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क्या श्रीलंका जैसी भुखमरी का शिकार हो सकेगा भारत ?  कितनी सच होगीं सोशल मीडिया की चर्चाएं?

इंडिया न्यूज रिपोर्टर (लिमटी खरे)। श्रीलंका में हालात बद से बदतर हो चुके हैं। श्रीलंका में भुखमरी के आलम है, खाने की चीजों से लेकर डीजल पेट्रोल सभी के दाम बहुत ज्यादा बढ़ चुके हैं। भारत और श्रीलंका का पुराना दोस्ताना है। कभी श्रीलंका भी भारत का अभिन्न अंग हुआ करता था।

भारत के द्वारा श्रीलंका की हर संभव मदद की जा रही है। दरअसल श्रीलंका में सरकार में कमाबेश सभी पदों पर राजपक्षे परिवार के लोग ही बैठे हुए हैं। इसलिए जो भी फैसले लिए गए उनमें ज्यादा विचार विमर्श या चर्चाएं नहीं हुईं और इसके अलावा चीन के द्वारा भी अपनी कुटिल चालों में श्रीलंका को बुरी तरह फंसा लिया गया।

श्रीलंका में राजपक्षे सरकार के द्वारा एक के बाद एक गलत फैसले लिए जाते रहे। श्रीलंका के द्वारा कोलंबों के बंदरगाह के पास ही हंबनटोटा का बंदरगाह को विकसित करने का गलत फैसला लिया गया। जब श्रीलंका के द्वारा इस बारे में भारत से सहयोग मांगा गया तो भारत ने उसे आप्रसंगित बताकर इस काम को आगे नहीं बढ़ाने का मशविरा दे दिया था।

चीन ने भारत के विरोध को भांपकर श्रीलंका को अपने जाल में फंसाया और श्रीलंका को भारी कर्जा देकर इस बंदरगाह को बनवा दिया। भारत जानता था कि हंबनटोटा बंदरगाह श्रीलंका के लिए अनुपयोगी ही होगा, क्योंकि वहां उसके पास ही कोलंबो बंदरगाह होने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह पर एक भी जहाज दिन भर में नहीं आता है। श्रीलंका पर चीन का कर्ज इस कदर बढ़ गया कि मजबूरी में श्रीलंका को इस बंदरगाह को 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा।

इतने के बाद भी चीन को संतोष नहीं हुआ। चीन के द्वारा श्रीलंका में रसायनिक उर्वकरक और कीटनाशकों पर रोक लगाने का ताना बाना बुना गया और यह कहकर कि आर्गेनिक खेती अगर की जाती है तो उसके दाम दो से तीन गुने मिल सकते हैं। श्रीलंका एक बार फिर चीन की चाल को नहीं भांप पाया और कीट पतंगों ने उसकी अधिकांश फसल चौपट कर दी एवं उर्वरक के अभाव में उत्पादन भी गिर गया।

यही कारण था कि श्रीलंका में अनाज का संकट पैदा होने लगा। इसी तरह पर्यटन से श्रीलंका को खासी आय होती थी, पर कोरोना काल में पर्यटन व्यवसाय ने भी दम तोड़ दिया। रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण डीजल पेट्रोल के दाम आसमान छूने लगे और अर्थव्यवस्था की रही सही कसर भी निकल गई।

जैसे ही श्रीलंका में मंहगाई चरम पर होने, खाने पीने की वस्तुओं की कमी, डीजल पेट्रोल के दामों की बात सामने आई वैसे ही सोशल मीडिया पर एक बड़ा तबका इसे भारत में निशुल्क व्यवस्थाओं से जोड़कर भारत में भी इस तरह की स्थितियां पैदा होने की दुहाई देने लगा।

कहा जाने लगा कि भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। हमारा कहना है कि सियासत अपनी जगह है, सियासी नफा नुकसान अपनी जगह है पर सोशल मीडिया पर अगर कोई बात कही जाए तो वह कम से कम प्रमाणिक होना चाहिए।

कुछ साल पहले वैश्विक मंदी के समय भी इसी तरह की बातें कहीं जाती थीं, पर भारत में जितने भी उत्पाद बनते हैं उनका बाजार खुद भारत ही है। भारत की विशाल जनसंख्या है, इसलिए हमने उस वक्त भी कहा था कि वैश्विक मंदी का असर भारत पर नहीं पड़ने वाला।

दरअसल, भारत में विपक्ष की तलवार पूरी तरह बोथरी ही नजर आती है। विपक्ष जनता के बीच जाकर तो जनता कि हित की बात करता नजर आता है, पर लोकसभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषदों में विपक्ष पूरी तरह मौन रहकर बर्हिगमन का रास्ता अख्तियार करता है।

विपक्ष को चाहिए कि वह कम से कम इस तरह के मामलों में पूरी तैयारी कर प्रश्न तो लगाए। उसके तारांकित या अतारांकित उत्तरों को आने दें और उन उत्तरों को जनता के समक्ष रखे। विपक्ष के इस तरह हमलावर न रहने पर सोशल मीडिया में तरह तरह की अफवाहों का बाजार गर्माता और यह बुखार एकाध सप्ताह में पूरी तरह उतर भी जाता है।

कोविड काल में पहली लहर से तीसरी लहर तक तरह तरह की बातें विपक्ष और लोगों के द्वारा सोशल मीडिया पर कही जाती रहीं, किन्तु आप और हम सभी गवाह हैं कि केंद्र और सूबाई सरकारों के द्वारा कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया जाए तो कोविड काल में लोगों को न तो भूखा मरने दिया और न ही ईलाज में कमी आने दी।

इसके अलावा वेक्सीन के दो डोज भी निशुल्क लगवाकर देश के निवासियों को कोविड से काफी हद तक बचाकर भी रखा। दूसरी लहर में आक्सीजन की हायतौबा मची तो केंद्र के द्वारा राज्यों को आक्सीजन प्लांट्स के लिए इमदाद दी गई, हां इसके सुपरविजन की कमी अवश्य सामने आई जिसके चलते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।

आपको यह तो याद होगा कि सरकारी स्तर पर खरीदे जाने वाले गेंहूॅ और चावल के पर्याप्त भण्डारण के न हो पाने से इसका अधिकांश हिस्सा सड़ जाता था। इस पर जमकर हो हल्ला हुआ और मामला जब शीर्ष अदालत तक पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने यह तक कह दिया कि अगर अनाज के भण्डारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और यह सड़ रहा है तो इसे गरीबों में मुफ्त बांट क्यों नहीं दिया जाता!

इसके बाद ही केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा गरीबों को हर माह निश्चित मात्रा में निशुल्क अनाज की व्यवस्था भी कर दी गई। इसके बाद भी देश में न तो अनाज की कमी दिख रही है, न ही डीजल पेट्रोल की, न ही विदेशी मुद्रा भण्डार ही कम है। मंहगाई अवश्य बढ़ रही है, पर विपक्ष के कथित छद्म विरोध के कारण मंहगाई पर अंकुश नहीं लग पा रहा है, यह बात सही है। इसलिए भारत शायद ही कभी श्रीलंका के वर्तमान हालातों से रूबरू हो पाए।

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