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    Sunday, November 24, 2024
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      दिव्यांग तक को यूं दरकिनार करते हैं सरमेरा बीडीओ

      “जहां एक तरफ विकास पुरुष मुख्यमंत्री विकास और भ्रष्टाचार के ढिंढोरा पीटते हैं वही दूसरी तरफ उनके पदाधिकारी विकास और भ्रष्टाचार पर गंभीर नहीं दीखते। कुछ ऐसी ही एक विकलांग जनता की समस्या विकास पुरुष के गृह जिले नालंदा की है।“

      नालंदा (राजीव रंजन)। जब साहब के हई सर पर हाथ तब डर काहे कान ! भला जनता की समस्याओं को कौन सुनता है ,जब पदाधिकारियों पर मंत्रियों और विधायकों का हाथ हो तो उसे जनता की शिकायत से डर किस बात की।

      जनता की समस्याओं को पदाधिकारियों रूबरू होकर भी उनकी समस्याओं और दर्द को दरकिनार कर देते हैं चाहे वह प्रखंड विकास पदाधिकारी, ग्राम सेवक या जनप्रतिनिधि ही क्यों ना हो। बेचारे भोले भाले गरीब जनता जिन्हें कुछ की जानकारी नहीं उन्हें पदाधिकारी समझा-बुझाकर उनकी समस्याओं को उन्ही के जुबान तक सीमित रहने देते हैं।

      नालंदा जिला के  सरमेरा प्रखंड क्षेत्र के केनार पंचायत के गौस नगर गांव निवासी मदन राउत का विकलांग पुत्र डोमन राउत है।nalanda news 1

      इनका आरोप है कि लगातार 1984 से 2016 के फरवरी महीने तक इन्हें विकलांगता का पेंशन मिलता रहा लेकिन मार्च  2016 से इन्हें विकलांगता का पेंशन मिलना बंद हो गया।

      डोमन राउत ने बताया कि हमें 1984 से ₹30 प्रति महीना कि दर से पेंशन दिया जाता था। पेंशन बंद होने की शिकायत सरमेरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी राकेश कुमार से किया, मगर इन्हें ग्राम सेवक से मिलने की सलाह देकर प्रखंड विकास पदाधिकारी ने अपने सर से बोझ को हल्का कर लिया।

      पुनः इनके द्वारा ग्राम सेवक अनिल पटेल को सभी कागजातों का कॉपी कर दिया गया मगर इनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर हटाते चला गया और आज तक इन्हें विकलांगता पेंशन बंद होने का कारण भी नहीं बताया गया।

      इसी तरह से लगातार इन्होंने चार पांच बार किया अंततोगत्वा इन्होंने समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों को अवगत कराया और जिले के लोक शिकायत काउंटर में भी अपना शिकायत दर्ज कराया।

      आखिर एक प्रखंड विकास पदाधिकारी इन विकलांग की समस्याओं से अवगत नहीं होते हैं तो वह किस तरह से एक प्रखंड का विकास करेंगे। जब इस विकलांग के एक छोटी सी समस्या का समाधान ही नहीं कर सके तो जनप्रतिनिधि तो खुद चुनावों में रुपया खर्च कर सरकारी खजाने को लूटने के लिए ही जीतते हैं।

      न जाने इस गरीब जनता ने उन्हें या उनके करीबियों को नजराना ना दिया जिसका उन्हें भुक्तभोगी भोगना पड़ रहा है। ऐसे विकास पर विकास पुरुष को इतराने का कोई हक नहीं है।

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