
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ 2025 अब तक का सबसे निर्णायक और ऐतिहासिक साल बनकर उभरा है। विशेष निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (Special Vigilance Investigation Bureau) ने इस वर्ष ऐसी ताबड़तोड़ कार्रवाई की है, जिसने प्रशासनिक से लेकर राजनीतिक गलियारों तक खलबली मचा दी। ब्यूरो ने 2025 में कुल 27 प्राथमिकी दर्ज कर 30 से अधिक भ्रष्ट अफसरों और जनप्रतिनिधियों को कानून के शिकंजे में लिया, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे बड़ी संख्या है।
जिला शिक्षा पदाधिकारी, परिवहन अधिकारी, अंचलाधिकारी, इंजीनियर, डीएसपी, आइएएस अधिकारी, बीडीओ, राजस्व कर्मी से लेकर विधायक और पूर्व विधायक तक विजिलेंस की रडार पर आए। आय से अधिक संपत्ति और रिश्वतखोरी दोनों ही मोर्चों पर विजिलेंस की कार्रवाई ने यह साफ कर दिया कि अब “पद” ढाल नहीं, बल्कि जांच का केंद्र बन चुका है।
विशेष निगरानी ब्यूरो की 2021–2025 की रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2021 में महज 6 केस दर्ज हुए थे, वहीं 2025 में यह आंकड़ा सीधे 27 तक पहुंच गया। जिनमें आय से अधिक संपत्ति के 15 मामले, ट्रैप (रिश्वत) केस के 12 मामले समेत कुल मिलाकर पांच साल में 60 केस दर्ज हुए, जिनमें अकेले 2025 का योगदान सबसे बड़ा रहा।
2025 की शुरुआत ही धमाके के साथ हुई। 22 जनवरी को बेतिया के जिला शिक्षा पदाधिकारी रजनीकांत प्रवीण के ठिकानों से 3.55 करोड़ रुपये नकद और 2.75 करोड़ रुपये के जमीन दस्तावेज बरामद हुए। इसके बाद नालंदा के जिला परिवहन पदाधिकारी अनिल कुमार दास के यहां से करीब 2 करोड़ रुपये के सोने-चांदी और हीरे मिले।
अप्रैल में अंचलाधिकारी प्रिंस राज का मामला इसलिए चौंकाने वाला रहा, क्योंकि छापेमारी में न सिर्फ आय से अधिक संपत्ति मिली, बल्कि उनका मैट्रिक सर्टिफिकेट भी फर्जी निकला। इसी दौरान आइएएस अधिकारी संजीव हंस समेत अन्य पर सरकारी ठेकों में गड़बड़ी और रिश्वत के गंभीर आरोप सामने आए।
मई 2025 में विजिलेंस की कार्रवाई ने सियासी तापमान बढ़ा दिया। पूर्व विधायक अरुण यादव और वर्तमान विधायक किरण देवी के खिलाफ 36.65 करोड़ रुपये से अधिक की आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हुआ। यह बिहार में राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाइयों में गिना जा रहा है।
कटिहार की लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी श्वेता मिश्रा, पटना के तत्कालीन डीएफओ सुबोध कुमार गुप्ता, सीआइडी डीएसपी अभय प्रसाद यादव, जहानाबाद के डीएसपी संजीव कुमार और तिरहुत प्रमंडल के क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक बीरेंद्र नारायण सबके यहां करोड़ों की संपत्ति, कई बैंक खाते और दर्जनों जमीन के दस्तावेज मिले। बीरेंद्र नारायण के मामले में तो 18 बैंक खाते और 25 जमीन के कागजात देखकर जांच एजेंसियां भी हैरान रह गईं।
साल के अंतिम महीनों में कार्रवाई और तेज हुई। सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता तरनी दास के यहां से 8.57 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए, जबकि वित्त विभाग के अधिकारी मुमुक्षु कुमार चौधरी और भवन निर्माण विभाग के निदेशक गजोधर मंडल पर भी करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति के केस दर्ज हुए। इससे यह संदेश गया कि रिटायरमेंट के बाद भी भ्रष्टाचार की फाइल बंद नहीं होती।
2025 में विजिलेंस ने 12 अधिकारियों को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा। रिश्वत की रकम 7,000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक रही। शिक्षा, पुलिस, राजस्व, बिजली, बागवानी और ब्लॉक स्तर के अधिकारी इस जाल में फंसे। जिससे यह साफ हुआ कि भ्रष्टाचार की जड़ें हर स्तर पर फैली हैं।
विजिलेंस महानिदेशक जितेंद्र सिंह गंगवार के नेतृत्व में हुई इस कार्रवाई को प्रशासनिक हलकों में अब तक का सबसे प्रभावी अभियान माना जा रहा है। करोड़ों की बरामदगी, हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारियां और लगातार ट्रैप केस 2025 ने यह संदेश दे दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस अब सिर्फ नारा नहीं, कार्रवाई बन चुका है।
वेशक बिहार में यह साल न सिर्फ आंकड़ों में, बल्कि असर में भी याद रखा जाएगा। एक ऐसे साल के तौर पर जब सत्ता, सिस्टम और साखतीनों की परीक्षा एक साथ हुई।



