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    Sunday, November 24, 2024
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      झारखंड की प्रथम महिला मूर्तिकार, पति की मौत बाद पेशा संभाला, बच्चे बने इंजीनियर

      “मुझे लगता है कि एक महिला होने के कारण मैं मां की मूर्ति को ज्यादा साकार कर पाती हूं ….मूर्तिकार माधवी

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। झारखंड प्रेदश की पहली महिला मूर्तिकार माधवी पाल ने मूर्तियां बनाकर न केवल अपने परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण कर रही है , बल्कि अब वे दर्जन भर लोगों को रोजगार भी दे रही हैं।

      माधवी ने अपने इसी व्यवसाय से उन्होंने दोनों बेटा-बेटी को पढ़ाया। आज वे बेंगलोर में इंजीनियर हैं। माधवी ने मूर्ति बनाना तब सीखा, जब 2012 में उनके पति बाबू पाल की मौत हो गई। पति प्रसिद्ध मूर्तिकार थे।

      माधवी बताती हैं कि पति की मौत के बाद उनके सामने परिवार को पालने की जिम्मेदारी थी। घर में माहौल बहुत निराशाजनक था, क्योंकि परिवार में इकलौते कमाने वाले पति का साथ छूट गया था। मेरे दो बच्चे हैं, इसलिए उनके बाद मुझ पर ये जिम्मेदारी आ गई। मैंने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने का फैसला किया। क्योंकि यही एकमात्र कमाने-खाने का जरिया था।

      माधवी कहती हैं कि मैंने कोकर इलाके में अपना वर्कशॉप तैयार किया। यहां देवी दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी , सरस्वती की मूर्तियां बनाते हैं। उनके साथ 7-8 लोगों की टीम भी काम करती है। शुरुआत में श्रमिकों ने मुझ पर भरोसा नहीं किया।

      उन्हें आशंका थी कि मैं उन्हें समय पर भुगतान कर पाऊंगी या नहीं। लेकिन, हमेशा उन्हें वेतन के साथ बोनस भी दिया, ताकि वे खुश रह सकें। हमेशा अपने वर्कशॉप पर श्रमिकों का ख्याल रखती हैं। इन मूर्तियों को आसपास के गांव के आलावे रामगढ़ के लोग ले जाते हैं।

      माधवी राज्य की पहली महिला मूर्तिकार के तौर पर सम्मान पा चुकी हैं। माधवी का बेटा इंजीनियर और बेटी बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल है। माधवी के पति को लोग बाबू दा के नाम से बुलाते थे।

      वे रांची के बेहतरीन मूर्तिकार माने जाते थे। उनकी कला की हर कोई तारीफ करता था। लेकिन, पति की मौत के बाद माधवी ने हिम्मत नहीं हारी और पति का बिजनेस आगे बढ़ाकर कामयाब भी हो गईं।

      माधवी बताती हैं कि दुर्गा पूजा आने में कुछ ही दिन बाकी थे। उससे पहले ही विश्वकर्मा पूजा के दिन पति बाबू पाल का निधन हो गया था।

      ऐसे में मूर्ति और वर्कशॉप के साथ परिवार को संभालना चुनौतीपूर्ण था। उनके यहां जो कारीगर काम करते थे, वे काम छोड़कर चले गए थे। उन्होंने इसे चैलेंज की तरह लिया और नई टीम बनाई।

       

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