-: मुकेश भारतीय :-
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। इन दिनों बिहार के सीएम नीतीश कुमार खुद टीवी न्यूज चैनलों पर सरकार का ब्रांड अंबेस्डर बने हुये हैं। अर्जी-फर्जी, कस्बाई, क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के प्राय़ः न्यूज चैनलों पर एक विज्ञापन पूरे जोर-शोर से प्रचारित हो रहा है। उस विज्ञापन में सीएम नीतीश के भाषण के अंश डाले गये हैं।
सीएम दावा करते हुये उस विज्ञापन में आम जन से कहते हैं कि समूचे सूबे में लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम लागू कर दी गई है। कहीं भी जाइये। अनुमंडल में जाइये। जिला में जाइये। आपका काम होगा। सुनिश्चित अवधि के भीतर होगा। आपकी शिकायत का निपटारा होगा।
लेकिन क्या सीएम नीतीश कुमार को यह पता है कि समूचे सूबे की बात तो दूर उनके गृह जिले में पदाधारियों द्वारा लोक शिकायत निवारण अधिकार की कैसे धज्जियां उड़ाई जा रही है। नालंदा जिले के हर अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी का कार्यालयों का बड़ा बुरा हाल है। चाहे वह हिलसा हो, राजगीर हो या बिहारशरीफ।
जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी का कार्यालय का भी कोई सानी नहीं है। यहां लोक प्राधिकारों को राहत और शिकायतकर्ताओं को अमुमन अधिक परेशान ही किया जाता है। निश्चित समयावधि की बात तभी होती है, जब मामला उपर टरकाना होता है।
अन्यथा यहां शासन-प्रशासन को बेनकाब करने वाले या सरकारी बाबूओं की मनमानी के शिकार होने वालों के मामले में अधिकांशतः निर्धारित समयावधि कोई मायने नहीं रखते।
हिलसा अनुमंडल के नगरनौसा प्रखंड के यारपुरबलवा (भदरू) गावं निवासी महेश प्रसाद ने 15 दिसंबर,2017 को अनन्य वाद- 427110215121700793 दर्ज कराई। यह बाद बन्दूक का लाईसेंस रिन्युअल करने संबंधित है। लेकिन आठ माह बाद भी इसकी सुनवाई जारी है।
इस मामले में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वार 16 अंतरिम आदेश पारित किये गये, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका है। अंतिम अंतरिम आदेश से साफ स्पष्ट होता है कि बात जब शीर्ष जिला प्रशासन कार्यालय से जुड़ा होता है, पदाधिकारी के हाथ-पैर फूलने लगते हैं। जिस समस्या का समाधान प्राईमरी स्टेज में ही जबावदेही तय करने से संभव है, उसे महीनों तक लटकाया जाता है।
अनुमंडल या जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी कार्यालयों में सुनवाई के अंतरिम-अंतिम आदेश और उसके दस्तावेजों में भी काफी छेड़छाड़ किया जाता है। लोक प्रधिकारों से सांठगांठ या फिर शिकायत की आड़ में उन्हें वार्गेनिंग करने की आये दिन शिकायतें मिलती रहती है।
शनैः शनैः भ्रष्टाचार के आगोश में जकड़ रहे लोक शिकायत निवारण कार्यालय के बाबू लोग जानबूझ कर वादी को इतना परेशान कर दिया जाता है कि उनका इस प्रणाली पर से भी विश्वास उठता जा रहा है।
बकौल वादी महेश प्रसाद, उसे जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी कार्यालय में अब तक 24 सुनवाई तिथि को बुलाया गया। लेकिन हर बार नतीजा सिफर ही रहा। लोक शिकायत निवारण की अधिकृत वेबसाइट के अनुसार इस मामले की 16 सुनवाई की तिथि दर्ज है। शेष तिथि का हेर-फेर कर दिया गया। यह सब कार्यालय के कंप्यूटर ऑपरेटर और लोक प्राधिकारों की सांठगांठ से होता है या फिर सीधे कार्यालय बाबू के ईशारे पर।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र से एक बार जिला मुख्यालय आने पर 200-300 रुपये खर्च हो जाते हैं। वह भी वादी अपना सब काम-धाम छोड़ कर आते हैं। लोक प्राधिकारों या सरकारी बाबूओं का क्या है, वे तो सरकारी खजाने की सुविधा-भत्ता से मौज उड़ाते हैं। मुंह में पान-गुटखा की गिलेरी चबाते जिला-अनुमंडल कार्यालय आते हैं और हिहयाते हुए किसी कोने थूक कर चले जाते हैं।
उधर वादी-शिकायतकर्ता-पीड़ित भी झल्लाहट भरे बुदबुदाहट के साथ अगली तिथि को दिमाग लिये वैरंग वापस होने को लाचार रहता है, ‘ सीएम गला फाड़-फाड़ कर बोलता कुछ है और यहां जिसको बैठा दिया है, वो करता कुछ और है। ’
इस संबंध में नालंदा जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय पदाधिकारी राजेश कुमार सिंह ने बड़ी अजीब लहजे विषयांतर होते हुये में जबाव दिया।
उनका कहना है, “जमीन का दाखिल खारिज तीन माह होना सुनिश्चित है। नहीं होता है न। उसके बाद भी होता ही न। वैसे ही यहां भी सुनवाई चलेगी। अभी वे लोक शिकायत के 150 मामले देख रहे हैं। ऐसे में समय सीमा के भीतर काम संभव नहीं। लोक प्राधिकार के रिपोर्ट पर भी अवधि निर्भर करता है।”