पटना (जयप्रकाश)। नए साल बिहार के क्रिकेट खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के लिए ऐतिहासिक कहा जाएगा।पिछले 17 साल से बिहार क्रिकेट टीम अपने हक की लड़ाई लड़ रही थी।जिसमें आज जाकर उसे सफलता हाथ लगी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फिर से बिहार में चौके छक्के की बारिश होगी।बिहार भी अब रणजी और अन्य घरेलू मैच खेल सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बीसीसीआई को निर्देश दिया है कि बिहार को रणजी समेत अन्य घरेलू मैच खेलने की इजाजत दें ।
कोर्ट ने ये भी कहा है कि पहले क्रिकेट हो उसके बाद विवादों को सुलझाया जाएँ ।यानि खेल को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए ।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बिहार को रणजी खेलने के ये अंतरिम आदेश क्रिकेट की भलाई के लिए लिया गया है ।
पिछले सत्रह साल से बिहार में राजनीति झंझावतो की चक्की में पीस रही क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए 4 जनवरी का दिन किसी त्योहार से कम नहीं होगा ।बिहार में क्रिकेट राजनीति की भेंट चढ़ चुकी थी।
झारखंड के बंटबारे के बाद से ही बिहार में क्रिकेट खिलाड़ियों के बीच अनिश्चितता की स्थिति थीं । कई प्रतिभावान खिलाड़ी दूसरे राज्यों से रणजी और अन्य घरेलू टूर्नामेंट खेलते रहे हैं ।
पिछले सत्रह साल से राजनीतिक खींचतान के बीच बिहार के इकलौते मोइनुलहक क्रिकेट स्टेडियम में भी वीरानी छा गई थीं । लेकिन गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के फैसले के बाद खिलाड़ियों में खुशी की लहर देखी जा रही है।
कोर्ट ने भी स्वीकार किया कि बिहार 70 के दशक से क्रिकेट खेल रहा है।पहले उसे खेलने का मौका मिलें फिर जो भी विवाद है उसे सुलझाने का प्रयास किया जाए। कोर्ट ने ये भी कहा है कि अंतरिम आदेश दाखिल याचिकाओं पर नहीं बल्कि क्रिकेट की भलाई के लिए दिए गए हैं ।
उल्लेखनीय रहे कि पिछले सात साल से बिहार क्रिकेट टीम के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे आदित्य वर्मा ने याचिका दाखिल कर रखी थीं । श्री वर्मा पिछले सात साल से बिहार क्रिकेट को अपना हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे थें उस लड़ाई में उन्हें सफलता हाथ लगी है।
गौरतलब रहे कि झारखंड बंटबारे के बाद से ही बिहार में क्रिकेट बंद है।बिहार के कई प्रतिभावान खिलाड़ी दूसरे राज्यों से रणजी खेलते रहे हैं ।उनमें पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी और नालंदा के वीर प्रताप शामिल है।
बीसीसीआई ने झारखंड में समुचित खेल सुविधाओं को देखते हुए रणजी तथा अन्य मैच खेलने की अनुमति दे रखी थी।लेकिन बिहार को इसकी अनुमति नहीं मिली।इसका मुख्य कारण खेल संघों की उदासीनता या खींचतान दो फाड भी कही जा सकती है। बीसीसीआई ने खेल संघों के विवाद को लेकर क्रिकेट संघ पर पाबंदी लगा रखी थी।
बिहार में खेलों में घुसी राजनीति के बाद से क्रिकेट के मामले में बिहार फिसडी बन चुका था ।कई खिलाड़ियों ने क्रिकेट से मुँह ही मोड़ लिया तो कई दूसरे व्यवसायी में आ गए।
बिहार में क्रिकेट संघ दो फाड हो चुका था ।एक क्रिकेट संघ का नेतृत्व लालूप्रसाद यादव करने लगे तो दूसरे का कीर्ति आजाद ।बिहार क्रिकेट एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट दो संघ आमने सामने हो गए।जिसके विवाद के फलस्वरूप मामला कोर्ट में चला गया ।जिस पर गुरूवार को एक फैसला आया है।
अब देखना है कि क्रिकेट की भलाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला क्रिकेट के हक में दिया है।लेकिन जब आपसी विवाद सुलझाने दोनों संघ एक टेबल पर होंगे तो उनका फैसला अपने स्वार्थ में आता है या फिर बिहार क्रिकेट की भलाई में? इसके लिए फिलहाल एक लम्बा इंतजार करना पड़ेगा ।
लेकिन सवाल यह भी आखिर दोनों संघ की आपसी लड़ाई का परिणाम क्या हुआ ? प्रतिभावान खिलाड़ियों का बेशकीमती सत्रह साल इन राजनीति की भेंट चढ़ गई । अब देखना है कि नए साल में बिहार में क्रिकेट भविष्य कितना उज्ज्वल होता है।