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समस्तीपुर एसपी को दलसिंहसराय कोर्ट ने दिखाया आयना, कहा- ‘नहीं है कानून की जानकारी, प्रशिक्षण लें’

बिहार राज्य के पुलिस महकमे में सामान्यतः देखी जा रही है कि उसके करींदे कानून की समझ से परे कार्य करने पर उतारु है। किसी मामले में अनुसंधानकर्ता या थानाध्यक्ष की अज्ञानता तो समझ में आती है कि वे प्रशिक्षण आदि के आभाव में खुद की ज्ञान में बढ़ोतरी नहीं कर पा रहे हों, लेकिन जब एक एसपी (आईपीएस) मामूली धाराओं को लेकर कोर्ट में ‘थेथरोलॉजी’ पर उतर आएं और शीर्ष अदालत के आदेश तक की तौहीन करने लगें तो फिर कानून के राज पर सवाल उठने स्वभाविक हैं.

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। दलसिंहसराय अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी तृतीय विवेक विशाल ने समस्तीपुर एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने माना है कि एसपी ढिल्लो को कानून की न तो जानकारी है और न ही अदालती प्रक्रिया या उसे प्रदत शक्तियों की। उनमें ज्ञान का अभाव है और उन्हें पुनः प्रशिक्षण लेनी चाहिए।

जज विवेक विशाल ने एसपी समस्तीपुर को अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया है और कहा है कि इस आदेश की प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर कारण बताएं कि आपके विरुद्ध क्यों न जिला एवं सत्र न्यायाधीश समस्तीपुर के कार्यालय के माध्यम से उच्च न्यायालय पटना को दिशा-निर्देशों का पालन न करने पर आपराधिक न्यायालय अवमानना ​​ के तहत कार्यवाही किया जाए।

अदालत ने यह भी लिखा है कि आपने (एसपी) अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत अदालत के अधिकार को भी नीचा दिखाया है। अतएव जानबूझकर अदालत का अपमान करने के लिए क्यों न आईपीसी की धारा 228 के तहत कार्यवाही शुरू की जाए।

अदालत ने इस आदेश की प्रति, एसपी समस्तीपुर के आलावे आईजी दरभंगा, जोनल आईजी को भी भेजी है। जिसमें यह भी उल्लेख है कि ‘अदालत के साथ संवाद कैसे करें, कानून की समझ कैसे बढ़ाएं’ बिन्दुओं पर एसपी समस्तीपुर को समुचित प्रशिक्षण की जरुरत है। इसके लिए अदालत ने एडीजी आपराधिक जांच विभाग पटना को सुनिश्चित किए जाने पर बल दिया है।

दरअसल, उजियारपुर थाना पुलिस ने भादवि की धारा 144,1 88, 338, 353 के तहत उजियारपुर थाना कांड संख्या-146/2021 के तहत अमित कुमार, ललन प्रसाद और उमेश चौधरी नामक तीन आरोपी को अदालत में पेश किया गया।

लेकिन अदालत यह देखकर हैरान रह गया कि थानाध्यक्ष उजियारपुर ने आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए) की धारा 56 व 81 के तहत मामला दर्ज कराया है। आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 56 के रूप में लागू है। जबिक सरकारी अधिकारी के खिलाफ इस अधिनियम में धारा 81 के रूप में कोई उल्लेख नहीं है।

वहीं, प्राथमिकी में उल्लेखित अन्य सभी धाराएं, 7 साल से कम सजा निर्धारित करती हैं। अर्नेश कुमार बनाम अन्य मामले में दिए गए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में अदालत ने पाया पुलिस के पास आरोपी व्यक्तियों को न्यायिक हिरासत में लेने के पर्याप्त आधार नहीं थे।

लेकिन पुलिस ने अदालत में पुलिस मुख्यालय से जारी पत्र के आधार पर बताया कि धारा 41 (ए) सीआरपीसी के अनुसार यदि कोई व्यक्ति संज्ञेय अपराध में कोई भी अपराध पुलिस कार्यालय की उपस्थिति में करते हैं तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाएगा। भले ही अपराध के लिए सजा किसी भी हद तक कम है।

वहीं एसपी ने अदालत को बताया कि धारा 41(1) सीआरपीसी  में अर्नेश कुमार वनाम राज्य मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के आलोक में कि यदि पुलिस कार्यालय के समक्ष कोई संज्ञेय अपराध किया जाता है, तो प्रावधान का 41(1) सीआरपीसी लागू नहीं है। इसकी सूचना पर तत्काल प्राथमिकी दर्ज की जाती है और इसीलिए पुलिस उपनिरीक्षक उजियारपुर मिथिलेश कुमार ने किसी भी आरोपी को गलत तरीके से गिरफ्तार नहीं किया।

यही नहीं, एसपी ने अदालत की मंशा को ही कानून के दायरे से बाहर बताया पारित आदेश को गलत भी बताया और कहा कि धारा 41(1) सीआरपीसी में आपका आदेश गलत था, इसलिए जांच रिपोर्ट जमा करने से पहले अधोहस्ताक्षरी यह सुनिश्चित करना चाहता था कि क्या कोई निर्णय/आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय या उच्च द्वारा पारित किया गया है धारा ४१ (१) में किसी भी राज्य की अदालत जिसमें कोई अपराध जिसमें ७ साल से कम की सजा हो, उसमें आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है?

इसपर अदालत ने माना कि एसपी समस्तीपुर को पता नहीं है कि कोर्ट को जवाब कैसे देना है या जानबूझकर अदालत के अधिकार को कम करने का प्रयास किया। जबकि पता होना चाहिए कि संविधान के तहत अधिकृत किसी भी अदालत द्वारा पारित कोई भी आदेश है न्यायालय का आदेश है और यह न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का व्यक्तिगत हैसियत से आदेश नहीं है।

अदालत ने किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय थानाध्यक्ष उजियारपुर और अनुसंधानकर्ता को सावधान रहने की सख्त चेतावनी देते हुए अर्नेश कुमार बनाम राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया है।

 

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