पटना। (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क ब्यूरो)। सीएम नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि जो वह काम बाएं हाथ से करते हैं उसकी खबर दाएं हाथ को भी नहीं होती है। यही कारण है कि कभी -कभी राजनीतिक पंडित भी उनके निर्णय से मात खा जाते हैं। उनकी भविष्यवाणी असफल रहती है।
कुछ ऐसी अटकलें फिर से राजनीतिक गलियारे में उठने लगी है कि सीएम नीतीश कुमार ने अणे मार्ग से अपना डेरा डंडा सात सर्कुलर ले आएं हैं। इसके पीछे की मंशा क्या है? क्या बिहार में सता समीकरण के नये फूल खिलने वाले हैं? इससे पहले राजद द्वारा दिए गए इफ्तार पार्टी में उनका जाना, लालू परिवार के सदस्यों के साथ बैठना, बातचीत करना भाजपा को बेचैन कर गया।
अप्रैल माह में जितनी गर्मी पड़ रही है उससे ज्यादा तापमान बिहार की राजनीति में सुलग रहा है।एक अणे मार्ग खाली करने के पीछे उनकी मंशा क्या है? यह सिर्फ महज एक मतलब है या फिर आने वाले दिनों में वे मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे?
सवाल यह भी उठ रहा है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री भाजपा का हो या राजद का लेकिन अब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं नहीं रहेंगे! वैसे नीतीश कुमार ने जब उन्होंने अपना उत्तराधिकारी जीतनराम मांझी को बनाया था तब भी वे एक अणे मार्ग में नहीं रह रहे थे।
सीएम नीतीश कुमार के राजद के इफ्तार पार्टी में शामिल होने के बाद से बिहार की राजनीति हलचल तेज हो गई है। पटना से दिल्ली तक उनके इस फैसले से सब चौंक से गये।
भले ही सीएम नीतीश कुमार की तरफ से आवास बदलने की जो बातें सामने निकल कर आ रहीं है उनके अनुसार इन सब का कोई राजनीतिक मायने नहीं है। लेकिन सब जानते हैं कि राजनीति में ऐसे बहानों के बीच बहुत कुछ बदलता है।
सियासी गलियारे में खबरें छन कर आ रही है, उसके अनुसार लगभग तय है कि आने वाले कुछ हफ्तों के अंदर वे किसी दूसरी भूमिका पर काम करेंगे। देखा जाएं तो पिछले कुछ माह से एनडीए के नेताओं द्वारा बयानबाजी, सीएम पद को लेकर अटकलें लगती रही है। उन सब से नीतीश कुमार का मन सीएम पद से उचटता दिख रहा है।
अगर कहें कि उन्होंने आवास के साथ-साथ अपने दिल दिमाग से भी इस पद का त्याग कर दिया है तो कोई ग़लत नहीं होगा।
यह बात अब उच्च स्तरीय राजनीतिक हलकों में बिल्कुल साफ हो गई । कुछ करीबी मित्रों को भी सुशासन बाबू ने इशारे से यह बता दिया कि आने वाले कुछ हफ्तों के अंदर ही वे अपनी दूसरी भूमिका पर काम शुरू करेंगे।
मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना पूरा हो गया। बिहार में सबसे लंबी अवधि तक मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा हुआ। श्री कृष्ण सिंह से लेकर लालू प्रसाद तक के सभी का रिकॉर्ड उन्होंने तोड़ दिया।
दूसरी और यह बात भी साफ हो गई है कि अब भगवा ब्रिगेड ने उनका जीना मुश्किल कर दिया है। 42 सीटों के सहारे तेज आक्रमक सांप्रदायिक शक्तियों से मुकाबला संभव नहीं है। भगवा ब्रिगेड बेहद आक्रमक, हमलावर है और सहयोगी रूप में ही नए-नए दांवपेच दिखा रहा है।
पिछले महीने ही बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री के नये चेहरे के रूप में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का नाम उछाल कर जदयू पर प्रेशर डाला गया था। नित्यानंद राय को बिहार में बीजेपी सीएम चेहरा बनाकर तेजस्वी यादव को पछाड़ने के लिए यादव मुख्यमंत्री का पासा फेंक कर वह कई शिकार करना चाह रही है।
