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राजनीतिक नेपथ्य में धकेल दिए गए राम मंदिर आंदोलन के नायक लालकृष्ण आडवाणी

इंडिया न्यूज रिपोर्टर / जयप्रकाश नवीन। एक समय अयोध्या में राममंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया था। पिछले चार दशक से इस मुद्दे पर एक खास राजनीतिक दल ने जमकर सियासी रोटियां सेंकी है। लेकिन आज उसी दल ने इस मुद्दे के साथ राम मंदिर आंदोलन के नायकों को भी भूल गई है। राम मंदिर आंदोलन से जुड़े नेताओं को राजनीतिक हाशिए पर धकेला जा रहा है।

22 जनवरी,2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा होना है। इसके लिए आम जनता से लेकर सता पक्ष के तमाम नेता को न्योता भेजा गया है। लेकिन जिस राम मंदिर निर्माण के लिए नब्बे के दशक में भाजपा के शलाका पुरुष ने देशभर में रथ यात्रा निकाली थी, लेकिन वह गनीमत रही कि शलाका पुरुष को बिहार में लालू प्रसाद यादव के हाथों गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन यह उस शलाका पुरुष की ही देन है कि 6 दिसंबर,1992 को बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया। आज उसकी जगह भाजपा का राम मंदिर का सपना पूरा हो रहा है।

90 के दशक के पूर्व देश में राम मंदिर आंदोलन की लहर सी चल पड़ी थी। लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे बनकर उभरे। इसी मुद्दे की बुनियाद पर 1989 के लोकसभा के चुनाव में नौ साल पुरानी बीजेपी दो सीटों से बढ़कर 85 पर पहुंच गई थी।

जिसका परिणाम यह हुआ कि आज केंद्र व देश के दर्जनभर राज्यों की सत्ता पर काबिज होकर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी बनी हुई है। राम मंदिर आंदोलन के मुद्दे से भाजपा आज केंद्र में एक ताकतवर सरकार के रूप में उभरी हुई है। तीसरी बार भी सत्ता में वापसी को लेकर मैदान में मजबूती से डटी हुई है।

राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता और नायक भाजपा की राजनीति पटल से आज गायब हैं। उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया है। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेई के बाद आडवाणी और जोशी युग समाप्त हो गया है। उनके जगह एक ताकतवर नेता पीएम नरेंद्र मोदी ने जगह स्थापित कर ली है।

राम मंदिर के शलाका पुरुष लालकृष्ण आडवाणी भी दस साल पहले राजनीतिक नेपथ्य में चलें गए हैं। साथ ही राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कई अन्य दिग्गजों का भी पार्टी ने बेटिकट कर दिया है। राम मंदिर के सभी नायकों के लिए पार्टी ‘खलनायक’ बनकर उभरी है।

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लगभग सभी वरिष्ठ नेताओं को भाजपा ने अलग -थलग कर दिया है। जिससे वें चुनाव मैदान में नहीं है। राम मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष और राम रथ यात्रा के नायक लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को इस बार विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर का न्नयोता भेजा तो है, लेकिन राम मंदिर न्यास के महासचिव चंपत राय आडवाणी और जोशी को उम्र एवं स्वास्थ्य का हवाला देकर राम मंदिर के उद्घाटन में नहीं आने की नसीहत दी है। फिलहाल उन दोनों के राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में आगमन को लेकर संदेह दिख रहा है।

राम मंदिर आंदोलन के दौरान रथयात्रा के कारण लालकृष्ण आडवाणी सुर्खियों में आएं थें जहां उन्हें बिहार में लालू प्रसाद की सरकार ने गिरफ्तार किया था। उनकी गिरफ्तारी ने उन्हें रातों रात भाजपा में हीरो बना दिया था।

राम रथ यात्रा और लालकृष्ण आडवाणी के व्यक्तित्व की ही यह देन थी कि 1991 में राम मंदिर आंदोलन से जुड़े जिन लोगों को भाजपा ने टिकट दिया था वें सभी सांसद बन गए। भाजपा में अटल -आडवाणी और जोशी युग की शुरुआत हो चुकी थी।

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े एक और दिग्गज वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को पिछले बार कानपुर से टिकट मिला था। लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में उनके साथ भी बीजेपी का रवैया उपेक्षित रहा।

मुरली मनोहर जोशी भी लालकृष्ण आडवाणी की तरह तिरंगा यात्रा निकालकर सुर्खियों में आएं थें। उन्होंने दक्षिण भारत से लेकर कश्मीर तक तिरंगा यात्रा निकाली थी। यहाँ तक कि उन्होंने कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा भी फहराया था। फिर वहाँ से यह यात्रा अयोध्या पहुँची थी।

