पटनाजरा देखिएजहानाबादबिग ब्रेकिंगबिहारराजनीतिशिक्षा

सुशासन और राजनीति का आयना बनी जहानाबाद की यह शिक्षिका

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के जहानाबाद में एक शिक्षिका के साथ हुए विवाद और उसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) द्वारा जारी नोटिस ने बिहार की सियासत और समाज में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। यह मामला न केवल शिक्षक समुदाय के सम्मान से जुड़ा है, बल्कि यह बिहार की संस्कृति और सामाजिक मूल्यों पर भी गंभीर सवाल उठाता है।

विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और राजद ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है, जबकि सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन (भाजपा-जदयू) पर शिक्षिका के साथ अभद्रता और अन्याय का आरोप लग रहा है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

शिक्षक दिवस के ठीक एक दिन पहले 4 सितंबर 2025 को बिहार में एनडीए (भाजपा-जदयू) द्वारा बुलाए गए राज्यव्यापी बंद के दौरान जहानाबाद जिले में एक घटना ने सबका ध्यान खींचा। जहानाबाद के अरवल मोड़ के पास सरकारी बालिका इंटर स्कूल में कार्यरत शिक्षिका दीप्ति रानी रोज की तरह अपने स्कूल जा रही थीं। इस दौरान बंद का समर्थन कर रहे कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें बीच सड़क पर रोक लिया।

आरोप है कि कार्यकर्ताओं ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया और बहसबाजी की। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें शिक्षिका और कार्यकर्ताओं के बीच तीखी नोकझोंक देखी जा सकती है।

वीडियो में शिक्षिका दीप्ति रानी का कहना है कि वह सिर्फ अपने कर्तव्य का पालन करने और बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल जा रही थीं। उन्होंने किसी भी पार्टी का समर्थन करने या विरोध करने से इन्कार किया। इस दौरान मौजूद पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

हद तो तब हो गई, इस घटना के बाद जहानाबाद की जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) सरस्वती कुमारी ने शिक्षिका दीप्ति रानी को कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस में कहा गया कि शिक्षिका का व्यवहार गैरजिम्मेदाराना, अनुशासनहीन और लोक सेवक आचरण नियम- 2005 के खिलाफ था।

डीईओ द्वारा शिक्षिका दीप्ति रानी को 24 घंटे के भीतर स्पष्टीकरण देने को कहा गया, अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई। नोटिस में यह भी उल्लेख किया गया कि शिक्षिका ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर शिक्षा विभाग की छवि को खराब करने की कोशिश की।

इस नोटिस ने विवाद को और हवा दे दी। शिक्षिका दीप्ति रानी ने अपने बचाव में कहा कि उन्होंने कोई अभद्र भाषा नहीं प्रयोग की और केवल अपने कर्तव्य का पालन करने की कोशिश की। उन्होंने यह भी बताया कि बंद समर्थकों ने उन्हें परेशान किया और स्कूल जाने से रोका, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई।

इस मामले ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है। कांग्रेस और राजद ने इस घटना को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा-जदयू गठबंधन पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा है कि यह नोटिस शिक्षिका को प्रताड़ित करने का एक सुनियोजित प्रयास है। यह भाजपा और जदयू की महिला विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। सरकार को तुरंत इस नोटिस को वापस लेना चाहिए और शिक्षिका से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।

वहीं राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने भी इस मामले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि शिक्षिका पर कार्रवाई करना न केवल शिक्षक समुदाय का अपमान है, बल्कि यह बिहार की संस्कृति और गौरव पर भी हमला है। सरकार को चाहिए कि वह दोषी कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करे, न कि पीड़ित शिक्षिका को दंडित करे। विपक्षी नेताओं ने यह भी चेतावनी दी कि जनता आगामी विधानसभा चुनाव में इस अन्याय का जवाब देगी।

इस घटना ने बिहार के शिक्षक समुदाय में भारी आक्रोश पैदा किया है। कई शिक्षक संगठनों ने इस नोटिस को अनुचित और पक्षपातपूर्ण बताया है। उनका कहना है कि एक शिक्षिका, जो अपने कर्तव्य का पालन करने की कोशिश कर रही थी, उसे इस तरह निशाना बनाना निंदनीय है। शिक्षक संगठनों ने मांग की है कि सरकार इस मामले की निष्पक्ष जांच कराए और शिक्षिका के सम्मान की रक्षा करे।

यह घटना केवल एक प्रशासनिक या राजनीतिक विवाद तक सीमित नहीं है। यह बिहार की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर भी सवाल उठाती है। बिहार, जो अपनी गुरु-शिष्य परंपरा और शिक्षा के प्रति सम्मान के लिए जाना जाता है, वहां सत्तारुढ़ दलों एवं उनके प्रशासन द्वारा एक शिक्षिका के साथ इस तरह का व्यवहार कई लोगों को अस्वीकार्य लग रहा है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर व्यापक बहस छिड़ी हुई है, जहां लोग शिक्षिका के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं।

बहरहाल इस मामले ने बिहार में एक बड़े विवाद को जन्म दिया है। अब सभी की नजर इस बात पर है कि शिक्षिका दीप्ति रानी इस नोटिस का जवाब कैसे देती हैं और शिक्षा विभाग इस मामले में आगे क्या कदम उठाता है। साथ ही यह भी देखना होगा कि इस घटना का आगामी विधानसभा चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ता है।

कुल मिलाकर यह मामला न केवल एक शिक्षिका की गरिमा और सम्मान का सवाल है, बल्कि यह बिहार की शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक निष्पक्षता और राजनीतिक जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!