भाजपा नीतीश कुमार को केंद्र में उपराष्ट्रपति का पद देकर बिहार की अपनी राह आसान करना चाह रही है। क्योंकि बीजेपी की राह में नीतीश कुमार ही सबसे बड़ा रोड़ा है।
चर्चा तो यह भी रही कि भाजपा नीतीश कुमार को वह ‘राजनीतिक मौत’ देगी, जो सदियों याद रखी जाएगी। वैसे नीतीश कुमार शुरू से ही समाजवादी सोच के रहें हैं। ऐसे में उनका लोहियावाद और मंडलवाद जाग जाना ही उनकी राजनीति पूंजी कहलाएगी। वरना उन्होंने जो पिछले 17-18 साल में बतौर मुख्यमंत्री जो राजनीतिक शौहरत कमाई है, वह एक झटके में खत्म भी हो सकती है।
सीएम नीतीश कुमार के राजद के दावत-ए-इफ्तार में जाना भी महज एक इतिफाक नहीं था।खुद तेजप्रताप यादव ने दस दिन पूर्व ही इसकी सूचना सार्वजनिक कर दी थी कि नीतीश चाचा का स्वागत है। अंदर खाने में काफी हद तक उनकी लालू प्रसाद से दोस्ती ताजा हो गई है। चंद बिंदुओं पर ही विचार विमर्श को फाइनल बनाया जा रहा है।
अगर सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्द ही राजद से ही कोई मुख्यमंत्री बनेगा।दूसरी ओर उनकी ओर से प्रशांत किशोर कांग्रेस एवं दक्षिण भारत के कई मुख्यमंत्री लाबिंग कर रहे हैं। प्रशांत किशोर का तीर अगर निशाने पर लगा तो विपक्ष के खेमे से भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार निश्चित रूप से एक जुआ खेलना पसंद करेंगे। क्योंकि जिंदगी में उन्होंने लगभग सभी कुछ हासिल कर लिया है। उम्र के इस पड़ाव में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति इन्हीं दो पदों पर जुआ खेला जा सकता है।
दोनों पदों के लिए उन्होंने रास्ते खुले रखें हुए हैं। इसीलिए एक और राजद के इफ्तार में जाते हैं, दूसरी ओर अमित शाह का भी बिना आमंत्रण के हवाई अड्डे जाकर स्वागत करते हैं। प्रेशर पॉलिटिक्स में माहिर नीतीश कुमार अपना दोनों दांवपेच दिखाकर विरोधियों को सकते में डाले हुए हैं।
फिर भी आंतरिक सूत्रों का दावा है कि उनकी राजनीति अब भी तेजस्वी प्रसाद यादव को की ताजपोशी को लेकर ही है। इसी ओर ही उनका मूड फिलहाल झुका हुआ है। क्योंकि वे नित्यानंद राय के सहारे यादव समाज के विशाल वोट बैंक पर कब्जे की छूट ना वे दे सकते हैं , ना तेजस्वी दे सकते हैं। लिहाजा देखना है कि तेजस्वी के पक्ष की राजनीति कितनी देर में फलीभूत होती है।
क्योंकि इस बार मंडल वादी राजनीति का मुखर विरोध ना राजपूत कर रहे हैं ना भूमिहार कर रहे हैं। बल्कि लगभग सभी सवर्ण जातियां फिलहाल जदयू और राजद के पक्ष में ही दिख रही हैं।
लिहाजा भाजपा को यहां अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए भीषण जोड़-तोड़ , तिकड़म और मेहनत करनी पड़ेगी। बल्कि कुछ उच्चस्तरीय लोगों का मानना है कि सिर्फ सृजन घोटाला के षड्यंत्र पक्ष की जांच में निर्णायक राजनीतिक गिरफ्तारी ही नए विपक्षी गोलबंदी को रोक सकती है।
देखा जाए तो सीएम नीतीश कुमार कुमार बिहार की राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाते हैं,वे अन्य राजनीतिज्ञो से कोसों दूर की सोच रखते हैं,कब विरोधी को चित करना और और कब दोस्ती कर लेनी चाहिए इसमें उन्हें महारथ हासिल है।
बिहार की राजनीति के गेंद नीतीश कुमार के पाले में है। यह आने वाले समय में ही पता चलेगा कि पाटलिपुत्र से हस्तिनापुर की दौड़ में वे हैं या नहीं! फिलहाल बिहार की दिलचस्प राजनीति का मजा लेते रहिए !
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