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कुत्ता के बाद अब ट्रैक्टर का बना निवास प्रमाण पत्र!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़)। बिहार में प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता फिर सवालों के घेरे में है। पटना के मसौढ़ी अंचल से एक कुत्ता के नाम पर निवास प्रमाण पत्र जारी होने का मामला ठंढा भी नहीं हुआ है कि अब मुंगेर से एक और हैरान करने वाली घटना सामने आई है। यहाँ एक ट्रैक्टर के नाम पर निवास प्रमाण पत्र जारी किया गया है। जिसने न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि सरकारी दस्तावेजों की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

दरअसल, 8 जुलाई 2025 को मुंगेर अंचल कार्यालय से एक निवास प्रमाण पत्र जारी किया गया, जिसमें नाम दर्ज था सोनालिका सिंह, पिता का नाम बेगूसराय चौधरी, माता का नाम बालिया देवी और पता तरकटोरा पुर दियारा, वार्ड संख्या-17, डाकघर-कुत्तापुर।

इस प्रमाण पत्र पर अंचल अधिकारी प्रभात कुमार का डिजिटल हस्ताक्षर भी मौजूद था। प्रमाण पत्र की संख्या BRCCO/2025/14127367 थी और जब इसे RTPS (Right to Public Services) पोर्टल पर सत्यापित किया गया तो यह पूरी तरह वैध प्रतीत हुआ। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सोनालिका सिंह कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ट्रैक्टर का नाम है!

यह घटना कई गंभीर सवाल उठाती है। क्या यह केवल एक तकनीकी गड़बड़ी थी, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है? क्या अंचल कार्यालय में दस्तावेजों की जाँच और सत्यापन की प्रक्रिया इतनी कमजोर है कि एक निर्जीव वस्तु के नाम पर प्रमाण पत्र जारी हो सकता है? और सबसे बड़ा सवाल क्या सरकारी दस्तावेजों की विश्वसनीयता अब इतनी कम हो गई है कि कोई भी फर्जी दस्तावेज बनाकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकता है?

पटना जिले में कुत्ते के नाम पर प्रमाण पत्र का मामला अभी लोगों के जेहन में ताजा था, और अब यह नया मामला प्रशासनिक सिस्टम की खामियों को और भी उजागर करता है। यह न केवल लापरवाही का परिणाम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि तकनीकी सिस्टम में कितनी आसानी से छेड़छाड़ हो सकती है।

आज के डिजिटल युग में जहाँ आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों के लिए कड़े सत्यापन प्रक्रियाएँ लागू की गई हैं, वहाँ इस तरह की घटनाएँ तकनीकी सिस्टम की असुरक्षा को उजागर करती हैं। RTPS पोर्टल, जिसे पारदर्शिता और सुविधा के लिए बनाया गया था, अब सवालों के घेरे में है।

क्या इस पोर्टल पर पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं हैं? क्या डिजिटल हस्ताक्षरों की जाँच के लिए कोई मजबूत तंत्र नहीं है? यह घटना यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या अन्य फर्जी दस्तावेज भी इसी तरह सिस्टम में मौजूद हैं, जिनका अभी पता नहीं चला?

ऐसी घटनाएँ न केवल प्रशासनिक तंत्र की साख को ठेस पहुँचाती हैं, बल्कि जनता का सरकारी संस्थाओं पर विश्वास भी कम करती हैं। जब लोग आधार कार्ड या निवास प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों के लिए लंबी प्रक्रियाओं से गुजरते हैं, तब ऐसी खबरें उन्हें निराश करती हैं। सवाल उठता है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों को और अधिक सजग और जवाबदेह होने की आवश्यकता नहीं है? क्या तकनीकी सिस्टम को और मजबूत करने की जरूरत नहीं है, ताकि ऐसी घटनाएँ दोबारा न हों?

यह मामला केवल मुंगेर तक सीमित नहीं है। यह पूरे प्रशासनिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो भ्रष्टाचार और अराजकता की यह खाई और गहरी हो सकती है।

कुछ संभावित समाधान हो सकते हैं। दस्तावेज जारी करने से पहले मैनुअल और डिजिटल दोनों स्तरों पर सत्यापन को और सख्त करना होगा। RTPS जैसे पोर्टलों में उन्नत सुरक्षा उपाय, जैसे- बायोमेट्रिक सत्यापन या AI-आधारित विसंगति पहचान, लागू किए जा सकते हैं।

ऐसी गलतियों के लिए संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। लोगों को फर्जी दस्तावेजों के खतरों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है, ताकि वे ऐसी योजनाओं का शिकार न बनें।

क्योंकि मुंगेर का यह ट्रैक्टर निवास प्रमाण पत्र मामला हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन इसके पीछे छिपी गंभीर समस्याएँ चिंताजनक हैं। यह प्रशासनिक लापरवाही, तकनीकी असुरक्षा और भ्रष्टाचार की तिकड़ी को उजागर करता है। यदि बिहार का प्रशासनिक तंत्र अपनी साख और जनता का विश्वास बनाए रखना चाहता है तो उसे तुरंत इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

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