बगहा के चर्चित देवर-भाभी हत्याकांड में 3 सीरियल किलरों को उम्रकैद
जिला जज मानवेंद्र मिश्र की कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि ऐसे अपराधी, जो समाज में भय और आतंक फैलाने के लिए क्रूर हत्याएं करते हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जा सकता। यह फैसला न केवल पीड़ित परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक सख्त संदेश है कि अपराध की कोई जगह नहीं है।

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। पश्चिम चंपारण के बगहा में हुए चर्चित देवर-भाभी हत्याकांड में जिला जज चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की कोर्ट ने तीन सीरियल किलरों अमल उर्फ अमला यादव, कमल यादव और हीरा यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता (भादवि) की धारा 302 के तहत दोषी पाया और प्रत्येक पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माना न चुकाने पर छह-छह माह की अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तीनों अभियुक्त वासुदेव यादव गैंग से जुड़े थे और समाज में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए क्रूर हत्याएं करते थे।
बता दें कि 5 जून 2023 को धनहा थाना क्षेत्र के मुसहरी गांव में झलरी देवी और उनके देवर पहवारी यादव की धारदार हथियार से पेट फाड़कर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बनारसी यादव ने अज्ञात अभियुक्तों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
पुलिस ने कमल यादव और अमला यादव को गिरफ्तार कर जेल भेजा, जबकि तीसरे अभियुक्त हीरा यादव की हाजिरी थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने साबित किया कि तीनों ने एक ही रात में थोड़े अंतराल पर इन दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया।
अभियुक्तों का आपराधिक इतिहास भी सामने आया। धनहा थाने में कमल यादव के खिलाफ कांड संख्या 232/22, 81/23, 121/23, 105/23 (हत्या और हत्या के प्रयास), अमला यादव के खिलाफ कांड संख्या 232/22, 105/23, 121/23, और हीरा यादव के खिलाफ कांड संख्या 232/22, 81/23, 121/23, 105/23 (लूट, हत्या, हत्या के प्रयास) दर्ज हैं।
कोर्ट ने इन्हें समाज के लिए खतरा मानते हुए कहा कि ऐसे अपराधियों को समाज में खुला नहीं छोड़ा जा सकता।
पटना उच्च न्यायालय के आदेश (क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या 29489/2025) के तहत इस मामले को 20 जून 2025 तक स्पीडी ट्रायल के जरिए निपटाने का निर्देश था। जिला जज मानवेंद्र मिश्र की कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए त्वरित सुनवाई शुरू की। जांच अधिकारी (आईओ) अजय कुमार, जो पटना के कदमकुआं थाने के थानेदार हैं, उन्हें कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया गया। सूचक डॉक्टर समेत कुल नौ गवाहों की साक्ष्य ने मामले को पुख्ता किया, जिसके आधार पर कोर्ट ने हत्याकांड को सत्य माना।
अभियोजन पदाधिकारी मन्नू राव ने कोर्ट में साक्ष्य पेश करते हुए कहा कि तीनों अभियुक्तों ने एक ही तरीके से पांच हत्याकांडों को अंजाम दिया, जिसमें चाकू से पेट फाड़कर हत्या करना उनकी कार्यशैली थी। अभियोजन पक्ष ने इन्हें साइको किलर करार देते हुए कठोर सजा की मांग की थी।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता सत्येंद्र मिश्र ने कोर्ट में दलील दी कि मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और हत्या की प्राथमिकी अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने अभियुक्तों को जानबूझकर फंसाया और वे निर्दोष हैं। हालांकि, अभियोजन पक्ष के ठोस साक्ष्यों और गवाहियों के सामने बचाव पक्ष की दलीलें कमजोर पड़ गईं।
कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित परिवार ने राहत की सांस ली। बनारसी यादव, जिन्होंने अपनी मां और चाचा की हत्या के बाद प्राथमिकी दर्ज कराई थी, उन्होंने कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। परिवार ने कहा कि लंबे इंतजार के बाद उन्हें इंसाफ मिला है। कोर्ट के फैसले के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
तीनों अभियुक्त वासुदेव यादव गैंग के सदस्य थे, जो क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने के लिए क्रूर वारदातों को अंजाम देते थे। कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि अभियुक्तों ने न केवल इस मामले में, बल्कि अन्य हत्याकांडों में भी एक ही पैटर्न का इस्तेमाल किया। उनकी क्रूरता और आपराधिक इतिहास को देखते हुए कोर्ट ने कठोर सजा सुनाई।