“बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में थानेदारों की थेथरई से अब कोर्ट भी खिन्न है। आखिर हों भी क्यों न। हुरेठने पर तो ‘थुथुरवा’ भी घुसटने लगता है, लेकिन सुशासन के ये ‘बड़ा बाबू’ लोग टसमस नहीं हो रहे…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। नालंदा जिले में किशोर से संबंधित मामलों में भी पुलिस द्वारा समय पर चार्जशीट नहीं सौंपी जाती है। जिसका असर किशोर से संबंधित केस पर पड़ता है। निर्दोष किशोर एवं उसके परिजन कोर्ट के चक्कर काटने को विवश हैं, वहीं गंभीर मामलों के दोषी किशोर भी आराम से बच निकल रहे हैं।
खबर है कि नालंदा जिले में किशोर न्याय परिषद में 300 से भी अधिक वाद पुलिस द्वारा चार्जशीट नहीं सौंपे जाने के कारण लंबित है।
फिलहाल जेजेबी द्वारा 100 मामलों की सूची एसपी को रिमाइंडर के साथ सौंपी गयी है। रिमाइंडर में लापरवाह पुलिस अफसरों पर कार्रवाई के लिए कहा गया है।
इसके अलावा 200 से भी अधिक मामलों की सूची तैयार की जा रही है। कुछ मामले तो ऐसे हैं, जो चार्जशीट के अभाव में चार-पांच साल से लंबित है।
किशोर न्याय परिषद (जेजेबी) के प्रधान दंडाधिकारी सह अपर जिला व सत्र न्यायाधीश (जज) मानवेन्द्र मिश्र ने इस पर तल्ख तेवर अपनाते हुए एसपी को एक बार फिर से रिमाइंडर भेजा है।
लंबित मामलों में उत्पाद अधिनियम से संबंधित मामलों के अलावा हत्या, रेप, लूट, एटीएम फ्रॉड, अपहरण जैसे गंभीर अपराध से संबंधित वाद भी शामिल हैं।
फिलहाल जेजेबी जज के द्वारा जिन 100 मामलों की सूची सौंपी गयी है, उसमें 55 मामले उत्पाद अधिनियम से संबंधित है। जिनमें थानेदारों या मामले के अनुसंधानकर्ताओं का अपना अलग ही ‘खेला’ निहित होता है।
जेजेबी जज द्वारा भेजे गये रिमाइंडर के अनुसार समय-समय पर संबंधित थाना प्रभारी को सूचना देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। वहीं 22 जून को पत्र द्वारा एसपी से भी अनुरोध किया गया था कि वह अपने स्तर से संबंधित पुलिस पदाधिकारी और आईओ को दिशा-निर्देश दें।
डीएसपी मुख्यालय को भी जेजेबी में बुलाकर चार्जशीट के लिए सूची के साथ निर्देश दिया गया था। न्यायालय परिसर में त्वरित विचारण प्रभारी को भी सूची सौंपी गयी थी। फिर भी कार्रवाई शून्य है।
सूची सौंपने के डेढ़ माह बाद भी महज 12 मामलों में ही चार्जशीट सौंपा जा सका है। यही नहीं जेजेबी द्वारा एक वाट्सएप ग्रुप भी संचालित किया जाता है।
इस ग्रुप में जिले के सभी थाना प्रभारी, पुलिस पदाधिकारी, अभियोजन पदाधिकारी शामिल हैं। ग्रुप में भी निर्देश डालने के बावजूद कुछ थाना प्रभारी को छोड़कर अधिकांश इसे नजरअंदाज करते रहे हैं।
किशोर संबंधित मामलों में थानेदारों की लापरवाही का आलम यह है कि यहाँ कई मामले चार-पाँच साल से लंबित है। थानेदार सह बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी इतने वर्षों के बाद भी जेजेबी को यह नहीं बता सके हैं कि अपराध में किशोर शामिल था या नहीं।
लहेरी थाना कांड संख्या 166/77, मानपुर थाना कांड संख्या 81/17, छबिलापुर थाना कांड संख्या 73/14, चिकसौरा थाना कांड संख्या 57/18, सरमेरा थाना कांड संख्या 75/18 कुछ उदाहरण है।
ये मामले बताते है कि किशोर से संबंधित मामलों में पुलिस किस हद तक लापरवाह है। फिलहाल जिन 100 मामलों की सूची सौंपी गयी है उसमें 26 थाने शामिल हैं।
