पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज ब्यूरो )। साल के पहले ही दिन बड़े पैमाने पर 23 आइपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया गया है।
IPS गरिमा मलिक को पटना एसएसपी बनाया गया है, जबकि पटना एसएसपी मनु महाराज को प्रमोशन देते हुए मुंगेर का डीआइजी बनाया गया है।
कटिहार में बिहार सैन्य पुलिस-7 के समादेष्टा बाबू राम को दरभंगा का एसएसपी, कटिहार एसपी विकास कुमार को बीएमपी-7 के कमांडेंट का अतिरिक्त प्रभार, मुजफ्फरपुर एसएसपी मनोज कुमार को बीएमपी- 6 एवं बगहा बीएमपी 15 के समादेष्टा का अतिरिक्त प्रभार, सीआइडी एसपी (डी) नवल किशोर सिंह को विशेष शाखा का डीआइजी, विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक(अ) अशोक कुमार को सीआइडी में डकैती निरोध का डीआइजी, आइजी (कल्याण) के सहायक राजेश त्रिपाठी को पूर्णिया रेंज के डीआइजी, एटीएस एसपी एम सुनील नायक को एटीएस डीआइजी बनाया गया है।
पटना की नयी एसएसपी गरिमा मल्लिक 2006 बैच की आइपीएस है। गरिमा ने फरीदाबाद के एक स्कूल में पढ़ते हुए ही आइएएस अफसर बनने का सपना देखा और ग्रेजुएशन के बाद तैयारी में जुट गईं।
आइएएस एस्पिरेंट्स के गढ़ दिल्ली के मुखर्जीनगर में कमरा लिया और एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। साल 2005 का वर्ष था। उन्होंने पहली ही कोशिश में UPSC का एग्जाम में सफलता हासिल कर 61वा रैंक लाई।
वह आइएएस नहीं हो पाईं तो अपनी दूसरी चॉइस आइपीएस चुना। उन्हें बिहार कैडर मिला। उन्होंने आइएएस अफसर बनने के लिए दोबारा एग्जाम न देने का फैसला किया।
वह बिहार की ईमानदार, विनम्र और काबिल पुलिस अफसरों में गिनी जाती हैं। महकमे के भीतर चर्चा है कि नीतीश कुमार उन पर भरोसा करते हैं। उन्हें हमेशा चैलेंजिंग काम दिए गए हैं और उनकी परफॉर्मेंस अच्छी रही।
गया की एसएसपी रहते हुए उन्होंने जदयू एमएलसी मनोरमा देवी और उनके बेटे रॉकी यादव को चर्चित रोड रेज मामले में गिरफ्तारी कर एक मिसाल पेश की थी।
लेकिन एक ऐसी घटना भी रही, जिसे उनके कैरियर के लिए ‘धब्बा’ कहा जा सकता है। 2011 में फारबिसगंज में हिंसक हो चुकी भीड़ पर एक विवादित पुलिस फायरिंग हुई थी।
गांव के लोग वहां सड़क बनाने की मांग कर रहे थे और बन रही थी एक फैक्ट्री। फैक्ट्री अधिकारियों और गांव वालों के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें वे एक दूसरा रास्ता बनाने पर राजी हो गए।
लेकिन 3 जून 2011 को भीड़ ने फैक्ट्री पर हमला बोल दिया। फैक्ट्री की दीवार गिरा दी गई। पुलिस ने भीड़ को लाठीचार्ज से रोकने की कोशिश की, लेकिन जब यह तरीका बेअसर रहा तो फायरिंग हो गई।
इस फायरिंग में दो लोगो की मौके पर ही मौत हो गई और दो अन्य घायलों ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था। मुख्यमंत्री ने न्यायिक जांच के आदेश दिए।
गरिमा मलिक पर भी गाज गिरी।अररिया से ट्रांसफर करके उन्हें दरभंगा भेज दिया गया ट्रांसफर तो हुआ लेकिन उनका प्रमोशन कर। उन्हें एसपी से वरीय एसपी के पद पर। दरभंगा के बाद उन्हें गया का एसएसपी बनाया गया ।
कहा जाता है कि गया एसएसपी रहते हुए एक बार वह जिले के माओवाद प्रभावित उन गांवों में पहुंच गईं, जिन्हें माओवादी ‘लिबरेटेड ज़ोन’ कहते हैं। इन इलाकों में कानून कमजोर है और माओवादियों का रूल ज्यादा चलता था।
वहां हथियारबंद माओवादी अपनी जन अदालतें लगाते थें। पुलिस के मुखबिरों को शूट कर दिया जाता था। गरिमा हेलिकॉप्टर में बैठकर वहां पहुंच गईं थी। उनके हौसले से जनता के बीच पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ा और माओवादियों की हनक कम हुई।
फिलहाल पटना एसएसपी के तौर पर नये साल में उनकी चुनौतियाँ कम नहीं है। पटना में आउट ऑफ कंट्रोल हो चुके क्राइम पर अंकुश लगाना उनकी पहली प्राथमिकता होगी।
हालांकि समूचे बिहार में हाल के दिनों में अपराध चरम पर पहुंच चुका है और रोजाना हत्याएं, लूट, अपहरण आदि हो रहे हैं ,ऐसे में 23 आईपीएस अधिकारियों के तबादले के बाद क्या अपराध पर लगाम लगेगा यह बहुत बड़ा सवाल है ?