
रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। भूमि फर्जीवाड़े के मामले में पूरे सूबे में अव्वल झारखंड की राजधानी रांची जिले के कांके अंचल अंतर्गत मौजा नेवरी में एक जमीन से जुड़ा मामला इन दिनों चर्चा में है। मामला कोई साधारण भूमि विवाद नहीं, बल्कि राजस्व अभिलेखों, जमाबंदी प्रक्रिया और न्यायिक आदेशों के क्रियान्वयन से जुड़ा हुआ है, जिसने स्थानीय स्तर पर कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं।

विवाद खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट संख्या–1335 से संबंधित है, जिसकी कुल रकबा मात्र 25 डिसमिल दर्ज है। उपलब्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि यह जमीन वर्ष 2010 में विधिवत रजिस्ट्री और दाखिल-खारिज के बाद प्रथम पक्ष के नाम जमाबंदी में दर्ज हो चुकी थी। तब से लेकर अब तक इस जमीन पर उनका निरंतर दखल-कब्जा और नियमित लगान भुगतान बताया जा रहा है।
स्थिति उस समय जटिल हो गई जब वर्ष 2022 में एक अन्य पक्ष द्वारा एक फर्जी केवाला के आधार पर 12 डिसमिल भूमि की अलग जमाबंदी दर्ज करा ली गई। इसके बाद झारभूमि पोर्टल पर ऐसी स्थिति सामने आई कि 25 डिसमिल की जमीन पर कुल 37 डिसमिल का लगान रसीद कटने लगा।
राजस्व मामलों से जुड़े जानकारों का कहना है कि किसी एक प्लॉट पर खतियानी रकबा से अधिक जमाबंदी न तो भौतिक रूप से संभव है और न ही नियम सम्मत।
मामले की गंभीरता को देखते हुए रांची डीसीएलआर कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उल्लेख किया कि वर्ष 2020 के केवाला के आधार पर दर्ज की गई 12 डिसमिल की जमाबंदी खतियानी रकबा से अधिक पाई गई है, इसलिए दाखिल खारिजवाद संख्या-4020 R27/2021-22 में दिनांक-01.01.2022 को पारित पारित दाखिल-खारिज आदेश को निरस्त किया जाता है।
साथ ही कोर्ट ने अंचलाधिकारी को निर्देश दिया कि सभी समर्पित दस्तावेजों, राजस्व अभिलेखों और स्थल पर दखल-कब्जा की जांच कर नए सिरे से विधिसम्मत आदेश पारित किया जाए।
हालांकि कोर्ट का आदेश आए 18 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अंचल स्तर पर अब तक कोई स्पष्ट सुधार या संशोधित आदेश सामने नहीं आया है। झारभूमि पोर्टल पर आज भी 37 डिसमिल की रसीद दर्ज बताई जा रही है।
इसी बीच कांके के अंचलाधिकारी अमित भगत का एक बयान चर्चा में है, जिसमें उन्होंने एक वरीय पत्रकार से बातचीत में कहा कि डीसीएलआर द्वारा ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया है और 25 प्लस 12 यानि 37 डिसमिल जमीन में केवल एक-दो डिसमिल का अंतर है।
यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि डीसीएलआर कोर्ट का लिखित आदेश रिकॉर्ड में मौजूद है, जिसकी प्रतियां संबंधित पक्षों के पास उपलब्ध बताई जा रही हैं। सीओ और पत्रकार की बातचीत का ऑडियो रिकॉर्ड भी एक्सपर्ट मीडिया न्यूज के पास सुरक्षित है।
इस पूरे मामले ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि कुल रकबा 25 डिसमिल है तो 37 डिसमिल का लगान किस आधार पर वसूला जा रहा है? डीसीएलआर कोर्ट के आदेश के बाद भी सुधार की प्रक्रिया क्यों लंबित है? क्या राजस्व अभिलेखों के सत्यापन में कहीं चूक हुई है? और सबसे अहम न्यायिक आदेशों का पालन किस स्तर पर अटक रहा है?
सूत्र बताते हैं कि प्रभावित पक्ष अब इस मामले को उच्च प्रशासनिक और न्यायिक स्तर तक ले जाने की तैयारी कर रहा है। यदि समय रहते स्थिति स्पष्ट नहीं होती तो यह मामला केवल जमीन विवाद तक सीमित न रहकर प्रशासनिक जवाबदेही और राजस्व प्रणाली की पारदर्शिता से जुड़ा बड़ा प्रश्न बन सकता है।
फिलहाल, राजधानी रांची के कांके अंचल अंतर्गत नेवरी मौजा की उल्लेखित जमीन यह सोचने पर मजबूर करती है कि राजस्व रिकॉर्ड में एक असंगति कैसे पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर देती है।



