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आखिरकार जिंदगी की जंग हार गये वरिष्ठ पत्रकार सुनील सौरभ, सीएम नीतीश ने भी नहीं ली सुध

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पटना/गया (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़) । गया से वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुनील सौरभ आखिरकार जिंदगी की जंग हार गये। उन्होंने पटना के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली।

दिवंगत पत्रकार सुनील सौरभ मूलतः सीएम नीतीश कुमार के पैतृक शहर बख्तियारपुर के करनौती के रहने वाले थे। वे पिछले दो सप्ताह से किडनी की बीमारी से जूझते हुए अस्पताल में भर्ती थे।

इसी सप्ताह 15 अप्रैल को उनकी पत्नी सुभद्रा सिंह ने सीएम से मिलकर अपने पति के सरकारी खर्च से इलाज की गुहार लगाई थी। उनके साथ दिवंगत पत्रकार के भाई पत्रकार नवल किशोर सिंह भी थे।

Finally senior journalist Sunil Saurabh lost the battle of life even CM Nitish did not take care 1सुनील सौरभ कोई सामान्य पत्रकार नहीं थे। उन्होंने हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, चौथी दुनिया, आदि प्रमुख अखबारों में अपनी सेवाएं दी है। उनकी कई रचनाएं भी बिहार के लिए उपयोगी सिद्ध हुई है। बिहार सरकार का मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग, बिहार पटना के अंशनुदान से ‘गया जहां इतिहास बोलता है’ का प्रकाशन भी हुआ है।

श्री सुनील सौरभ बिहार के जाने-माने पत्रकार रहें। ज्वलंत और समसामयिक मुद्दों पर लगातार अपनी कलम चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्री सौरभ देश के विभिन्न अखबारों में छपते रहे। देश के कई बड़े अखबारों के साथ जुड़कर काम करने वाले सुनील सौरभ वर्तमान में ‘ओपिनियन पोस्ट’ से जुड़े थे।

श्री सौरभ को पहले भी कई मंचों से सम्मानित किया जा चुका है। पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, पटना द्वारा पत्रकारिता श्री अवार्ड, सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर लेखन के लिए माजा कोईन जर्नलिस्ट अवार्ड, आर्ट बन्धु सम्मान आदि सम्मानों से सम्मानित सुनील सौरभ की रुचि साहित्य में भी रही।

‘गया: जहाँ इतिहास बोलता है’ का प्रकाशन राजभाषा विभाग, बिहार, पटना के अंशानुदान से हो चुका है। इसके अलावा ‘मोक्ष धाम गयाजी’, ‘बिहार के सूर्य मंदिर’ के साथ ही काव्य संग्रह ‘अतीत की पगडंडियों पर’, ‘मैं सपने बुनता हूँ’ और ‘चाँद, चाँदनी और मैं’ भी प्रकाशित है। सुनील सौरभ बिहार के साहित्यिक क्षेत्र में जाने माने नाम हैं, इन्होंने गया के पौराणिक इतिहास पर अनेकों पुस्तके लिखी हैं।

सुनील सौरभ को उनके कृतियों के लिए कई प्रमुख संस्थानों से सम्मान भी प्राप्त हुआ हैं। ऐसे स्वतंत्र पत्रकार के लिए अगर आपकी ओर से उन्हें आर्थिक सहायता मिल जाती है, तो निः संदेह सुनील सौरभ और उनके परिवार के लिए एक बहुत बड़ी मदद मिल जायेगी। लेकिन आज की स्थिति क्या है? किसी ने भी सुनील सौरभ की मदद नहीं की।

वैसे उनकी मदद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, जनाधिकार पार्टी के सुप्रीमो पप्पू यादव ने भी सरकार से उनके इलाज की मांग की थी, लेकिन सियासत ने उनसे मुंह फेर लिया। अगर सुनील सौरभ को मदद मिलती तो वे जरुर बच जाते, पर आज वे मृत्यु को प्राप्त हो गये।

उनके निधन की सूचना मिलते ही गया के साहित्यकारों और पत्रकारों के बीच शोक की लहर पैदा हो गई। उन्होंने पत्रकारों की कई पीढ़ियों को पत्रकारिता के गुर सिखाए। वे आज अपने आप को अनाथ महसूस कर रहें हैं।

गया के पत्रकार और साहित्यकार मुकेश कुमार सिन्हा उनके निधन पर काफी मर्माहत है। उन्होंने इसे निजी क्षति बताया। उनके जाने से साहित्य का एक तपस्वी चला गया।

वहीं पत्रकार रंजन सिन्हा, एलन लिली, धीरज सिन्हा ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने पत्रकारिकता का एक अभिभावक खो दिया। उनके जाने से गया की पत्रकारिता और साहित्य में एक शून्यता आ गई है। जिसकी भरपाई संभव‌ नहीं है।

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