धरोहरदेशनालंदापटनाफीचर्डबिहारशिक्षा

Nava Nalanda Mahavihar: 75 वर्षों की ज्ञान यात्रा में प्राचीन नालंदा का आधुनिक पुनरुत्थान

नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nava Nalanda Mahavihar) की ध्वंसावशेषों से निकलती एक चिरपरिचित गूंज आज भी सुनाई देती है। यह ज्ञान का सूर्य अज्ञान के घने अंधकार को चीरता हुआ विश्व को आलोकित करता है। इसी भावना को जीवंत रूप देने वाला नव नालंदा महाविहार का 20 नवंबर 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा शिलान्यासित हुआ था। यह अब अपनी 75वीं वर्षगांठ के द्वार पर खड़ा है।

Nava Nalanda Mahavihar The modern revival of ancient Nalanda in its 75 year journey of knowledge
Nava Nalanda Mahavihar The modern revival of ancient Nalanda in its 75-year journey of knowledge

यह महाविहार न केवल बौद्ध दर्शन का वैश्विक केंद्र है, बल्कि एशियाई संस्कृतियों के सेतु के रूप में उभर रहा है, जहां प्राचीन पांडुलिपियां आधुनिक शोध से रूबरू हो रही हैं। हाल के वर्षों में ‘ज्ञान-भारतम’ कार्यक्रम के तहत इसे बिहार का पहला ‘पांडुलिपि क्लस्टर सेंटर’ घोषित किए जाने से इसकी चमक और बढ़ गई है, जो इसे वैश्विक विद्वानों के लिए एक अनिवार्य गंतव्य बना रहा है।

यह यात्रा किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सामूहिक संकल्प की कहानी है। स्वतंत्र भारत के नवजन्म के दौर में, जब देश शिक्षा के पुनर्निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा रहा था, भिक्षु जगदीश कश्यप ने प्राचीन नालंदा की परंपरा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। उनके नेतृत्व में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, शिक्षा मंत्री आचार्य बद्रीनाथ वर्मा, शिक्षा सचिव जगदीश चंद्र माथुर, पूर्व विधायक श्यामसुंदर प्रसाद और क्षेत्रीय समुदाय के सहयोग से इसकी नींव पड़ी। लेकिन भूमि का प्रश्न सबसे बड़ा था।

इस्लामपुर (नालंदा) के प्रमुख मुस्लिम जमींदार जनाब चौधरी जहूर ने उदारता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए 11 एकड़ उपजाऊ भूमि दान कर दी। यह दान न केवल धार्मिक सद्भाव का प्रतीक था, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की उस भावना को भी प्रतिबिंबित करता था जो स्वतंत्र भारत का मूल मंत्र था।

शिलान्यास समारोह की यादें आज भी जीवंत हैं। 20 नवंबर 1951 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ताम्रपत्र स्थापित करते हुए पाली गाथा अंकित की- अस्मा एव सिला सिंगा नालन्दा भानुरंसियो उदेन्तो लोक भासाय बिगमे मार रत्तिया।  इसका अर्थ है नालंदा के ज्ञान सूर्य से उदीयमान होकर लोक भाषाओं में विग्यान का मार्ग प्रशस्त करो, जो अज्ञान की रात्रि को नष्ट कर दे। राष्ट्रपति जी ने न केवल महाविहार को प्राचीन नालंदा का उत्तराधिकारी घोषित किया, बल्कि निःशुल्क शिक्षा और छात्रावास की सुविधा की घोषणा भी की।

यह दृष्टि आज भी प्रासंगिक है, जब महाविहार आवासीय, शोधप्रधान और बहुभाषीय अध्ययन का प्रतीक बना हुआ है। यहां पाली, संस्कृत, तिब्बती, चीनी, जापानी और अन्य एशियाई भाषाओं में अध्ययन-अध्यापन की परंपरा न केवल जीवित है, बल्कि आधुनिक शोध पद्धतियों से समृद्ध हो रही है।

महाविहार की आत्मा उसके समृद्ध पुस्तकालय में बसती है, जो दुर्लभ पांडुलिपियों का खजाना है। यहां त्रिपिटक, अट्ठकथा और बहुभाषीय साहित्य का संग्रह न केवल संरक्षित है, बल्कि डिजिटलीकरण के माध्यम से वैश्विक पहुंच में उपलब्ध हो रहा है। ‘ज्ञान-भारतम’ पहल के तहत इसे पांडुलिपि क्लस्टर सेंटर बनाने से अब यहां डिजिटल आर्काइविंग, एआई-सहायता प्राप्त अनुवाद और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परियोजनाएं चल रही हैं।

कल्पना कीजिए कि एक ओर प्राचीन भिक्षु की लिखी पांडुलिपि, दूसरी ओर आधुनिक विद्वान जो उसे वर्चुअल रियलिटी में जीवंत कर रहे हैं। यह संयोजन महाविहार को बौद्ध अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण का वैश्विक मॉडल बना रहा है।

पिछले 75 वर्षों में महाविहार ने सैकड़ों भिक्षु-भिक्षुणियों को ज्ञान का दीपक बनाया है। श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार (वर्मा), वियतनाम, नेपाल, भूटान, कंबोडिया, जापान, चीन और लाओस जैसे बौद्ध राष्ट्रों से आते विद्वान यहां साधना और शोध के लिए एकत्र होते हैं। यह दृश्य प्राचीन नालंदा की याद दिलाता है, जब चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने यहां 10 वर्ष बिताए थे।

आज महाविहार सांस्कृतिक सेतु की भूमिका निभा रहा है। महामारी के बाद की दुनिया में जहां धार्मिक पर्यटन बढ़ रहा है, यहां वार्षिक बौद्ध सम्मेलन और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार वैश्विक चर्चा का केंद्र बन चुके हैं। हाल ही में यूनेस्को की एक रिपोर्ट में महाविहार को ‘एशियाई ज्ञान नेटवर्क’ का हिस्सा घोषित किया गया, जो इसके वैश्विक प्रभाव को रेखांकित करता है।

भविष्य की दृष्टि में महाविहार न केवल बौद्ध दर्शन तक सीमित रहने को तैयार नहीं। यहां पर्यावरणीय बौद्धिकता, महिला सशक्तिकरण और डिजिटल शिक्षा पर नए पाठ्यक्रम शुरू हो रहे हैं। नालंदा के स्थानीय युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम भी चल रहे हैं, जो प्राचीन ज्ञान को रोजगार से जोड़ रहे हैं। जैसा कि महाविहार के वर्तमान निदेशक ने कहा, “हम प्राचीन नालंदा के सूर्य को नई किरणों से सज रहे हैं। ताकि यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को रोशन करे।

नव नालंदा महाविहार की यह 75 वर्षीय यात्रा साबित करती है कि ज्ञान की जड़ें कभी सूखती नहीं। यह संस्थान न केवल इतिहास का पुनरावलोकन है, बल्कि भविष्य का वादा भी। जैसा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, यह फिर से विश्व को आलोकित करेगा और आज, वह वादा साकार हो रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button
error: Content is protected !!

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker