“मसला यह नही की मेरा दर्द कितना है, मुद्दा ये है कि तुम्हें परवाह कितनी है।” शायद यही बात हमारे हुक्मरानों पर लागू होती है कि उन्हें गाँव -जवार की समस्याओं की कितनी परवाह है।”
नगरनौसा (लोकेश पांडेय)। एक तरफ राज्य सरकार गाँव -गाँव सड़क निर्माण के दावे करती है, वहीं दो विधानसभा क्षेत्र के द्वंद के बीच फंसा है एक गाँव, जिसे इंतजार है एक अदद पुल की।
शायद राज्य के नक्शे से ही गायब एक गाँव है, जिसका नाम है- महामलपुर गांव। बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक की नजरें इनायत इस गाँव से ओझल है। तभी तो विकास की रोशनी से यह गाँव कोसो दूर अपनी दुर्दशा को आज भी बयां कर रही है।
महामलपुर गांव का इतना ही दोष है कि एक तरह वह बख्तियारपुर तो नदी के उस पार हरनौत विधानसभा के बीच पड़ता है और इसी राजनीतिक दो पाटों के बीच पीसे जा रहे हैं इस गांव के निरीह रहवासी।
रोहित कुमार, रजनीश कुमार, अंजली कुमारी, रूपा कुमारी आदि दर्जनों स्कूली बच्चों ने एक सुर में सवालिया लहजे में बताते हैं कि बांस के पुल पर जाने के दरम्यान अभी तक कितने बच्चे गहरी नदी में गिर चुकें हैं। आखिर कब तक हम मौत के मुँह में जाते रहेंगे?
खुशरूपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत महामलपुर गांव, जो नोनाई नदी पर स्थित है। बख्तियारपुर विधानसभा और हरनौत विधानसभा क्षेत्र के गोरायपुर बलबा पंचायत के बलबा गांव, जो आजादी के छः दशक बीत जाने के बाद भी इन दो गांवों में अभी तक नदी के ऊपर आवागमन की राह जो सीधा खुशरूपुर तक जाती है, वह नहीं बन सकी है।
हरनौत विधानसभा के वर्तमान विधायक व पूर्व मंत्री हरिनारायण सिंह ने कहते हैं कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र की सरहद तक आवागमन की राह गांव वालों के लिए बना रखी है। रही नदी पार की बात तो वह इलाका हमारे क्षेत्र के बाहर की है, इसमें वे कुछ नहीं कर सकते।
बखितयारपुर विधायक रणविजय सिंह की सोच भी हरनौत विधायक से इतर नहीं झलकती है।
मनोज कुमार, अनील पासवान, विधि पासवान, कारू यादव सहित दर्जनों ग्रामीण कहते हैं कि महामलपुर गांव के लोग सरकारी बाबूओं और जमप्रतिनिधियों को लिखित आवेदन देकर थक गए हैं। आगे उन्हे कुछ समझ में नही आता। अब अंतिम रास्ता है कि वे उस व्यवस्था में वोट ही न डालें, जो उनकी मौलिक अधिकारों को हिस्सों में विभक्त कर रखा है।