Home कला-संस्कृति वेशवक गांव की नेताउ कुआं, जिसकी पानी में है अनेक औषधीय गुण

वेशवक गांव की नेताउ कुआं, जिसकी पानी में है अनेक औषधीय गुण

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इस कुआं का जल ठंडा रहता है और इस जल से स्नान करने वालो की खाज खुजली, अन्य चर्म रोग जैसी बीमारी ठीक हो जाता है। इस कुआं का जल टेकारी के महाराज सेवन करते थे। इस कुआं की जल से चावल बनाने पर 24 घंटे तक भात खराब नहीं होता है…………..”

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा जिले के इस्लामपुर प्रखंड के ऐतिहासिक वेशवक गांव में विभन्न प्रकार के देवी देवताओं के साथ भगवान वुद्ध की वेशकीमती प्रतिमा है।

इस गांव में एक कुआं है, जिसे लोग एक नेताउ कुआं के नाम से जानते हैं। इस कुआं के पानी में अनेक प्रकार के औषधीय गुण पाए जाने की बात उभरकर सामने आई है।

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वेशवक गांव निवासी दीनानाथ पांडेय का कहना है कि यह गांव प्रगना के नाम से पहले प्रसिद्ध था और इस गांव का इतिहास भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा है। इस गांव का चावल देश विदेश में मशहुर है और जो नेताउ कुआं है, उसमें अनेक औषधीय गुण पाये जाते हैं।

श्री पाण्डेय आगे कहते हैं कि इस कुआं का जल ठंडा रहता है और इस जल से स्नान करने वालो की खाज खुजली, अन्य चर्म रोग जैसी बीमारी ठीक हो जाता है। इस कुआं का जल टेकारी के महाराज सेवन करते थे। इस कुआं की जल से चावल बनाने पर 24 घंटे तक भात खराब नहीं होता है।

इसके अलावे अकबर के जमाने में यहां जेलखाना, तोपखाना, राजभवन आदि था। जिसके सेनापति मानसिंग थे। लेकिन यह सब भवन गिरकर जमींदोज हो चुकी है, जो आज भी बुलंदी दे रहा है।

वर्ष 1976 में कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुला अपने पूर्वजों की कब्र पर चादरपोशी करने आये थे। तब से इस गांव में आने जाने वाली सडक शेख अब्दुला के नाम से जाना जाता है। जो आज भी लिंक पथ शेखअव्दुला चौक के नाम से प्रसिद्ध है।

यहां दुर दराज से लोग आज भी विभिन्न प्रकार की देवी देवताओं के प्रतिमा के दर्शन करने आते रहते हैं। वे अकबर राज के जमाने के बना भवन, जमींदोज जेलखाना आदि का भी मुआयना करते है।

इसमें कुछ जमीन को सरकार द्वारा घेराबंदी कर उसकी देख रेख के लिए एक ऱखवाल नियुक्त कर रखा गया है। यहां की जमीन की खुदाई करवाने से आज भी प्राचीन किमती समाग्री व उनके अवशेष मिल सकते हैं।

इतना ही नहीं, युसुफ साह के नाम से कसमीरीचक है और हैदर अली के नाम से हैदरचक गांव है। परंतु नालंदा जिला में एक यही ऐसा प्रखंड था, जिसके कश्मीरीचक गांव में लगभग चार वर्ष पहले शाम में दिया जलाने वाला कोई नहीं रहता था, लेकिन वर्तमान में कुछ लोग रहने लगे हैं।

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