“अररिया के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव के कई मायने है। अररिया लोकसभा चुनाव के बाद जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव सीएम नीतीश कुमार के लिए साख का सवाल है। 70 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाले इस क्षेत्र का उपचुनाव सत्ता तथा विपक्ष के लिए अहम् माना जा रहा है।”
पटना (जयप्रकाश नवीन)। अररिया के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान संपन्न हो गया है। मतदाताओं ने सभी नौ उम्मीदवारों के भाग्य ईवीएम में बंद कर दिया है। जिनके भाग्य का फैसला 31 मई को होगा ।
सता पक्ष के सामने अपनी सीट को बरकरार रखने की चुनौती है तो महागठबंधन के सामने कठिन परीक्षा की घड़ी है। सभी नौ उम्मीदवारों में आठ मुस्लिम तो एक हिन्दू शामिल है।
जोकीहाट विधानसभा से जदयू के विधायक सरफराज आलम थें, जो अपने पिता के इंतकाल के बाद जदयू से इस्तीफा देकर राजद में शामिल होकर अररिया लोकसभा सीट जीतकर अपनी विरासत को कायम रखा है।
सरफराज आलम के इस्तीफे के बाद खाली हुए इस सीट पर राजद ने सरफराज आलम के भाई और दिवंगत तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र शहनवाज आलम को चुनाव मैदान में उतारा है।
वही जदयू ने मुर्शीद आलम को मैदान में उतारा है। मुर्शीद आलम जदयू के लिए गले की फांस बनेंहुए हैं।
जदयू प्रत्याशी पर कई संगीन आरोप भी है। मो आलम पलासी प्रखंड के मियापुर पंचायत के पूर्व मुखिया भी रह चुके हैं। जदयू प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने पहुँचे सीएम नीतीश कुमार को जनता के बीच सफाई देनी पड़ी कि प्रत्याशी का नाम स्थानीय लोगों के सुझाव से ही दिया गया है।
इधर प्रतिपक्ष के नेता पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान सीएम और स्थानीय जदयू उम्मीदवार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सुशासन बाबू के उम्मीदवार मूर्ति चोर हैं, उन पर सामूहिक दुष्कर्म और हत्या जैसे संगीन मामले दर्ज है।
जोकीहाट विधानसभा पारंपरिक तौर पर जदयू का गढ़ रहा है। यहां 2005 से लगातार जदयू उम्मीदवार की जीत होती रही है। हालांकि, इस बार जोकीहाट में जदयू उम्मीदवार मुर्शीद आलम को आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज आलम से कड़ी टक्कर मिल रही है। जोकीहाट का एक और इतिहास रहा है कि यहां एक ही परिवार का दबदबा रहा है।
‘सीमांचल के गांधी’ से लोकप्रिय मो तस्लीमुद्दीन के परिवार ने 14 विधानसभा चुनाव में यहां 9 बार अपना कब्जा जमाया है। यह अलग बात है कि उनका परिवार अलग -अलग दल से चुनाव जीतते रहे हैं। मो तस्लीमुद्दीन ने चार बार तो उनके पुत्र सरफराज आलम दो बार पार्टी बदल चुके हैं ।
जदयू यहाँ से लगाकर चार बार चुनाव जीत चुकी है।ऐसे में अपने जीत को लेकर जदयू के उम्मीदवार आश्वस्त दिख रहे हैं तो दूसरी तरफ जदयू को अपनी यह सीट सुरक्षित रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। वही तस्लीमुद्दीन परिवार का दबदबा खत्म करना जदयू के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
नीतीश कुमार के लिए जोकीहाट विधानसभा सीट जीतना साख का सवाल बन गया है, क्योंकि पिछले 4 बार से यहां पर जदयू के उम्मीदवार जीतते रहे है। लेकिन पिछले साल आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने का उनका फैसला उनकी साख पर बट्टा लगा सकता है।
जोकीहाट की जनता में सीएम नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी इस बात को लेकर है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की मदद से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उन्होंने बीच में लालू को धोखा दिया और बीजेपी के साथ मिल गए। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि नीतीश कुमार से उनकी कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन राजद को वोट देना उनकी मजबूरी है।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा आखिर नीतीश कुमार जोकीहाट को बचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं? अगर इस सीट पर उनकी जीत होती है तो भाजपा के साथ उनके गठबंधन करने को कहीं ना कहीं जनता की मुहर के रूप में देखा जाएगा।
अगर वह चुनाव हार जाते हैं तो इसे उस फैसले के जवाब के रूप में देखा जाएगा जब उन्होंने महागठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई।
वहीं अगर राजद इस उपचुनाव को जीत जाता है तो प्रतिपक्ष नेता तेजस्वी यादव का कद निश्चित रूप से बढ़ेगा। उन्हें एक नई ऊर्जा का संचार होगा।
सोमवार को जोकीहाट की मतदाताओं ने सभी नौ उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला कर दिया है ।फिलहाल उनका भाग्य ईवीएम में बंद है। जनता ने किसे जीत का आर्शीवाद दिया है इसका पता 31 मई को चलेगा।