एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (मुकेश भारतीय)। कुछ बाते अंदर तक कचोट जाती है। जो सृष्टि राज सिन्हा किसी को भी पटना के पारस अस्पताल में ईलाज कराने की सलाह देते थे। हरसंभव मदद करते थे। उन्हें क्या पता था कि यही अस्पताल उनके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार करेगा?
हिलसा के एसडीओ सृष्टि राज सिन्हा की तबियत 3 दिनों से खराब थी। उन्हें बुखार था। डेंगू के लक्षण थे। वे मानसिक तनाव में भी थे। जब वे पारस अस्पताल में भर्ती होने गए तो पहले दिन उन्हें भर्ती नहीं लिया गया। दूसरे दिन भर्ती के बाद बेड नहीं मिला। उन्हें 4-5 घंटा स्ट्रेचर पर रखा गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
उन्हें जिस तरह से हिलसा से एसडीओ पद से हटाकर सहरसा भेजा गया। उन्हें इसकी काफी टीस थी। वे असहज थे। उसपर उन्हें उस अस्पताल में अमानवीय परिस्थिति का सामना करना पड़ा, जिस पर उन्हें काफी भरोसा था।
उनके साथ हुई एक बातचीत में साफ लग रहा था कि पद से हटते ही उनके साथ हर जगह जिस तरह से नजरिए बदले हैं, उन्हें काफी साल रहा है।
एक गलत दबाव के आगे जिस तरह न झुकने की एवज में एक जनप्रतिनिधि-आइएएस अफसर (आइएएस अफसर नालंदा में पदास्थापित नहीं हैं) की सांठगांठ ने दुष्चक्र रचा और उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा।
एक बातचीत में जब मैंने उनसे कहा कि ‘का कीजिएगा सृष्टि राज बाबू, यही तो नौकरी है। आप कहीं भी जाइएगा, आपकी अलग पहचान होगी’।
इस पर उनका प्रतिउतर बड़ा रहस्यमय था। उनका कहना था, ‘नौकरी में सेवा अलग चीज है। स्थानान्तरण अगल चीज। लेकिन ‘काला पानी’, वह भी पहले बोलकर, यह कचोटती है। खासकर जब अपने दायित्व का ईमानदारी से निर्वाह करते हों।’
इसी बीच वे हिलसा से व्यवहारिक तौर पर विदा होकर सहरसा रवाना होते कि उन्हें कथित “डेंगू” हो गया। लेकिन उसके बाद उनके साथ पारस अस्पताल में जो व्यवहार हुआ, वह उन्हें अंदर तक पीड़ित कर गया।
यह एक बड़ा जांच का विषय है कि आखिर पारस अस्पताल में एक कुछल प्रशासनिक अफसर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया गया। क्या वाकई अस्पताल प्रबंधन की कोई ढांचागत लाचारी थी या फिर रहस्यमय लाचारी।
सबसे बड़ी बात कि सुशासन बाबू की यह कैसी व्यवस्था चल रही है कि बिहार प्रशासनिक सेवा के एक सीनियर अफसर को गंभीर हालत में भर्ती न लिया जाए और 4-5 घंटे स्ट्रेचर पर रखा जाए तथा उचित ईलाज के अभाव में असमायिक मौत हो जाए? आम जनता की हालत की कल्पना सहज की जा सकती है।