“जब देश में पहली बार ईवीएम मशीन का प्रयोग हुआ था, तब भी हार का दोष ईवीएम मशीन को दिया गया था। लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद चुनाव रद्द कर बैलेट पेपर से दुबारा चुनाव हुआ और हारे हुए प्रत्याशी लगभग दो हजार मतों से जीत गए…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/ जयप्रकाश नवीन। देश में 1998 से विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में ईवीएम मशीन का प्रयोग किया जा रहा है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि 1998 से पहले इस देश में ईवीएम से मतदान की शुरुआत 1982 में हुई थी। सबसे रोचक बात यह थी कि जो प्रत्याशी ईवीएम से हार गए थे। वह बाद में बैलेट पेपर से भारी मतों से चुनाव जीतने में सफल रहे। केरल के परवूर निर्वाचन क्षेत्र से देश के पहले कांग्रेस प्रत्याशी थे जो इवीएम से हार गए थे।
केरल के बाद ठीक एक साल बाद इवीएम का प्रयोग बिहार के चंडी विधानसभा उपचुनाव में सर्वप्रथम किया गया था। यहां भी आश्चर्यजनक यह रहा कि कांग्रेस प्रत्याशी अनिल कुमार अपने मंत्री पिता के निधन के बाद उपचुनाव में सहानुभूति लहर के बाद भी बुरी तरह हार गए थे। अनिल कुमार देश के दूसरे और बिहार के पहले कांग्रेस प्रत्याशी थे जो इवीएम से हार गए थे,जो एक रिकॉर्ड के रूप में दर्ज है।
देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद राजस्थान में कुछ निर्दलीय उम्मीदवार को शिकायत है कि उन्हें ईवीएम में उनका भी कोई मत प्राप्त नहीं हुआ। जबकि उनके परिवार के सदस्यों ने भी उन्हें ही वोट दिया था। चुनाव हारने के बाद उम्मीदवार हार का ठीकरा ईवीएम मशीन पर ही फोड़ते आए हैं।
जब देश में पहली बार ईवीएम मशीन का प्रयोग हुआ था तब भी हार का दोष ईवीएम मशीन को दिया गया था। लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद चुनाव रद्द कर बैलेट पेपर से दुबारा चुनाव हुआ और हारे हुए प्रत्याशी लगभग दो हजार मतों से जीत गए।
सबसे पहले ईवीएम से वोटिंग की शुरूआत 41 साल पहले केरल के एर्नाकुलम के परवूर निर्वाचन क्षेत्र में हुआ था। 19मई,1982 को परवूर के 84 मतदान केंद्रों में से 50 पर ईवीएम के जरिए मतदान कराया गया। ईवीएम से मतदान की पहली शुरुआत यहीं से हुई।
दरअसल, एर्नाकुलम के उस चुनाव में ईवीएम का पहला ट्रायल किया गया था। हालांकि इसके लिए कोई संसदीय स्वीकृति नहीं ली गई थी। फिर भी एर्नाकुलम के परवूर निर्वाचन क्षेत्र में 19 मई, 1982 को 84 बूथों में से 50 पर ईवीएम के जरिये मतदान कराए गए थे।
इसका फायदा यह हुआ की बैलेट पेपर वाले बूथों के बजाए ईवीएम वाले बूथों पर जल्दी मतदान समाप्त हो गया और बैलेट पेपर के मुकाबले ईवीएम वाले बूथों की गिनती भी जल्दी पूरी हो गई। वोटों की गिनती के बाद सीपीआई के सिवन पिल्लई को इस सीट पर 30,450 वोट मिले थे।
वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एसी जोस को 30,327 मत मिले थे। जिसके हिसाब से मात्र 123 मतों से सिवन पिल्लई ने एसी जोस को हरा दिया था। कांग्रेस उम्मीदवार ने हार मानने से इनकार कर दिया। उसने ईवीएम की तकनीकी पर ही सवाल खड़ा कर दिया।
जोस ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर बताया कि बिना संसदीय स्वीकृति के ईवीएम का इस्तेमाल हुआ है, जो सही नहीं है। जोस ने जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 और चुनाव अधिनियम, 1961 का हवाला दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद जब जोस सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो फैसला उनके पक्ष में आया। जिन 50 बूथों पर ईवीएम से वोटिंग हुई थी, वहां सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। इसके बाद हुई मतगणना में जोस को 2000 वोट ज्यादा मिले,और जीत घोषित किया गया।
केरल के एर्नाकुलम के परवूर निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम से मतदान के बाद बिहार के चंडी विधानसभा क्षेत्र में पहली बार ईवीएम का प्रयोग किया गया था। नालंदा के चंडी विधानसभा क्षेत्र में 1983 में पहली बार उपचुनाव के दौरान ईवीएम मशीन का प्रयोग किया गया था।
नालंदा के चंडी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक और शिक्षा मंत्री रहें डॉ रामराज सिंह 1980 में में पांचवीं बार जीत दर्ज की। लेकिन 4 दिसम्बंर,1982 को उनका देहान्त हो गया।उनके निधन के बाद उपचुनाव की घोषणा की गई। उपचुनाव में डॉ. रामराज सिंह के पुत्र अनिल कुमार कांग्रेस से उम्मीदवार बनाए गए थें। उनके सामने 1977 में पहली बार जीतकर आएं हरिनारायण सिंह थे।
चुनाव आयोग ने चंडी विधानसभा क्षेत्र चुनाव के लिए सारी तैयारी पूरी कर ली थी। चुनाव आयोग ने परवूर निर्वाचन क्षेत्र की तरह यहां भी ईवीएम से मतदान प्रक्रिया का प्रयोग किया। उसने बैलेट पेपर के साथ चंडी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 50 मतदान केंद्रों पर ईवीएम के माध्यम से मतदान कराया।
चंडी के मतदाताओं ने पहली बार ईवीएम मशीन को देखा था, उनमें ईवीएम मशीन को लेकर कौतूहल था। इससे मतदान प्रक्रिया भी आसान हो गई थी और मतों की गिनती बैलेट पेपर से जल्दी ही हो गया। जब चुनाव परिणाम आए तो परिणाम लगभग परवूर जैसे ही थे।
अनिल कुमार को अपने पिता की सहानुभूति लहर का फायदा नहीं मिला और हरिनारायण सिंह ने यहां से दूसरी जीत दर्ज की। हार के बाद अनिल कुमार ने वह प्रतिक्रिया नहीं दिखाई और न ही ईवीएम मशीन को लेकर कोई चुनौती कोर्ट में दी जो परवूर निर्वाचन में एसी जोश ने दिखाई थी।
बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 1984 में चुनाव आयोग ने ईवीएम के उपयोग को रोक दिया। इसे 1992 में संसद की मंजूरी मिलने के बाद फिर चालू किया गया। वर्ष 1998 के बाद से लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में ईवीएम का उपयोग किया जाने लगा।
जिस तरह से ईवीएम से मतदान को लेकर सवाल खड़े होते रहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। ईवीएम उस समय भी संदेह के घेरे में था जब इसका पहला प्रयोग हुआ था। बाद में चुनाव आयोग ने ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों के प्रयोग की बात शुरू की ताकि पारदर्शिता बनाई जा सके।
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