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बिहार शिक्षा विभागः  20 साल बाद 7 फर्जी शिक्षक बर्खास्त

सीतामढ़ी (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार शिक्षा विभाग ने सीतामढ़ी जिले के बथनाहा प्रखंड के विभिन्न सरकारी स्कूलों में वर्षों से सेवा दे रहे दो शिक्षक और पांच शिक्षिकाओं को फर्जी शैक्षणिक और प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी पाने के कारण बर्खास्त कर दिया गया है। ये शिक्षक और शिक्षिकाएं एक से करीब दो दशक तक अपनी सेवाएं देते रहे। लेकिन हाल ही में निगरानी विभाग द्वारा की गई जांच में इनके प्रमाण-पत्र फर्जी पाए गए।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद जांच में हुआ खुलासाः नियोजन इकाई द्वारा इन शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों की जांच की गई। जो हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में निगरानी विभाग द्वारा संचालित की गई थी। यह जांच विशेष रूप से उन शिक्षकों के शैक्षणिक और प्रशैक्षणिक प्रमाण-पत्रों की सत्यता की पुष्टि के लिए की गई थी। जिनकी नौकरी प्रक्रिया के दौरान संदेह उत्पन्न हुआ था।

वर्षों की सेवा के बाद सामने आई सच्चाईः जांच के दौरान बथनाहा प्रखंड के दो शिक्षक और पांच शिक्षिकाओं के प्रमाण-पत्रों को अवैध पाया गया। इन शिक्षकों के खिलाफ पिछले वर्ष 2023 में चार प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जबकि चालू वर्ष 2024 में तीन और शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की गई। इस धोखाधड़ी के सामने आने के बाद, नियोजन इकाई ने इन सभी शिक्षकों को सेवा से बर्खास्त कर दिया। जो कभी इन्हें नियुक्त करने की जिम्मेदार थी।

फर्जी शिक्षकों ने धोखे से हासिल की नौकरीः ध्यान देने वाली बात यह है कि ये शिक्षक और शिक्षिकाएं एक दशक से भी अधिक समय तक विभिन्न स्कूलों में पढ़ा रहे थे। लेकिन उनके प्रमाण-पत्र फर्जी थे। वर्षों बाद जब निगरानी विभाग ने इनके दस्तावेजों की जांच की तो यह धोखाधड़ी का मामला उजागर हुआ। इस दौरान इन शिक्षकों ने अपने फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर वेतन प्राप्त किया और सरकारी नौकरी का लाभ उठाया।

कड़ी कार्रवाई के संकेतः इस मामले के उजागर होने के बाद अब जिला प्रशासन और निगरानी विभाग अन्य शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों की जांच को भी और सख्ती से कर रहा है। फर्जी प्रमाण-पत्रों के जरिए नौकरी पाने वाले अन्य शिक्षकों के खिलाफ भी जल्द ही कड़ी कार्रवाई होने की संभावना है।

नियोजन इकाई की भूमिका पर भी सवालः यह मामला सिर्फ फर्जी शिक्षकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने नियोजन इकाई की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जिस इकाई ने इन शिक्षकों को नियुक्त किया, उसी इकाई ने उन्हें वर्षों बाद सेवा से हटा दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि नियुक्तियों के समय प्रमाण-पत्रों की जांच प्रक्रिया में गंभीर खामियां रही होंगी।

वेशक, फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाले इन शिक्षकों की बर्खास्तगी ने शिक्षा विभाग में व्याप्त अनियमितताओं की पोल खोल दी है। यह घटना शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। ताकि भविष्य में ऐसी धोखाधड़ी को रोका जा सके और योग्य उम्मीदवारों को ही नियुक्ति मिल सके।

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