जादूगोड़ा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। कल्पना कीजिए एक ऐसी धरती जहां हर सांस के साथ जहर घुला हो, जहां नवजात शिशु की पहली रोने की आवाज़ जन्मजात विकृति की पीड़ा में बदल जाए और जहां माताओं की गोदें बार-बार सूनी रह जाएं। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले का जादूगोड़ा गांव, जिसका नाम ‘जादुई भूमि’ से प्रेरित है, आज ‘रेडिएशन का कब्रिस्तान’ बन चुका है। यहां यूरेनियम खनन के नाम पर फैल रहे रेडियोधर्मी प्रदूषण ने स्थानीय आदिवासी समुदाय को लील लिया है। हर तीन में से एक व्यक्ति किसी न किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। कैंसर से लेकर बांझपन तक।
यह कोई पुरानी कहानी नहीं, बल्कि 2025 में भी जारी एक जीवंत त्रासदी है, जहां सरकार की चुप्पी और यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) की लापरवाही ने हजारों जिंदगियों को दांव पर लगा दिया है।
एक दर्दनाक वर्तमान: आंसूओं की नदी बह रही है
जादूगोड़ा पहुंचकर कोई भी संवेदनशील इंसान आंसू नहीं रोक पाएगा। गांव की तंग गलियों में घूमते हुए जहां कभी हरी-भरी पहाड़ियां मुस्कुराती थीं, आज सांस लेना भी खतरनाक लगता है। स्थानीय महिलाएं बताती हैं कि वे छह-छह गर्भपात झेल चुकी हैं और जो बच्चे जन्म लेते हैं, वे अक्सर आंखों के बिना या अंगों के विकृत होकर आते हैं।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जादूगोड़ा में रेडिएशन स्तर अन्य यूरेनियम खनन क्षेत्रों से 5-6 गुना अधिक है, जो पेयजल और हवा के माध्यम से सीधे लोगों के शरीर में घुस रहा है। नवंबर 2025 तक यहां के निवासियों को सालाना औसतन 2-3 मिलीसीवर (mSv) रेडिएशन एक्सपोजर का सामना करना पड़ रहा है, जो वैश्विक सुरक्षित सीमा से कहीं ऊपर है।
एक स्थानीय आदिवासी महिला, जिनका नाम गोपनीय रखा गया है, उन्होंने बताया कि हमारी धरती हमें जहर दे रही है। मेरी बेटी का जन्म बिना हाथ के हुआ और अब वह चल भी नहीं पाती। डॉक्टर कहते हैं कि यह रेडिएशन का असर है।
यह कहानी अकेली नहीं है। गांव में कैंसर, थायरॉइड विकार और श्वसन रोगों के मरीजों की संख्या 2025 में 20% बढ़ चुकी है। मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी उतने ही गहरा हैं। चिंता, डर और आत्महत्या के विचार अब आम हो गए हैं। खासकर खनिकों में लंबे समय तक एक्सपोजर से फेफड़ों के कैंसर और अन्य घातक बीमारियां बढ़ रही हैं।
पुरानी जड़ें: 1967 से चली आ रही ‘मौन हत्या’
यह संकट रातोंरात नहीं पैदा हुआ। जादूगोड़ा यूरेनियम खनन की कहानी 1967 से शुरू होती है, जब UCIL ने यहां पहला अंडरग्राउंड माइन शुरू किया। भारत के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ माने जाने वाले इस खनन ने देश को ऊर्जा सुरक्षा दी, लेकिन स्थानीय हो समुदाय को विस्थापन, गरीबी और प्रदूषण का तोहफा।
शुरुआती दशकों में रेडियोएक्टिव टेलिंग्स (कचरा) को सीधे सुभर्णरेखा नदी में डंप किया जाता था, जो आज भी गांवों को पानी देती है। 2004 के एक अध्ययन ने साबित किया कि खदानों के आसपास रेडियोधर्मी संदूषण मापा गया, जो मिट्टी और जल को जहर बना रहा था।
2014 में अल जज़ीरा की रिपोर्ट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं, जब स्थानीय लोगों ने जन्म दोष, बांझपन और सहज गर्भपात की शिकायतें कीं। 2015 में UCIL ने दावा किया कि कोई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव नहीं”है, लेकिन पर्यावरण न्याय संगठनों ने इसे खारिज कर दिया।
तब से स्थिति और बिगड़ी। 2021 तक पानी की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी थी कि गांववासी नदियों से पानी पीने से डरते थे। अब 2025 में, उम्र-आधारित रिसर्च दिखा रहा है कि बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा खतरे में हैं, क्योंकि पेयजल में यूरेनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा से कई गुना ऊपर है।
‘केला खाकर छिलका फेंकना’: एक कड़वी सच्चाई
जादूगोड़ा से निकाला गया यूरेनियम अयस्क हैदराबाद के हाइड्रोमेटलर्जिकल प्लांट में संसाधित होता है, जहां उपयोगी धातु निकाल ली जाती है। बाकी रेडियोधर्मी कचरा टेलिंग्स वापस जादूगोड़ा लाकर तालाबों में डंप कर दिया जाता है। ये तालाब लीक होते हैं और रेडिएशन हवा-जल के जरिए फैलता है।
परिणामस्वरूप हर तीन में से एक व्यक्ति प्रभावित है। बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं, महिलाएं गर्भधारण में असमर्थ और पुरुष कैंसर से लड़ रहे। यह ‘आउट ऑफ कंट्रोल’ रेडिएशन नहीं तो और क्या है? 2025 की एक स्टडी में पाया गया कि खनन क्षेत्र के पास रहने वाले लोगों में यूरेनियम का कुप्रभाव उम्र के साथ बढ़ता जा रहा है, जो दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर रहा है।
हाल ही में X (पूर्व ट्विटर) पर भी आवाजें उठीं। मई 2024 में एक पोस्ट में UCIL की सुरक्षा लापरवाही, दुर्घटनाओं और मूलभूत सुविधाओं की कमी का जिक्र किया गया, जो केंद्र सरकार को टैग करते हुए कहा गया कि संस्था की छवि धूमिल हो रही है। यह दर्शाता है कि समस्या पुरानी है, लेकिन समाधान दूर की कोड़ी।
अब जागिए सरकार: आदिवासी जिंदगियों से खिलवाड़ बंद करें
झारखंड सरकार और केंद्र की यह उदासीनता आदिवासी मूलवासियों के अधिकारों का उल्लंघन है। 2025 में भी जब भारत परमाणु ऊर्जा का विस्तार कर रहा है। जादूगोड़ा जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्र स्वास्थ्य सर्वेक्षण और कचरा प्रबंधन की मांग तेज हो रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि टेलिंग्स को सुरक्षित रूप से स्टोर करने और प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की जरूरत है। अन्यथा यह ‘परमाणु सपना’ एक दर्दनाक यथार्थ बन जाएगा। झारखंड सरकार को UCIL से तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। जादूगोड़ा की ‘जादुई’ धरती को फिर से हरी-भरी बनाई जानी चाहिए, न कि कब्रिस्तान।









