BDO-CO का गजब फरमान: अब PM की रैली में शिक्षक होंगे बस कंडक्टर!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के पूर्णिया में आगामी 15 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। एनडीए के सभी घटक दल प्रचार-प्रसार में जुटे हैं तो प्रशासनिक स्तर पर भी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद करने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन इस बीच एक अजीबोगरीब सरकारी आदेश ने पूरे बिहार में हलचल मचा दी है।
बनमनखी के अंचलाधिकारी (BDO-CO) ने एक ऐसा फरमान जारी किया है। इस फरमान के तहत सरकारी शिक्षकों को प्रधानमंत्री की रैली में जीविका कर्मियों को लाने-ले जाने वाली बसों में बस कंडक्टर की भूमिका निभाने का निर्देश दिया गया है। इस आदेश ने न केवल शिक्षा जगत में बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी तीखी बहस छेड़ दी है।
बनमनखी के अंचलाधिकारी ने प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) को एक पत्र जारी कर सूचित किया है कि प्रधानमंत्री की रैली में भाग लेने के लिए जीविका कर्मियों को 200 बसों के जरिए सभास्थल तक लाया जाएगा। इन बसों में जीविका कर्मियों की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक बस में एक सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति की जानी है।
हैरानी की बात यह है कि इस जिम्मेदारी के लिए शिक्षकों को चुना गया है। पत्र में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि प्रत्येक बस में एक शिक्षक को प्रतिनियुक्त किया जाए। जोकि जीविका कर्मियों को सभास्थल तक ले जाने और वापस लाने की प्रक्रिया की निगरानी करेगा।
इस आदेश के सामने आने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। शिक्षकों को उनकी शैक्षणिक जिम्मेदारियों से हटाकर इस तरह के प्रशासनिक कार्यों में क्यों लगाया जा रहा है? क्या यह सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग नहीं है? और सबसे बड़ा सवाल, क्या यह आदेश यह संदेश देता है कि रैली में भीड़ जुटाने के लिए प्रशासन को इस हद तक जाना पड़ रहा है?
इस अनोखे आदेश ने न केवल शिक्षकों के बीच असंतोष पैदा किया है, बल्कि विपक्षी दलों को भी सरकार पर निशाना साधने का मौका दे दिया है। विपक्ष का कहना है कि शिक्षकों का काम बच्चों को पढ़ाना है, न कि बसों में कंडक्टर की भूमिका निभाना। यह आदेश सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है। कई विपक्षी नेताओं ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि अगर रैली में भीड़ स्वतः नहीं जुट रही है, तो क्या शिक्षकों को इस तरह के कार्यों में झोंकना उचित है?
साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या प्रशासन के पास अन्य कर्मचारी नहीं थे, जो इस जिम्मेदारी को निभा सकते थे? शिक्षकों को इस तरह के कार्यों में लगाने से शिक्षा व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
शिक्षक समुदाय में इस आदेश को लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही है। शिक्षकों का कहना है कि उनका प्राथमिक दायित्व बच्चों को पढ़ाना और भविष्य की पीढ़ी को तैयार करना है। इस तरह के आदेश न केवल उनके सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि उनकी प्रोफेशनल गरिमा को भी कम करते हैं।
एक बीपीएससी शिक्षक ने कहा कि समझ में नहीं आता है कि हमें बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है, न कि बसों में कंडक्टर बनने के लिए। यह आदेश हमारी प्राथमिक जिम्मेदारियों से ध्यान भटकाने वाला है।
प्रशासन का कहना है कि यह आदेश केवल जीविका कर्मियों की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया है। उनका तर्क है कि शिक्षक जिम्मेदार और शिक्षित कर्मचारी हैं, जो इस कार्य को बेहतर ढंग से निभा सकते हैं। हालांकि इस तर्क को ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है, क्योंकि शिक्षकों को उनकी मूल जिम्मेदारियों से हटाकर इस तरह के कार्यों में लगाना कई लोगों को गलत लग रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूर्णिया रैली को लेकर एनडीए के कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह है। रैली के लिए बनमनखी के दुर्गाडीह में 444 एकड़ में विशाल पंडाल तैयार किया गया है। हेलीपैड से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक सभी तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन इस बीच यह आदेश एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है, जो रैली की तैयारियों पर छाया डाल सकता है।
बहरहाल, यह पूरा मामला एक बार फिर सरकारी सिस्टम के कामकाज पर सवाल उठाती है। शिक्षकों को उनकी शैक्षणिक जिम्मेदारियों से हटाकर इस तरह के कार्यों में लगाना न केवल शिक्षा व्यवस्था के लिए हानिकारक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक प्राथमिकताएं कहीं न कहीं गलत दिशा में जा रही हैं। इस आदेश ने न केवल पूर्णिया बल्कि पूरे बिहार में चर्चा का माहौल गर्म कर दिया है।