“बिहार के सीएम नीतिश कुमार के काफिला पर हुये कातिलाना हमला कोई मामूली घटना नहीं है। सरकार, विकास और राजनीति की धरातल पर इसकी गहन पड़ताल कर उसके मूल कारणों को स्पष्ट करना जरुरी है। ताकि भविष्य में ऐसी दुष्प्रवृति कहीं देखने को न मिले।”
-: मुकेश भारतीय :-
बिहार विकास समीक्षा यात्रा पर निकले सीएम नीतिश कुमार के सरकारी काफिले पर बक्सर जिले के नंदन गांव के पास जिस तरह के हमले हुये हैं, उसकी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जितनी भी निंदा की जाये, वह कम है।
लेकिन यहां सिर्फ निंदा से काम चलने वाला नहीं है। क्योंकि हमला सीधे सीएम पर हुआ है, उनकी सरकार पर हुआ है। जिन्हें विकास पुरुष और सुशासन का सर्वनाम मिलता रहा है।
सीएम के काफिले पर हुये हमले से जुड़े दर्जन भर वीडियो माइक्रो ब्लॉगिंग सोशल साइटों पर खूब वायरल हो रही है। गौर से देखने पर हर वीडियो में कहानी साफ छुपी है। नीतिश जी जिस प्रशासन तंत्र के बल सुशासन और सुरक्षा का दंभ भरते हैं, वही पूर्णतः निकम्मा नजर आता है।
हम मानते हैं कि बिहार जैसे प्रांत के हर गांव में अपनी अपनी ज्वलंत समस्याएं हैं। नंदन गांव एक हिस्से में दलित बस्ती है। कहा जाता है कि सीएम पहले दलित बस्ती में आकर हमारा हालचाल जानें, फिर आगे जाएं। ऐसा न होने पर उक्त बस्ती के लोगों ने सीएम के काफिले पर भारी तादात में ईंट-पत्थर फेंकने शुरु कर दिये। इस हमले में सीएम समेत अनेक सरकारी वाहन क्षतिग्रस्त हो गये। दर्जन भर लोगों को गंभीर चोटें आई।
यदि हम उस शर्मनाक हमले के बाद वायरल वीडियो की पड़ताल करने पर साफ जाहिर होता है कि बक्सर पुलिस-प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था जितनी लच्चर है, उतना ही सरकार की खुफिया एजेंसियां। नीतिश कुमार सरीखे सीएम के काफिले पर इतना बड़ा हमला की जहां कल्पना तक नहीं की जा सकती, वहां वह सब हो गया, जिसकी तह में सिर्फ सबाल ही सबाल उभरकर सामने आते हैं।
सबसे चिंताजनक स्थिति है कि सरकारी महकमा के आला अफसर के वाहन जहां खड़े थे, युवक और महिलाएं वहीं से सीएम के काफिले पर ईंट-पत्थर बरसा रहे थे। वहां सशस्त्र पुलिस वाले भी मूकदर्शक बने थे।
वीडियो की बैकग्राउंड में जो आवाजें आ रही है, वे भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। “ हम पुलिस वाले हैं, हमें मत मारो। अरे ई पुलिस वाला है, इसे छोड़ दो। उ देखो गाड़ी आ रहा है, उस पर फेंको। सीधे गाड़ी पर फेंको। आगे से फेंको। साइड से फेंको…. ” जैसे शोर से परिलक्षित है कि सब कुछ अचानक नहीं हुआ है। स्थानीय तौर पर इसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार रही होगी।
एक वीडियो में मीडिया वाले भी फुटेज और सुर्खियों की गंदी मानसिकता में उकसाते दिखते हैं। वे उन्मादी भीड़ के पीछे-पीछे भागम-भागम में लगी रहे। बाद में यही मीडिया के लोग पुलिस की ‘टिट फॉर टैट’ की कार्रवाई के साथ हो लिये, जो भी कर्तव्यहीनता की पराकाष्ठा है। वह इसलिये कि बीच सड़क पर हुये हर खेल को हर कोई देखता-समझता है।
बहरहाल, पटना प्रमंडलीय आयुक्त आनंद किशोर सरीखे तेज-तर्रार अफसर के नेतृत्व में मामले की गंभीरता से जांच हो रही है। हालांकि इस जांच के नतीजे स्पष्ट करना कड़ी चुनौती है। फिर भी उम्मीद है कि उनकी जांच में जल्द ही सब कुछ साफ हो जायेगा। उससे पहले सत्ता पक्ष के लोग हों या विपक्ष के, उन्हें अपनी 56 ईंच की जीभ पर लगाम लगानी चाहिये। क्योंकि यह अति गंभीर हमला सीएम और सरकार पर हुआ है। उसे राजनीतिक रंग देकर हल्का बनाने का कुप्रयास घोर निंदनीय है।