जेजेबी जज द्वारा एसपी को भेजे गये रिमाइंडर में कहा गया है कि न्यायालय और वरीय पदाधिकारियों द्वारा बार-बार दिये जा रहे आदेश का पालन नहीं करने वाले संबंधित थाना प्रभारी और आईओ यदि 15 दिनों के अंदर चार्जशीट न्यायालय को नहीं सौंपते हैं तो ऐसे पुलिस पदाधिकारी का जीवन निर्वह्न भत्ता छोड़कर तब तक के लिए वेतन बंद कर दें, जब तक न्यायिक आदेश का पालन नहीं करते हैं।
जेजेबी जज ने फिलहाल जिन 100 मामलों की सूची एसपी को दी गयी है, बिहार थाना 16 मामले के साथ सर्वोच्च स्थान पर है। वहीं लहेरी थाना में 7, राजगीर थाना में 6, सरमेरा थाना में 6, महिला थाना में 1, मानपुर थाना में 1, नालंदा थाना में 4, नगरनौसा थाना में 1, नूरसराय थाना में 2, परबलपुर थाना में 4, रहुई थाना में 3, सिलाव थाना में 2, सारे थाना में 3, सोहसराय थाना में 2, थरथरी थाना में 3, तेल्हाड़ा थाना में 4, बेन थाना में 3, चंडी थाना में 3, चिकसौरा थाना में 3, छबिलापुर थाना में 2, दीपनगर थाना में 4, एकंगरसराय थाना में 1, गिरियक थाना में 4, गोकुलपुर थाना में 1, चेरो थाना में 1, कल्याणपुर थाना में 1, हरनौत थाना में 2, हिलसा थाना में 3, इसलामपुर थाना में 6 और खुदागंज थाना में 1 संबंधित मामले शामिल हैं। अन्य 200 मामलों की सूची जारी होने पर इनके ग्राफ उपर नीचे हो सकते हैं।
पुलिस द्वारा चार्जशीट नहीं सौंपने के कारण किशोर को न्याय मिलने में देरी होती है। साथ ही न्यायालय द्वारा केस को टर्मिनेट कर दिया जाता है। पत्र में कहा गया है कि यदि 15 दिनों के अंदर चार्जशीट उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो किशोर न्याय अधिनियम के तहत केस को टर्मिनेट कर दिया जायेगा।
साथ ही थाना प्रभारी और आईओ पर विभागीय कार्रवाई के लिए लिखा जायेगा। केस टर्मिनेट होने की पूरी जिम्मेवारी संबंधित पुलिस पदाधिकारी की होगी।
दरअसल, जेजेबी में मामले का निष्पादन किशोर के प्रथम बार बोर्ड में पेश होने से चार माह के अंदर या अधिकतम विस्तारित अवधि जो किसी भी स्थिति में 6 माह से अधिक नहीं हो सकती में करनी होती है।
साथ ही जघन्य और गंभीर मामलों में पुलिस को विधि विरूद्ध किशोर के विरूद्ध 30 दिन के अंदर चार्जशीट सौंप देना है लेकिन किसी भी थाना द्वारा इसका पालन नहीं किया जा रहा है।
इसके कारण किशोर न्याय अधिनियम की धारा 14 (2) के अधीन निर्धारित समय में मामले का निपटारा नहीं हो पा रहा है। जबकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का भी स्पष्ट निर्देश है।
उल्लेखनीय है कि नालंदा जिले की पुलिस किशोर न्याय अधिनियम की धारा 78 का भी उपयोग नहीं कर रही है। जेजेबी जज के निर्देश पर अभी तक दीपनगर थाना से संबंधित सिर्फ 1 मामले में इसका उपयोग किया जा सका है।
पुलिस द्वारा इस धारा का उपयोग नहीं करने का परिणाम है कि शराब या किसी अन्य तरह के अपराध के लिए किशोर का उपयोग करने वाले व्यस्क अपराधी बच जाते हैं। जिसे 7 वर्ष की सजा और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
इसके पूर्व जेजेबी जज के एक पत्र पर संज्ञान लेते हुए अपराध अनुसंधान विभाग कमजोर वर्ग के पुलिस महानिरीक्षक ने भी अक्टूबर 2018 में ही सभी एसपी को पत्र लिखकर अऩुसंधान व समय पर चार्जशीट सौंपने से संबंधित दिशा-निर्देश दिये थे। बावजूद जिले के पुलिस अधिकारी इस पर अमल नहीं कर रहे हैं।
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