राम मंदिर आंदोलन के तीसरे बड़े हीरो विनय कटियार भी भाजपा की राजनीति में हाशिए पर हैं। श्री कटियार अयोध्या में रहकर राम मंदिर आंदोलन चलाने का श्रेय उन्हें जाता है। उन्हें भी 2019 में  टिकट नहीं मिला था। जबकि विनय कटियार भाजपा में एक कद्दावर नेता माने जाते थें ।

राम मंदिर आंदोलन के एक और हीरो जौनपुर और हरिद्वार से सांसद रहें स्वामी चिन्यमानंद सरस्वती भी राजनीतिक पटल से गायब है। जबकि वें अटलबिहारी सरकार में गृह राज्यमंत्री भी थे।

अयोध्या के राम जन्म भूमि न्यास के सदस्य भगवाधारी डाॅ रामविलास दास वेदांती मछली शहर तथा प्रतापगढ से सांसद रह चुके हैं। लेकिन भाजपा ने इन्हें कहीं से टिकट नहीं दिया है। वें टिकट नहीं मिलने से पार्टी से नाराज भी चल रहे हैं थे।

राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी पंक्ति में रही भाजपा की एक बड़ी नेता भगवा चोले वाली साध्वी उमा भारती भी इस बार बीजेपी की राजनीति से गायब हैं। साध्वी उमा भारती एक समय मंदिर आंदोलन के लिए अपने सिर के बाल मुडवा कर कार सेवको के बीच पहुँच गई थी। गंगा सफाई योजना को लेकर साध्वी उमा भारती चर्चा में रही थी।

भाजपा के एक अन्य दिग्गज कलराज मिश्र अयोध्या से विशेष रूप से जुड़े रहे और हर आंदोलन में उनकी उपस्थिति देखी जाती थी। उन्हें भी उम्र का तकाजा बता कर चुनाव मैदान से बाहर कर दिया। वही भाजपा के पिछड़े वर्ग से आने वाले ओमप्रकाश वर्मा को भी पार्टी ने दरकिनार कर रखा है।

पार्टी के इस रवैये से समर्थकों में नाराजगी भी है। पार्टी की इस दोगली नीति को लेकर चर्चा जोरों पर है। पार्टी 75 साल के लोगों की टिकट काट रही है तो तो फिर अंबेदकर नगर से 75 वर्षीय मुकुट बिहारी वर्मा को टिकट बीजेपी ने 2019 में कैसे दी।

राम मंदिर आंदोलन के दौरान यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह उन दिनों जननायक के रूप में देखें जाते थें। फिलहाल वे अब इस दुनिया में नहीं है। एक व्यक्ति जिसने अपने खून -पसीने से भाजपा को सींचा, भारतीय जनमानस में राम मंदिर को लेकर भक्ति जगाई,वह आज उसी राम मंदिर से बेदखल हो रहा है।

भारतीय जनता पार्टी का 96 वर्षीय यह संस्थापक विस्थापन की ज़िंदगी जी रहा है। वह न अब संस्कृति में हैं न ही राष्ट्रवाद के आख्यान में। कहते हैं उनके जीवन से हमें सीखना चाहिए, आडवाणी हम सबकी नियति हैं। हम सबको एक दिन अपने जीवन में आडवाणी ही होना है। सत्ता से, संस्थान से और समाज से।

लाल कृष्ण आडवाणी का एकांत भारत की राजनीति का एकांत है। हिंदू वर्ण व्यवस्था के पितृपुरुषों का एकांत ऐसा ही होता है। जिस मकान को जीवन भर बनाता है, बन जाने के बाद ख़ुद मकान से बाहर हो जाता है।वो आंगन में नहीं रहता है। घर की देहरी पर रहता है। सारा दिन और कई साल उस इंतज़ार में काट देता है कि भीतर से कोई पुकारेगा।

भारत की राजनीति में संन्यासी होने का दावा करने वाले प्रासंगिक हो रहे हैं और संन्यास से बचने वाले आडवाणी अप्रासंगिक हो रहे है। आडवाणी एक घटना की तरह घट रहे हैं। जिसे दुर्घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

राजनीति में लालकृष्ण आडवाणी का एक दोष है। उन्होंने ज़िंदा होने की एक बुनियादी शर्त का पालन नहीं किया है। वो शर्त है बोलना, अगर राजनीति में रहते हुए बोल नहीं रहे हैं तो वे भी राजनीति के साथ धोखा कर रहे हैं, तब जब राजनीति उनके साथ धोखा कर रही है !

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