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    Sunday, November 24, 2024
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      हर राज़ से पर्दा उठा, लेकिन फैसला सुरक्षित, मामला राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि का

      “आज पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम अपीलीय प्राधिकार पदाधिकारी आनंद किशोर के समक्ष की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि की अतिक्रमण हटाने की हर वाद को लेकर प्रशासनिक तौर पर हर जगह गड़बड़ी की गई है। यानि कि सब कुछ और हुआ !”   

      rajgir malmas mela anand kishore actionपटना (मुकेश भारतीय)। आज पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम अपीलीय प्राधिकार पदाधिकारी आनंद किशोर के समक्ष राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि पर काबिज भूमाफिआयों से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान प्रायः हर राज से पर्दा उठ गया। लेकिन, फिलहाल फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।

      आश्वस्त सूत्रों के अनुसार आज राजगीर के आरटीआई एक्टिविस्ट समाजसेवी पुरुषोतम प्रसाद द्वारा दायर अनन्य वाद संख्या-999990124121628208/1A की अंतिम सुनवाई के दिन नालंदा जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी संजीव कुमार सिन्हा, राजगीर के अनुमंडल पदाधिकारी लाल ज्योति नाथ  शाहदेव, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी संजय कुमार, अंचलाधिकारी सतीश कुमार, राजस्व कर्मचारी आमोद कुमार , बिजली-पानी विभाग के अधिकारी आदि समेत वादी भी सशरीर उपस्थित हुये।

      आज की गई सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि की अतिक्रमण को लेकर प्रशासनिक तौर पर हर जगह गड़बड़ी की गई है। मेला सैरात भूमि के सीमाकंन में कुछ हुआ। अतिक्रमणवाद कुछ पर चला। अतिक्रमण का नोटिस कुछ का हुआ। अतिक्रमण का आदेश कुछ का हुआ। कथित कोर्ट के आदेश का हवाला कुछ हुआ। कार्रवाई कुछ हुआ। यानि कि सब कुछ और हुआ!   

      राजगीर अनुमंडल पदाधिकारी  लाल ज्योति नाथ  शाहदेव ने अपना पक्ष रखते हुये बताया कि पिछली सुनवाई के अंतरिम आदेश के तहत जो आदेश निर्गत किये गये थे, उस आलोक में अंचलाधिकारी द्वारा दी गई अतिक्रमणकारियों की सूची के अनुसार मलमास मेला सैरात भूमि की जमीन को पूर्णतः खाली करा लिया गया है।

      इस  पर वादी ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई कि अनुमंडल पदाधिकारी का यह कहना पूर्णतः गतल है। सैरात भूमि पर बड़े अतिक्रमणकारियों को छुआ तक नहीं गया है।

      इसके बाद राजगीर अंचलाधिकारी सतीश कुमार ने अपना पक्ष रखते हुये कहा कि मलमास मेला भूमि से जुड़े अतिक्रमणकारियों में मात्र एक ने हाई कोर्ट से स्टे ऑडर की बात कही है लेकिन उसने ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं कराये हैं। बाकी लोग नीचली अदालत द्वारा बस्तुस्थिति बनाये रखने का हवाला दिया है।

      लेकिन जब वादी ने इस पर आपत्ति दर्ज करते हुये कहा कि मेला सैरात भूमि की शिकायत-सुनवाई कोर्ट का मामला ही नहीं है और अगर ऐसा कुछ आदेश है तो उसकी कॉपी दिखाएं तो अंचलाधिकारी खामोश हो गये। वादी ने इस बात के प्रमाण समर्पित करते हुये बताया कि बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट की धारा 16 में वर्णित प्रवधान के मुताबिक किसी भी व्यवहार न्यायालय (सिविल कोर्ट) को इससे जुड़े किसी भी मुकदमें को सुनने, उसे पंजीकृत करने का अधिकार ही नहीं है।  

      एक तरह से माने तो अंचलाधिकारी ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया है। उन्होनें जान बूझ कर प्रभावशाली बड़े अतिक्रमणकारियों को नहीं हटाया। 

      इस वाद पर अपना पक्ष रखते हुये राजगीर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि आदेशानुसार उनके नेतृत्व में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम किये गये। कहीं किसी प्रकार के कोई विरोध का सामना नहीं करना पड़ा और आज तक स्थिति शांतिपूर्ण कायम है।

      राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि के अतिक्रमणकारियों के भवनों से बिजली-पानी काटने को लेकर अपना पक्ष रखने संबंधित अधिकारी भी पहुंचे थे, लेकिन उन्हें अपना पक्ष रखने का कोई अवसर ही नहीं मिला।

      बता दें कि प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम अपीलीय लोक प्राधिकार पदाधिकारी आनंद किशोर ने अपने पिछले अंतरिम एक आदेश में नालंदा के जिला पदाधिकारी को अपने स्तर से अतिक्रमण मुक्त अभियान का अनुश्रवण करने तथा आवश्यकता अनुसार स्थानीय प्रशासन को संसाधन उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया था।

      यदि हम इस आलोक में आंकलन करें तो साफ स्पष्ट होता है कि नालंदा के जिला पदाधिकारी ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया या फिर वे भी बड़े अतिक्रमणकारियों के खेल में शामिल हो गये।

      अगर यह नहीं तो फिर क्या वजह है कि बड़े अतिक्रमणकारी सिविल कोर्ट के बहाने सीओ के साथ उन्हें ही प्रतिवादी बना कर सबको झांसा देने में सफल रहे और सरकारी स्तर पर उस मामले का प्रभावी विरोध दर्ज नहीं कराया गया, जो कि न्यायालय के  क्षेत्राधिकार में था ही नहीं?

      क्योंकि बिहार पब्लिक लैंड एनक्रॉचमेंट एक्ट की धारा 16 में वर्णित प्रवधान के मुताबिक किसी भी व्यवहार न्यायालय (सिविल कोर्ट) को अतिक्रमण से जुड़े किसी भी मुकदमें को सुनने, उसे पंजीकृत करने का अधिकार ही नहीं है। प्रशासन के विरुद्ध ऐसे मामलों को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दिया जा सकता है।

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