“नीतीश के अचानक पलटने से सहयोगी दलों में भी था भीतरी आक्रोश, जहानाबाद उपचुनाव परिणाम ने दिखाया नया जातीय समीकरण”
अभिराम शर्मा के वाणी और कडक बोल की चर्चा पूर्व से ही जहानाबाद में थी। यहां तक की जहानाबाद के कोर्ट एरिया में बीते 27 मार्च को आयोजित होली मिलन समारोह सह महामूर्ख सम्मेलन जिसमें खुद अभिराम शर्मा भी मौजूद थे। उन्होंने अपने उपर लिखी व्यंग्य कविता पर ध्यान नहीं दिया जो उनके कटु बोल-वचनो पर लिखा गया था।
जबकि इसके विपरीत राजद प्रत्याशी सुदय यादव भूमिहार बहुल गांवों में जाकर काफी सरलता और आत्मीयता से राजद को वोट देने का विनम्र आग्रह किया था।
अभिराम शर्मा के चुनाव प्रचार के लिए राजद और भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने जहानाबाद में कैंप किया।
खरबपति दवा व्यवसायी व राज्यसभा महेन्द्र पसाद उर्फ किंग महेन्द्र के छोटे भाई भोला सिंह भी कई दिनों तक जहानाबाद रहकर अभिराम शर्मा के पक्ष में कैंपेनिंग की, पर जनबल के आगे धनबल की एक न चली।
बताया जाता है कि किंग महेन्द्र के दवाब में ही नीतीश कुमार ने इस उपचुनाव में तीनों में से किसी सीट पर जदयू प्रत्याशी न देने के अपने वचन और वादे को तोडकर अंतिम क्षणों में अभिराम शर्मा को जहानाबाद से जदयू प्रत्याशी बना दिया। जिसको लेकर सहयोगी दलों और कार्यकर्ताओं में क्षोभ व्याप्त था और इसका असर इस उपचुनाव के परिणाम पर पड़ा।
जहानाबाद में शायद पहली बार भूमिहार जाति के मतदाताओं ने राजद प्रत्याशी को वोट देकर उनकी ऐतिहासिक जीत को पक्का किया।
प्रारंभ में यह चर्चा थी कि राजद प्रत्याशी को भीतरघात का सामना करना पड़ेगा। पर जहानाबाद के राजद नेता विजय मंडल की उच्च शिक्षित बहू और जिला परिषद अध्यक्ष आभा रानी इन तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए तेजस्वी यादव, जीतनराम मांझी सहित कई प्रमुख राजद नेताओं के चुनावी सभा में भाग तो लिया ही, अपने भाषणों से मतदाताओं के उपर काफी प्रभाव डाला।
कई सभाओं में आभा रानी ने तेजस्वी यादव के भाषण में बजी तालिया से ज्यादा अपने भाषण में तालियां बटोरी।
जहानाबाद उपचुनाव का परिणाम भविष्य में एक नया राजनीतिक समीकरण का संदेश भी दे गया और वह समीकरण है ‘बीएमवाई’ यानी भूमिहार-मुस्लिम और यादव जाति के समीकरण का।
जहानाबाद में इस जाति के कई प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि अगर यह समीकरण बन जाए तो फिर बिहार की राजनीति की दशा और दिशा सिफ यही समीकरण तय करेगा।