“कल्पवृक्ष की पूजा भारतीय परंपरा में प्राचीन काल से होता आ रहा है। मनुष्य के जीवन में दान का अत्यंत महत्व है। सही ढ़ंग से कमाया हुआ धन, लोभ, मोह और मुक्त चित्त होकर शीलवान व्यक्ति को दान देने से पुण्य प्राप्त होता है।”
नालंदा (राम विलास)। शुक्रवार को नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय नालंदा में दो दिवसीय कठिन चीवर दान महोत्सव शुरू हुआ। बुद्ध-धम्म और संघ की वंदना के बाद बौद्ध भिक्षु एवं पूर्वोत्तर के उपासकों ने कल्पवृक्ष के साथ नाचते गाते आकर्षक शोभा यात्रा निकाली।
महोत्सव में भाग लेने आये अरूणाचल प्रदेश के बौद्ध भिक्षुओं और उपासको ने बताया कि पूर्वोत्तर में लोहित, नामसाय और चांगलांग जिले में रहने वाले लोग थेरवाद बुद्धिज्म को मानते हैं।
खम्ती, सिफो, टेखाक तांगसा जनजाति के लोग आज भी इस परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं। यही एक ऐसी जनजाति हैं, जो इस प्रथा को निभा रहें हैं। वहां के बौद्ध धर्मावलंबियों के जीवन के हर पहलू में बौद्ध संस्कृति रची-बसी हैं। वर्षावास के दौरान तीन महीने तक कठोरता से नियम पालन करने वाले बौद्ध भिक्षु को कठिन चीवर दान कर सम्मान दिया जाता है।
अरूणाचल प्रदेश की महिला उपासकों द्वारा पंचशील एवं अष्टशील धारण करके चीवर (बौद्ध भिक्षुओं को पहनने वाला अंग वस्त्र) बनाने का कार्यक्रम शुरू किया गया है। इस दौरान उपासिकायें धागा से 12 घंटे में चीवर बनायेगी।
महोत्सव के अंतिम दिन शनिवार की सुबह वरिष्ठ बौद्ध भिक्षुओं को यह चीवर दान किया जायेगा। इस अवसर पर महाविहार में वर्षावास एवं कठिन चीवर दान का महत्व शीर्षक पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।