पटना (मुकेश भारतीय)। बिहार के सभी सरकारी शिक्षकों के लिए आज का दिन अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा। पटना हाईकोर्ट ने शिक्षकों की ट्रांसफर-पोस्टिंग नीति पर स्टे लगाकर राज्य सरकार को बड़ा झटका दिया है। यह फैसला शिक्षा जगत में आग की तरह फैल गया। जिसकी तेज आंच नीतीश सरकार के गलियारों तक पहुंच गई। जबकि यह नीति नीतीश सरकार की एक बड़ी पहल थी। जिसे अब ठंडे बस्ते में डालना पड़ा।
मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप पर शिक्षा मंत्री को आनन-फानन में करनी पड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंसः हाईकोर्ट के इस फैसले के तुरंत बाद सरकार की उच्च स्तरीय बैठकों का दौर शुरू हुआ। मंत्रिमंडल के कुछ प्रमुख नेताओं ने इस आदेश के निहितार्थ पर मंथन किया। इस मंथन का परिणाम यह हुआ कि शिक्षा मंत्री को प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी पड़ी। जिसमें उन्होंने घोषणा की कि ट्रांसफर-पोस्टिंग की नीति को फिलहाल स्थगित किया जा रहा है।
मंत्री ने कहा कि यह नीति शिक्षकों के हित में बनाई गई थी। लेकिन इसे लेकर शिक्षकों में कई शंकाएँ हैं विशेषकर आरक्षण के संदर्भ में। सरकार इस नीति में आवश्यक संशोधन करेगी और सक्षमता परीक्षा पास कर चुके शिक्षकों के लिए इसे दोबारा लागू करेंगे।
शिक्षकों की जीत, सरकार की हार? पटना हाईकोर्ट के इस स्टे आदेश को शिक्षक संघों ने एक बड़ी जीत के रूप में देखा है। शिक्षक संघों का मानना है कि उनके विरोध के कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ा। वहीं सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका है। क्योंकि यह नीति सरकार की बड़ी नीतिगत पहल में से एक थी।
शिक्षक संघों ने पहले ही विधानसभा सत्र के दौरान घेराव की योजना बनाई थी और इस फैसले से उनकी स्थिति और मजबूत हो गई है। 25 नवंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान वे अपने विरोध प्रदर्शन को और तेज कर सकते हैं।
अंदरूनी हलचल और नीति पर पुनर्विचारः खबरों की मानें तो शिक्षकों और कुछ विधायकों द्वारा लगातार हो रहे विरोध ने सरकार को मजबूर कर दिया था कि वह इस नीति पर पुनर्विचार करे। हालांकि इस नियमावली के तहत शिक्षकों से तबादले के लिए आवेदन मांगे गए थे। लेकिन अब तक केवल 20,000 शिक्षकों ने आवेदन किया था। जो अपेक्षाकृत काफी कम है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार में उहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई और कुछ कद्दावर नेताओं ने इस मसले पर सक्रियता दिखानी शुरू कर दी। बताया जा रहा है कि पूर्व शिक्षा मंत्री ने फोन के माध्यम से इस मामले को संभालने की जिम्मेदारी ली और जल्द ही शिक्षा मंत्री को निर्देश दिए गए कि वह प्रेस के माध्यम से इस मसले को स्पष्ट करें ताकि विरोध और तेज न हो।
चुनावी राजनीति का असरः इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह साफ हो गया है कि आने वाले विधानसभा चुनावों का असर इस नीति पर भी पड़ा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशानुसार फिलहाल ट्रांसफर नीति में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी और इसे चुनाव तक स्थगित रखा जाएगा।
सरकार चाहती है कि सक्षमता परीक्षा पास करने वाले शिक्षकों को नियुक्ति पत्र देकर उन्हें वर्तमान विद्यालय में ही रखा जाए। ताकि कोई राजनीतिक विवाद न उत्पन्न हो। स्पष्ट है कि 2025 के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र सरकार विवादास्पद नीतियों से दूरी बनाए रखना चाहती है।
आसान नहीं है आगे की राहः हालांकि शिक्षा मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि यह नीति शिक्षकों के हितों के अनुरूप है और इसे संशोधन के बाद लागू किया जाएगा। लेकिन फिलहाल इस नीति पर चुनावी राजनीति का ग्रहण लग चुका है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस नीति को कब और कैसे पुनः लागू करती है।
बहरहाल, पटना हाईकोर्ट का यह आदेश बिहार के शिक्षकों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। वहीं सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हुआ है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस नीति में बदलाव कर शिक्षकों को संतुष्ट करेगी या इसे पूरी तरह से ठंडे बस्ते में डाल देगी।
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