” विधायक, मंत्री और विभाग के दौड़ लगाते-लगाते अमरदीप थक हार कर अब मजदूरी करने को लाचार है। दूसरे के खेतों में काम कर किसी तरह अपना खर्च निकाल रहा है। एक उम्मीद थी सरकार से, वो भी अब टूट रही है है।”
ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं अमरदीप कुमार। इस अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी के खाते में कई उपलब्धियां है। मलेशिया में गोल्ड मैडल जीत कर देश और राज्य का गौरव बढ़ाया। खेल को लेकर इन्हें गोस्सनर कॉलेज में इंटर की परीक्षा से भी वंचित होना पड़ा। खेल के प्रति इनका जूनून का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। लेकिन इनका परिवार आज भी सब्जियां बेचता है और ये खिलाड़ी लाचार और बेबस है।
वेशक देश को मेडल दिला थ्रो-बॉल का लोहा मनवाने वाले गोल्ड मेडलिस्ट अमरदीप अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। हरियाणा, पश्चिम बंगाल,कर्नाटका,तेलंगना, गुजरात, छत्तीसगढ़, समेत कई राज्यों में अपनी खेल प्रतिभा को प्रदर्शित करने वाले अमरदीप खेतों में मजदूरी करने को मजबूर है। इंटरनेशनल टूर्नामेंट में देश और राज्य का नाम रौशन करने वाला यह प्रतिभावान खिलाड़ी रोजी रोटी के लिए दर-दर भटकने को विवश है।
रांची के अरगोड़ा चौक पर सड़क किनारे सब्जी बेचने वाले पिता ने बताया कि विधायक, मंत्री और विभाग के दौड़ लगाते-लगाते अमरदीप थक हार कर अब मजदूरी करने को लाचार है। दूसरे के खेतों में काम कर किसी तरह अपना खर्च निकाल रहा है। एक उम्मीद थी सरकार से, वो भी अब टूट रही है। मैडल जीत कर बेटा राज्य और देश का नाम रौशन किया है।
अमरदीप के पड़ोसियों ने बताया कि घर की माली हालत बिलकुल ठीक नहीं है। उसके बाद भी घरवालों ने कई जगह से कर्ज लेकर खेलने के लिए मलेशिया भेजा। देश और राज्य के नाम मेडल दिलाने वाला आज खुद मोहताज़ है।
झारखण्ड थ्रोबाल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ राजेश गुप्ता ने खेल के प्रति उदासीनता को लेकर सरकार पर सवाल उठाया है। खेल विभाग के अधिकारी फोटो खिंचवाने और अख़बारों में छपवाने में आगे रहते हैं। लेकिन जब सुविधा देने की बात आता है तो खेल को ओलम्पिक और नॉन- ओलम्पिक में बाँट कर खिलाड़ियों के मनोबल को गिराने का काम कर रहे हैं। यहां नॉन ओलम्पिक गेम बता कर एक खिलाडी की खेल प्रतिभा को कुचलने का काम किया जा रहा है।
थ्रोबॉल के प्रशिक्षक गौतम सिंह ने बताया कि 1960 से यह गेम देश में खेला जा रहा है। दूसरे राज्यों में इस खेल पर सभी सुविधाएँ सरकार उपलब्ध कराती है। कर्नाटक, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, राजस्थान आदि राज्यों में थ्रो-बॉल के खिलाडियों को तमाम सुविधाओं के साथ साथ छात्रवृति, खेल अवार्ड, खेल अनुदान देकर खिलाडियों का प्रोत्साहन किया जाता है।
लेकिन, झारखण्ड में इस खेल के खिलाडियों की हालत दयनीय है जो की चिंता का विषय है। आने वाले दिनों में जिस तरह किसान आत्महत्या कर रहे हैं उसी तरह खिलाडीयों को भी गलत कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ेगा।
हटिया विधायक नवीन जयसवाल से इस बाबत बात करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। वहीं राज्य के खेल मंत्री अमर बाउरी से इस बारे पूछा गया तो हमारे पास आएंगे तो देखेंगे की बात कह कर गाडी में बैठ कर सीधे चलते बने।
बहरहाल, गोल्ड मेडलिस्ट अमरदीप के हालत ने सरकार के तमाम दावों की पोल खोल दी है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि राज्य और देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ी की अगर यह दशा होगी तो कैसे होगा खेल का विकास?
राजधानी में तमाम मंत्री और नौकर शाही के रहने के बावजूद अमरदीप की यह हालत सरकार की व्यवस्था की पोल खोल रही है। अगर राजधानी में यह स्थिति है तो सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले खिलाडियों का क्या हाल होगा।
एक नजर, जो झारखंड की नियति-नियता को शर्मसार करती है…..
- देश की 24 राज्य की सरकारें थ्रो-बॉल को मान्यता दे कर सुविधा दे रही है
- झारखण्ड के साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड भी थ्रो-बॉल को मान्यता दे कर खिलाडियों को सुविधाएँ प्रदान कर रही है
- भाजपा शासित हरियाणा में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय खिलाडी को पदक लाने पर 3.00 लाख (तीन लाख) कैश अवार्ड देती है
- भाजपा शासित मध्यप्रदेश में थ्रो-बॉल खिलाडी को एकलव्य पुरष्कार और प्रोत्साहन राशि दिया जाता है
- कर्नाटक सरकार थ्रो-बॉल खिलाडियों को कर्णाटक क्रीड़ा खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित करती है
- नॉन-ओलम्पिक योग में झारखण्ड कि अर्चना को थाईलैंड में रजत पदक जितने पर राजयपाल ने तीन लाख कैश दिया था, जबकि अमरदीप ने गोल्ड जीता है