
नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क)। राजगीर का विश्व प्रसिद्ध जरासंध अखाड़ा, जहां महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण की मौजूदगी में मगध सम्राट जरासंध और भीमसेन के बीच 18 दिनों तक भयंकर मलयुद्ध हुआ था, आज अपनी ही पहचान खोने की कगार पर खड़ा हैं। यह देश-दुनिया का इकलौता स्थल हैं, जो महाभारत की उस ऐतिहासिक घटना का जीवंत साक्षी हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता और वन विभाग की सख्ती ने इसे पर्यटकों की नजरों से लगभग ओझल कर दिया हैं।
पर्यटक अब सोन भंडार गुफा तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन वहां से मात्र 500 मीटर आगे जरासंध अखाड़े तक पहुंचने का रास्ता उनके लिए बंद हैं। दोपहिया और चारपहिया वाहनों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया हैं। केवल पैदल चलने की इजाजत हैं, जिससे बुजुर्ग, बच्चे और दिव्यांग पर्यटक इस ऐतिहासिक स्थल के दर्शन से वंचित रह जाते हैं।
सूत्र बताते हैं कि पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के कुछ अधिकारियों के निर्देश पर यह रोक लगाई गई थी, जब दो साल पहले नेचर सफारी के वाहन इसी रास्ते से गुजरते थे। लेकिन पिछले दो वर्षों से नेचर सफारी की गाड़ियां जू सफारी परिसर के अंदर से ही दक्षिणी रास्ते होकर जा रही हैं। फिर भी सोन भंडार के पास बने बैरियर पर तैनात वनकर्मी पर्यटकों के निजी वाहनों को रोकने में कोई कोताही नहीं बरत रहे।
सबसे हैंरान करने वाली बात यह हैं कि पूर्व जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वन विभाग को सभी प्रकार के वाहनों की आवाजाही बहाल करने का स्पष्ट आदेश दिया था। लेकिन विभाग के कुछ अधिकारियों ने उस आदेश को नजरअंदाज कर फाइलों में दबा दिया और अपनी मनमानी जारी रखी।
स्थानीय जनप्रतिनिधि और बुद्धिजीवी अब खुलकर सामने आ गए हैं। नीरपुर पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि पंकज कुमार, पूर्व प्रखण्ड प्रमुख सुधीर कुमार पटेल, वार्ड पार्षद डॉ अनिल कुमार, समाजसेवी महेन्द्र यादव सहित दर्जनों संस्कृति प्रेमी इसे महाभारत कालीन धरोहर के साथ सरासर अन्याय बता रहे हैं।
उनका कहना हैं कि एक तरफ सरकार ‘देखो अपना देश’ का नारा दे रही हैं। दूसरी तरफ अपने ही विभाग के अफसर दुनिया के इकलौते जरासंध अखाड़े को पर्यटकों से दूर रखने पर आमादा हैं।
राजगीर के लोग बार-बार विभागीय मंत्रियों और जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। कई बार मौखिक और लिखित निर्देश भी जारी हुए, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। नतीजा यह हैं कि जो पर्यटक दूर-दूराज से महाभारत की इस पावन स्मृति को देखने आते हैं, वे निराश लौटने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों का साफ कहना हैं कि अगर नेचर सफारी की गाड़ियां अब इस रास्ते से नहीं गुजरतीं, तो आम पर्यटकों के वाहन क्यों रोके जा रहे हैं? यह धरोहर का अपमान हैं, राजगीर की पहचान का अपमान हैं और मगध की गौरवशाली विरासत पर कुठाराघात हैं।
अब सवाल यह हैं कि आखिर कब तक यह ऐतिहासिक अन्याय चलता रहेगा? क्या जरासंध और भीम के उस महायुद्ध का साक्षी यह अखाड़ा हमेशा के लिए पर्यटकों की पहुंच से बाहर रहेगा? या फिर जिला प्रशासन और वन विभाग कोई ठोस कदम उठाकर राजगीर की इस अनमोल धरोहर को फिर से दुनिया के नक्शे पर लाएगा?









