“आखिर किस आधार पर कहा जाए अच्छे दिन आ गए। अगर यही अच्छे दिन हैं, तो हमें पुराने दिन ही लौटा दे। कम से कम खुद भी खाते थे और हमें भी खिलाते थे...
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क (संतोष कुमार)। वैश्विक महामारी कोरोना के दूसरे लहर ने पूरे देश में कोहराम मचा रखा है। झारखंड के कई जिले बुरी तरह इस वैश्विक त्रासदी की मार झेल रहे हैं। जहां अस्पताल, बेड और डॉक्टर को लेकर अफरातफरी मचा हुआ है।
कोई श्रेय लेने के होड़ में लगा है, तो कोई टांग खींचने की होड़ में। कुल मिलाकर स्थिति भयावह हो चली है। मंत्री की आंखों के सामने मरीज दम तोड़ रहा है, तो विपक्ष एक साल का हिसाब मांग रहा है।
केंद्र से लेकर राज्य की सरकारें सत्ता बनाने और बिगाड़ने के खेल में उलझे हुए हैं। मंदिर- मस्जिद और संसद भवन के लिए फंड जुटाए जा रहे हैं, लेकिन के अस्पताल, स्कूल- कॉलेज की बात कोई नहीं कर रहा। शोसल मीडिया पर भी ऐसे सवालात उफ़ान मारने लगे हैं मगर जवाब देगा कौन ?
झारखंड के खरसावां में साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक रहे अर्जुन मुंडा ने राज खरसावां में 500 बेड के अस्पताल की आधारशिला रखी थी। 10 साल बाद भी यह अस्पताल सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है।
सरकारें आयीं और चली गई। आज भी क्षेत्र के लोगों को इस अस्पताल के पूरा होने का इंतजार है। वैश्विक महामारी के दौर में जब अस्पताल और बेड के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है, जरा सोचिए अगर यह अस्पताल बन गया होता तो लोगों को कितना बड़ा लाभ मिल रहा होता।
राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले पूछ रहे हैं खरसावां का अस्पताल क्यों नहीं बना।
सवाल भी यही है पिछले 10 सालों में यह अस्पताल क्यों नहीं बना। जबकि एकरारनामा के तहत दो सालों में इस अस्पताल को बनना था। पांच साल झारखंड में बीजेपी की सरकार रही। पिछले 6 सालों से केंद्र में बीजेपी की सरकार है।
स्थानीय सांसद और तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा केंद्र में मंत्री हैं। फिर सवाल किससे किया जाए ! राज्य के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि सभी निजी अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ेगी, कोई निजी अस्पताल धन दोहन न करे।
आपके पास विकल्प क्या बचे हैं। डॉक्टर्स आपने पास हैं नहीं। संसाधन आपने दिया नहीं, तो निजी अस्पताल धन दोहन क्यों न करें।
शिक्षा मंत्री बीमार पड़े हैं। निजी स्कूल मनमाने तरीके से फीस वसूली से लेकर कॉपी- किताब, स्कूल ड्रेस वगैरह के माध्यम से धन दोहन करने में जुटे हैं। फिक्र किसे हैं।