किसी भी सभ्यता और संस्कृति में बेहतर बदलाव के लिये यह जरुरी नहीं है कि उसका मूल ही नष्ट कर दिया जाये। नालंदा की पावन पर्टकीय नगरी राजगीर में टमटम यानि तांगा विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
आधुनिकता की इस दौर में यह सवारी देश के बहुत कम क्षेत्रों में बचा है। उसमें राजगीर और उसके आसपास का ईलाका एक मिसाल है।
आज कल राजगीर में टमटम की जगह ई-रिक्शा के परिचालन की बात हो रही है। आखिर उसकी वजह क्या है? इसका ठोस जबाव किसी के पास नहीं है। शासन-प्रशासन के लोग भी उसी ऑफर पर अधिक ध्यान देतें हैं, जिसमें अधिक कमाई छुपी होती है। टमटम वाले हटेगें, ई-रिक्शा वाले आयेगें और उनकी काली कमाई के स्रोत में ईजाफा होगा।
इस मानसिकता से न तो विरासत के बिचौलिये मुक्त हो रहे हैं और न ही उसके सरकारी रखवाले। वे सब कुछ बदल देना चाहते हैं। उनकी नजर में हरी-भरी वादियों के बीच मनोरम खिलखिलाहट कोई मायने नहीं रखते। उन्हें कंक्रीट के जंगल के बीच सरसराती इलेक्ट्रॉनिक शैली अधिक भाती है।
टमटम वालों के बारे में कहा जाता है कि उनमें उदंड प्रवति देखी जाती है। सैलानियों के प्रति उनका व्यवहार ठीक नहीं होता है। वे भयादोहन करते हैं। उनके कारण यातायात व्यवस्था में भी समस्या पैदा होती है। वे यत्र-तत्र काफी बेतरतीव तरीके से अपना टांगा लगाते हैं।
अब सबाल उठता है कि इसके लिये टमटम कहां दोषी है। उसका क्या, कोई उसे जहां खड़ा कर देगा, वहीं रहेगा न। बदलते परिवेश में तांगा वाले का व्यवहार एक समस्या हो सकती है। लेकिन इसके लिये यह बिल्कुल जरुरी नहीं है कि सभ्यता और संस्कृति को ही खत्म कर दिया जाये।
मेरी समझ में टमटम संचालन से जुड़ी जितनी भी समस्याएं दिखती है, उसके लिये सीधे तौर पर पुलिस-प्रशासन दोषी है। सारी दिक्कतें उसकी निकम्मेपन से ही उत्पन्न हुई है।
टमटम रिक्शा चालक संघ का कहना है कि यहां पुरातन काल से लोग तांगा के सहारे अपनी आजीविका चला रहे हैं। इसे लुप्त करने के बजाय बढ़ावा देने की जरूरत है। ई-रिक्शा का परिचालन दबंग मानसिकता के लोगों की कुराफात है। इससे तांगा चालक परेशान और अपनी आजीविका के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं।
पर्यटकों का भी मानना है कि टमटम की सवारी से राजगीर घूमने का आनंद दोगुणा हो जाता है। इसमें घुमने का आनंद के बखान सिर्फ पर्यटक ही नहीं, प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यदा-कदा करते रहते हैं। यहां एक आम कहावत है कि जिसने टमटम नहीं चढ़ा, उसने राजगीर के सौंदर्य का क्या खाक आनंद लिया।
राजगीर खुदरा व्यवसायीक संघ के अध्यक्ष निरंजन कुमार कहते हैं कि यहां टमटम खुद एतिहासिक पर्यटकीय धरोहर है, सौन्दर्य है। इसे हर हाल में बढ़ावा देनी चाहिये। जहां तक टमटम परिचालन की कुव्यवस्था और उसके चालकों की मनमानी या उदंड व्यवहार की बात है तो इसके निदान की दिशा में ठोस कदम उठाये जानी चाहिये।
बकौल निरंजन कुमार, राजगीर में टमटम पड़ाव की कोई व्यवस्था नहीं दिखती। यहां मनमानी ढंग से लोग अपनी टमटमें जहां-तहां खड़ा कर डालते हैं। इससे आम लोगों को काफी परेशानी होती है। प्रशासन को चाहिये कि राजगीर के महत्वपूर्ण स्थानों, खासकर कुंड क्षेत्र, बस स्टैंड और विश्व शांति स्तूप के पास टमटम पड़ाव सुनिश्चित करे, जहां प्रशासन से जुड़े लोग हों और कड़ी नजर रखने के लिये सबों को आधुनिक नेटवर्क से जोड़ दिया जाये। हर टमटम पर उसका निबंधन संख्या दर्ज हो और उसके चालकों को प्रशासन द्वारा जारी परिचय पत्र गले में टांगने की बाध्यता हो। ताकि सैलानी लोग के साथ अगर कोई तांगा वाला सही व्यवहार नहीं करता है, उसका भयादोहन करता है तो उसकी आसानी से शिनाख्त किया जा सके।
उधर समाजसेवी धर्मराज प्रसाद बताते हैं कि राजगीर में करीब 600 टमटम चलाये जा रहे हैं। उसके चालकों में ढेर सारे छोटे-छोटे बच्चें भी शामिल हैं। यहां टमटम या उसमें जुते घोड़े-घोड़ियों की कभी कोई तकनीकी या मेडिकल जांच नहीं होती है। इस कारण सैलानियों के साथ आये दिन दुर्घटनाएं आम बात हो गई है।
बकौल धर्मराज, यहां टमटम पड़ाव की व्यवस्था है लेकिन, सब अतिक्रमण की शिकार है। इस ओर प्रशासन का कभी कोई ध्यान हीं नहीं जाता। सैलानियों के लिये राजगीर पर्यटन भ्रमण के लिये 160 रुपये तय है। लेकिन टमटम वाले मनमानी बरतते हैं। 300 से 600 रुपये तक वसूलते हैं। प्रशासन को यह भी चाहिये कि वे सभी प्रमुख स्थानों, रेस्टुरेंटों, होटलों, स्टेशनों आदि पर टमटम की भाड़ा दर तालिका लगा दे, इससे पर्यटकों का शोषण बंद हो जायेगा।
इस संबंध में राजगीर नगर पंचायत के लाईसेंस जमादार उपेंद्र सिंह का कहना है कि इधर 4-5 वर्षों से एक भी टमटम को लाइसेंस नही दिया गया है। उधर 7-8 साल पहले उन लोगों को लाइसंस मिलता था। इस संबंध में जब वे जब भी बात उठाते हैं या फिर टमटमों की जांच करते हैं, तो उल्टे टमटम वाले के संघ इल्जाम लगाने लगता है कि अवैध वसूली करते हैं। इसलिये चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। बड़े अधिकारी ही कुछ कर सकते हैं, जो करते नहीं दिखते।