउस कितना भी बड़ा पूंजीगत क्यों न हो, उसकी रीढ़ आंचलिक पत्रकारिता होती है। इसे कोई नजंदाज नहीं कर सकता, लेकिन आज यदि हम देखें तो आंचलिक पत्रकारों के सामने नाना प्रकार के जटिल समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं।
बातें लंबी-चौड़ी, एकता-जुनून की लेकिन काम कपड़ा उतार कर व्यवस्था के सामने खड़ा हो जाना और साथ चलने के जुनूनी सभी लोगों से वैसी ही मानसिकता की उम्मीद करना।
खबर है कि नालंदा जिले में हिलसा अनुमंडल स्तरीय नवगठित पत्रकार संघ में इन दिनों काफी घमासान मचा हुआ है। घमासान के जो मूल कारण उभर कर सामने आये हैं, उसे प्रथम दृष्टया हास्यास्पद समझा जा सकता है लेकिन उसके पीछे छुपे गूढ़ रहस्य काफी गंभीर पहलु है।
संघ गठन के बाद व्हाट्सएप्प पर सदस्यों का सवडिवीजन पत्रकार संघ नामक एक ग्रुप बनाया गया। उस ग्रुप में संघ के अध्यक्ष ने लिखा कि
“ हिलसा एसडीओ ने नवगठित हिलसा अनुमंडल पत्रकार संघ के सदस्यों के साथ 20 जनवरी को अपने का्यालय में बैठकर चाय पार्टी देने की ईच्छा जाहिर की है। आप सभी पत्रका बंधुओं से अनुरोध है कि इससंबंध में अपना विचार अथवा सुझाव व्यक्त करें, ताकि बैठक का समय निर्धारित किया जा सके।”
इस पोस्ट के बाद कई सदस्य पत्रकारों की बांछे खिल गई तो कई सदस्य पत्रकारों ने कुछ शंका और चाय पार्टी के तरीकों पर आपत्ति प्रकट करते हुये प्रतिउत्तर लिखे।
इस दौरान संघ के सदस्यों के बीच कभी नरम तो कभी गरम बहस हो रहे थे कि अचानक संघ के अध्यक्ष ने कुछ सम्मानित सदस्यों को ग्रुप से रिमूव कर दिया। महज एक चाय पार्टी को लेकर एक पत्रकार संघ के अध्यक्ष द्वारा हटा देने से नाराज कई अन्य सदस्य भी लेफ्ट हो गये।
इसके बाद निर्धारित तिथि को हिलसा एसडीओ कार्यालय में हिलसा डीएसपी की मौजूदगी में आंचलिक पत्रकारों की चाय पार्टी तो हुई लेकिन, उसमें अनेक सदस्य शरीक नहीं हुये।
ताजा आलम यह है कि संघ से जुड़े पत्रकारों का एक बड़ा तबका अलग थलग हो गया है। राजनामा.कॉम के पास गोपनीय सूत्रों से उस ग्रुप की कई स्नैपशॉट प्राप्त हुये हैं। इस समाचार के साथ उसे आप सुधी पाठकों के समक्ष रखा जा रहा है। एकमात्र इस उद्देश्य के साथ कि पत्रकार सिर्फ पत्रकार होता है।
चाहे वह देश की राजधानी में बैठा हो, चाहे वह राज्य की राजधानी में बैठा हो, चाहे वह जिला में बैठा हो, चाहे वह अनुमंडल में बैठा हो या प्रखंड-अंचलों में। सब एक ही चेन की समान मजबूत कड़ियां हैं और सूचना समाचार संकलन, लेखन, संप्रेषण, संपादन और प्रकाशन में बराबर भूमिका का निर्वाह करते हैं।
दिकक्तें तब आती है, जब कोई कड़ी खुद को मजबूत और दूसरी कड़ी को कमजोर समझते हैं। पत्रकार संघ या संघठन से जुड़े लोग भी पदानुसार अपने साथी सदस्यतों से उपर उठी कुर्सी पर बैठने की मानसिकता से ग्रसित हो जाते हैं।
इससे उनकी पत्रकारिता कमजोर होती है, उनका संघ-संगठन नक्कारखाने की तूती बन जाती है। मीडिया से इतर प्रभावी सरकारी गैर सरकारी लोग भी कहीं किसी को खास महत्व देते नजर नहीं आते।