“जनतंत्र की परंपरा जिस तरह बौद्ध, जैन आदि संप्रदायों के अलावे हमारे प्राचीन काल के सभी व्यवहारों में दिखाई दी। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने भी उसी के आधार पर उन जनतांत्रिक परंपराओं को संविधान में समाहित किया…
राजगीर (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। भगवान बुद्ध के संदेश हमारे जनतंत्र के लिए परिलक्षित होता है। बुद्ध ने जिस पद्धति से अपने अनुयायियों को सीख दी। बुद्ध द्वारा दिए संदेश में भी जनतंत्र की परिकल्पना परिलक्षित होती है।
उक्त बातें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोंविद ने नालंदा विश्वविद्यालय परिसर स्थित सुषमा स्वराज ऑडिटोरियम में शुक्रवार को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद भारत सरकार द्वारा आयोजित, वैशाली फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में कहीं।
उन्होंने आगे कहा कि जनतंत्र की परंपरा जिस तरह बौद्ध, जैन आदि संप्रदायों के अलावे हमारे प्राचीन काल के सभी व्यवहारों में दिखाई दी। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने भी उसी के आधार पर उन जनतांत्रिक परंपराओं को संविधान में समाहित किया।
पूर्व महामहिम ने आगे कहा कि जनतांत्रिक परंपराओं में हम विचार विमर्श, मंडन खंडन जो भी करते रहे हैं। और कहीं भी किसी भी पद्धति की अलोकतांत्रिक या तानाशाही को यहां हमने प्रश्रय नहीं दिया। हमने यहां हर समय जनतांत्रिक तरीके से हीं निर्णय किए। जनतांत्रिक तरीके से हीं अपनी बातों को समाज के सम्मुख रखा और दुनिया को बताया। जिसके कारण हमारा देश जनतंत्र की जननी बनता है। जनतांत्रिक की परंपराएं यहीं से शुरू हुई। और दुनिया भर में फैली है।
वहीं, बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि भारत जनतंत्र की जननी है। यह तो हम कहते ही हैं। मगर इस गणतंत्र का जन्म स्थान बिहार है और बिहार का वैशाली इसका मुख्य स्थान है। यहां जिस प्रणाली से जैन मत, बुद्ध मत के अलावे जो भी धाराएं यहां पर पनपी और विकसित हुई । उसमें तरह तरह के मत होने से जनतंत्र के लिए महत्वपूर्ण परिवर्तन यहां के भूमि पर देखा गया है। जिसे पूरे विश्व ने देखा और समझा है।
उन्होंने आगे कहा कि इस लिहाज से इस भूमि का अपना एक विशेष महत्व है। और आईसीसीआर ने द्वारा इसे वैशाली फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी की संज्ञा देना तथा इसका आयोजन नालन्दा में कराना बड़ी बात है। इसे आगे भी निरंतर कराते रहने की आवश्यकता है। और जनतंत्र विषय की पढ़ाई से संबंधित पाठ्यक्रम भी जारी करना चाहिए।
केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि लोकतंत्र, जनतंत्र हमारे देश की आत्मा है। उन्होंने जनतंत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि यह हमारे पुराणों, प्राचीन ग्रंथों, विभिन्न त्यौहारों आदि में गणतंत्र समाहित है। सभा, समिति, संसद के शब्द हमारे ऋग्वेद, अर्थववेद में मिलते हैं।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद भारत सरकार के प्रेसिडेंट विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि जनतंत्र केवल विधानसभा या लोकसभा नहीं है। जनतंत्र हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। क्योंकि ये हमारी संस्कृति से संबंध रखता है। हम घर में भी जनतांत्रिक तरीके से अनुशासन के साथ हर रिश्ते का मान सम्मान करते हैं। जिसमें व्यक्ति की प्रतिष्ठा को सम्मान देते हैं। जनतंत्र और संस्कृति के इन दो धाराओं का जब सम्मेलन हुआ तब वह बिहार कहलाया।
उन्होंने बताया कि जयप्रकाश नारायण ने भी इसी परंपरा का निर्वहन किया। उन्होंने उसी तर्ज पर बौद्ध और जैन सहित बाकी परंपराओं ने एक दूसरे से विकसित होते हुए देखा था। उसी संस्कार के कारण तानाशाही के खिलाफ जंग छेड़ने की प्रेरणा जयप्रकाश नारायण को मिली। और उनकी जन्मभूमि सारण जो वैशाली जिला स्थित है। उस भूमि का वंदन करना चाहिए।
इसी प्रकार से असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा, नेपाल, चिल्ली, इजिप्ट अर्जेंटीना, श्रीलंका, नेपाल व अन्य देशों के राजदूत आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
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