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बिगड़ता बिहारः लोकगायिका देवी को ‘रघुपति राघव राजाराम’ गाना पड़ा महंगा!

वेशक यह घटना बिहार के बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को दर्शाती है। एक समय था, जब भजन और धार्मिक गीत बिना किसी विवाद के सामाजिक सौहार्द का प्रतीक होते थे। लेकिन आज धार्मिक और सांप्रदायिक भावनाएं इतनी संवेदनशील हो गई हैं कि एक प्रसिद्ध भजन भी विवाद का कारण बन सकता है

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान बापू सभागार में आयोजित ‘मैं अटल रहूंगा’ कार्यक्रम में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम ने सबका ध्यान खींचा है। यह कार्यक्रम भारतरत्न मदन मोहन मालवीय की जयंती और भारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित किया गया था। लेकिन चर्चा का विषय बना लोकगायिका देवी का वह एक भजन, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काफी निष्ठा से गाते थे।

इस कार्यक्रम में बिहार और देश भर के कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए थे। लोकगायिका देवी को इस विशेष अवसर पर अपनी प्रस्तुति देने के लिए बुलाया गया था। दोपहर करीब दो बजे देवी ने ‘भारत माता की जय’ और ‘अटल बिहारी वाजपेयी अमर रहे’ के नारे लगाते हुए अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की।

इसके बाद उन्होंने फिर प्रसिद्ध भजन ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम’ गाया। जब देवी ने इस भजन के हिस्से ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ को गुनगुनाना शुरू किया तो सभागार में बैठे भाजपा के युवा कार्यकर्ताओं ने विरोध शुरू कर दिया।

वे ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ के बोल सुनते ही अपने स्थान से खड़े होकर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने लगे। विरोध के इस अप्रत्याशित स्वरूप ने कार्यक्रम की गरिमा को क्षणिक रूप से बाधित कर दिया। इस पर देवी ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भगवान हम सभी के हैं और मेरा उद्देश्य केवल राम को याद करना था।

इस विषम परिस्थिति को शांत करने के प्रयास में देवी ने भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का उल्लेख किया। उन्होंने समझाने का प्रयास किया कि हिंदू धर्म की व्यापकता सभी को अपने में समाहित करती है। उन्होंने कहा कि यह भजन किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं गाया गया था। अगर आपके दिल को ठेस पहुंची है तो मैं सॉरी कहती हूं।

हालांकि यह माफी भी भाजपा के युवा कार्यकर्ताओं को संतुष्ट नहीं कर पाई। वे लगातार नारे लगाते हुए बाहर निकलने लगे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए आयोजकों को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने मंच से अपील की कि हम सभी भारत माता की संतान हैं और इस तरह का व्यवहार हमारे संस्कृति और कार्यक्रम की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

इसके बाद देवी ने मंच पर मौजूद सभी को संबोधित करते हुए ‘जय श्री राम’ का नारा लगाया। इसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा को याद करते हुए ‘छठी मैया आई ना दुअरिया’ गाया। इस प्रस्तुति के साथ उन्होंने कार्यक्रम से विदा ले ली। 

सवाल उठता है कि क्या हमारे समाज में धार्मिक सहिष्णुता का पतन हो रहा है, जहां एक भजन भी विवादित बन जाता है? क्या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में राजनीति का प्रवेश सामाजिक सौहार्द को बाधित कर रहा है? क्या कलाकारों को अपने कला प्रदर्शन में स्वायत्तता दी जानी चाहिए या उन्हें सामाजिक और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपने चयन में बदलाव करना चाहिए?

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