“शासन-प्रशासन का कोई नुमाईंदा अगर कहता है कि किसान की फसल अधिक उपज गई, इसलिये दाम नहीं मिल रहे तो यह उसकी अमानवीय मानसिकता की हद के आलावे कुछ नहीं कही जायेगी।”
मुकेश भारतीय/ जयप्रकाश नवीन। नालंदा जिले के नूरसराय बाजार में मात्र 10 पैसे प्रति किलो कद्दू के दाम मिलने से आहत सब्जी उत्पादक किसानों ने अपनी फसल बीच सड़क फेंक दी। उधर खुले बाजार में कद्दू जैसे सब्जी 7-10 रुपये मिल रही है।
सबाल उठता है कि 10 पैसे और 10 रुपये के बीच का अंतर कौन डकार रहा है। सरकार ने इसके लिये आम जनता की गाढ़ी से जो बड़ा तंत्र खड़ा रखा है, वह क्या सिर्फ कृषि योजनाओं से लेकर उनकी फसलों की लूट-खसोंट करने के लिये हैं।
नालंदा डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम का अधिकृत बयान जिला प्रशासन की अधिकृत फेसबुक पेज पर उपलब्ध है।
उल्लेख है कि डॉ त्यागराजन ने नूरसराय के किसानों से मुलाकात की एवं उनसे सब्जियों की कीमत के एकाएक कम होने के कारणों को जाना।
किसानों द्वारा उन्हें बताया गया कि इस बार सब्जियों का उत्पादन अधिक हो रहा है, जिसके कारण रेट काफी कम हो गए है। साथ में हैं सब्जी खरीदने वाले थोक व्यवसायियों के द्वारा मनमानी की जाती है। ये बड़े व्यवसायी किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर अत्यंत कम कीमत पर सब्जियां ख़रीदते हैं।
डीएम ने जिला कृषि पदाधिकारी अशोक कुमार से कहा कि किसानों को उनके फसल का सही कीमत मिले। इसके लिए कॉपरेटिव सोसायटी का गठन करें एवं इसके माध्यम से किसानों के द्वारा उत्पादित सब्जियों का उचित दाम दिलाना सुनिश्चित करें।
यदि हम डीएम डॉ त्यागराजन के निर्देशों-आदेशों का आकंलन करें तो ये सब एक प्रशासनिक अधिकारी की रुटीन वर्क से अधिक कुछ नहीं है। जैसा कि कोई समस्या आने पर फौरिक तौर पर समझा जाता है और भविष्यगत निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता।
हमारी शासन व्यवस्था में पंचायत, प्रखंड, अनुमंडल से लेकर जिला तक किसानों के हित चिंतक अफसर-कर्मी तैनात हैं। उनकी जबाबदेही है कि किसानों की हर समस्या पर गंभीरता से ध्यान रखें और उसके तत्काल समाधान करने की दिशा में कारगर कदम उठाए।
लेकिन हमारे अन्नदाता की सुध किसी को नहीं है। 10 पैसे और 10 रुपये के बीच का अंतर नहीं समझने वाले अफसरों को अपनी अंतरात्मा झांकनी चाहिये।
किसानों को बिचौलियों ने बुरी तरह से जकड़ रखा है। उन बिचौलियों को प्रशासन का खुला संरक्षण प्राप्त है। संरक्षण क्या किसानों के खून चूसने में वे बराबर के चमोकन बने हुये हैं। सहकारी समितियां बनाने की बात अलग है। बिहारशरीफ में बाजार समिति स्थापित है। कभी कृषि विभाग के किसी अधिकारी या शीर्ष प्रशासन की आंखे उस ओर नहीं खुलती।
प्रशासन की मिलीभगत से बिचौलिये किस तरह किसानों की मेहनत पर डाका डालते हैं, वह नूरसराय की घटनाक्रम ने साबित कर दिया है। किसानों को एक टोकरी यानी करीब 15 किलो कद्दू के डेढ़ रुपए मिले, लेकिन बाजार में यही कद्दू 10 रुपए किलो बिका। उसके अगले दिन भी आम आदमी के लिए कद्दू की कीमत कम नहीं थी।
वहां के पीड़ित किसानों के अनुसार एक बीघा खेत में 20 से 40 हजार की पूंजी लगानी पड़ती है। मंडी तक कद्दू लाने में प्रति टोकरी कद्दू 25 से 30 रुपए किराया भी लगता है। पटवन पर भी प्रति कट्ठा 20 से 25 रुपए लगता है।
जिन किसानों के पास अपना जमीन नहीं है, वे बटाई, चौराहा या पट्टा आदि पर पर कद्दू की खेती की, उन्हें 14 हजार रुपए प्रति बीघा अलग से खर्च करना पड़ता है। ऐसे में महाजन से कर्ज लेकर कद्दू की खेती करने वाले किसानों की हालत समझी जा सकती है।