“दलित विकास के नाम पर करोड़ों रुपये के घोटाले में हैं आरोपित …वीआरएस लेने के बाद 3 मार्च 2014 को किया था जेडीयू ज्वाईन ….2014 में सासाराम से लड़ा था जेडीयू के टिकट पर सासाराम से चुनाव ….तब टिकट पाने के लिए घोटाले की राशि खर्च की थी रमैय्या ने…”
पटना (विनायक विजेता)। दशरथ मांझी स्कील डेवलपमेंट योजना के तहत युवा दलितों के शैक्षणिक विकास के नाम पर करोड़ों रुपए डकार कर फरार हो जाने वाले रिटायर्ड आईएएस अधिकारी के पी रमैय्या का काफी मधुर संबंध बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रहा है।
अपने इसी संबंध को निबाहते हुए नीतीश कुमार ने वीआरएस ले चुके रमैय्या जल्दीबाजी में 3 मार्च 2014 को जदयू की सदस्यता दिलाई और सदस्यता के एक सप्ताह के अंदर ही उन्हें जदयू से सासाराम लोकसभा का टिकट थमा दिया।
महादलित विकास मिशन में 5.55 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले में निगरानी द्वारा आरोपित के पी रमैय्या अभी फरार हैं। कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर रखा है, जबकि पटना हाइकोर्ट ने बीते दिनों राज्य सरकार और डीजीपी को फटकार लगाते हुए किसी भी हालत में के पी रमैय्या को गिरफ्तार कर 30 अप्रैल तक पेश करने को कहा है।
हाइकोर्ट की फटकार के बाद एसपी स्तर के एक अधिकारी के नेतृत्व में पटना पुलिस की एक टीम के पी रमैय्या के गृह राज्य आंध्रप्रदेश के हैदराबाद भी गई, पर उनका कोई सुराग नहीं मिल सका।
कुछ दिनों पूर्व तक रमैय्या का मोबाईल लोकेशन हैदराबाद का ही बता रहा था। पर पुलिस टीम जब हैदराबाद पहुंची तो उनके मोबाईल का स्वीच ऑफ बता रहा था।
क्या है मामलाः 1986 बैच के आईएएस अधिकारी के पी रमैय्या पर आरोप है कि 21 जनवरी 2014 से 28 फरवरी 2014 तक मात्र 38 दिनों तक बिहार दलित विकास मिशन के सचिव पद कार्यरत रहते हुए रमैय्या एंड कंपनी ने करोड़ो रुपए का घोटाला किया।
इसी पद पर रहते हुए रमैय्या ने वीआरएस के लिए आवेदन दिया, जिसे सरकार ने स्वीकृत कर लिया। इसके तुरंत बाद रमैय्या ने जदयू ज्वाइन कर लिया।
अंदरुनी सूत्रों से मिली खबर के अनुसार तब महज 38 दिनों में ही करोड़ों डकारने वाले रमैय्या ने घोटाले की अधिकांश रकम जदयू का टिकट पाने के लिए खर्च किया था और जदयू के एक वरीय नेता को मोटी राशि दी थी।
गौरतलब है कि एनडीए गठबंधन तोड़कर 2014 का लोकसभा चुनाव जदयू ने अपने बलबूते लड़ा था। जिस चुनाव में जदयू महज दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी। लोकसभा में अपनी हार से बौखलाए नीतीश कुमार ने 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और महागठबंधन के बैनर तले सरकार बनाई।
उसके बाद 2017 में नीतीश ने गठबंधन तोड़कर फिर उसी भाजपा के साथ सरकार बनाई, जिस भाजपा को कभी उन्होंने अंगुठा दिखाया था।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि भाजपा ने नीतीश के साथ दुबारा सरकार तो जरुर बनाई। पर भाजपा की नजर में वो ब्यूरोक्रेट्स जरुर चढ़े थे, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और उसमें भी वैसे नौरशाह जिनपर कई घोटालों में संलिप्तता के आरोप थे।
ऐसे ही नौकरशाहों में नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले के पी रमैय्या का नाम शामिल था। के पी रमैय्या का भागलपुर के बहुचर्चित सृजन घोटाले में भी नाम उछला था। सृजन की संस्थापक अध्यक्ष मनोरमा देवी के साथ रमैय्या के काफी मधुर संबंध थे जिस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
रमैय्या को नीतीश कुमार व जदयू का किस तरह संरक्षण प्राप्त है, इसका उदाहरण रमैय्या पर आठ माह पूर्व दाखिल चार्जशीट और उनका फरार होना है। रमैय्या जदयू के सदस्य है और चुनाव भी लड़ चुके हैं। पर आज तक जदयू ने इस फरार और भूमिगत आरोपित पूर्व अधिकारी को न तो पार्टी से निलंबित किया और न ही निष्काष्ति।
सूत्र बताते हैं कि अगर दलित विकास मिशन घोटाले की निगरानी जांच नहीं होती तो जदयू आसन्न लोकसभा चुनाव में इस बार रमैय्या को गया (सु.) सीट से टिकट देती। रमैय्या गया और पटना प्रमंडल के प्रमंडलीय आयुक्त भी रह चुके हैं।
बहरहाल, रमैय्या मामले ने एक बार फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पारदर्शिता और जीरो टॉलरेंस के दावे और वादे पर सवाल खड़ा कर दिया है। कारा प्राशु रमैय्या यानी पीके रमैय्या खुद कानून के बड़े जानकार हैं। सीविल सेवा परीक्षा उतीर्ण करने के पूर्व उन्होंने हैदराबाद के वी आर लॉ कॉलेज से 1983 में लॉ की परीक्षा पास की थी।
अब आगामी 30 अप्रैल को यह देखना यह है कि बिहार में हाईकोर्ट के आदेश का पालन होता है कि रमैय्या जैसे ऐसे भगोड़े का जो उच्च राजनीतिक संरक्षण पाकर दलितो के कल्याण के नाम पर दलितों को ही दगा दे गया।