“यूँ तो बिहार की सियासत में विरासत की लड़ाई जगजाहिर है। लेकिन नालंदा के हरनौत में ‘विरासत’ की सियासत की एक अनोखी कहानी लिखी जा रही है…”
-: एक्सपर्ट मीडिया न्यूज /जयप्रकाश नवीन :-
राजनीति में ‘विरासत’ का प्रचलन यूँ तो नया नहीं है। ‘राजा का बेटा राजा’ की तर्ज पर ‘नेता का बेटा नता’ का फार्मूला लगभग हर पार्टी में दिख जाता है।
मौजूदा राजनीति के दौर में ‘एक’ पीढ़ी बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी है। धीरे-धीरे वो अपनी राजनीति विरासत अपनी अगली पीढ़ी को सौंप रही है।
नई पीढ़ी के सामने चुनौतियां नए तरीकों की हैं। उन्हे पिता द्वारा सौंपा गया जनता का विश्वास भी कायम रखना है और बदले हुए दौर में आधुनिकता के साथ पार्टी को आगे बढ़ाने के साथ अपने पिता के विरासत को बनाएँ रखना भी एक चुनौती होती है।
तमाम तरह के दबाव के साथ नए नेता कई उलझनों में फंस जाते हैं। ऐसे में उन्हे संतुलन बनाए रखना सबसे मुश्किल होता है।
36 साल पहले विरासत की पुनरावृत्ति फिर से आगामी विधानसभा चुनाव में दिख सकती है।
36 साल पहले विरासत की सियासत में एक ‘अनिल’ आएं थें लेकिन एक बार फिर से एक और ‘अनिल’ अपने पिता के सियासत को संभालने की जुगाड में है। ऐसे में सवाल आखिर हरनौत की नियति में बार-बार अनिल ही क्यों?
नालंदा का चंडी विधानसभा अब (हरनौत विधानसभा) की सियासी सफर काफी रोचक रही है। 1962 से लेकर अब तक यहां तीन लोगों के इर्द गिर्द ही राजनीति का पहिया घूमता रहा है।
चंडी और हरनौत विधानसभा से आठ बार विधायक रहे हरिनारायण सिंह 2000 से लगातार पांचवी बार विधायक हैं और डबल हैट्रिक मारने की संभावना 2020 में दिख रही है।
1962 से चंडी और हरनौत विधानसभा क्षेत्र में चंडी-नगरनौसा प्रखंड का ही कब्जा रहा है।
इससे पहले चंडी विधानसभा से 1962 में पहली बार प्रजा सोश्लिस्ट पार्टी से चुनाव जीतकर आएं बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह पांच बार विधायक रह चुके थे।
1962 से लेकर 1977 तक इनका एकछत्र राज रहा। लेकिन 19977 के कांग्रेस विरोधी लहर में जनता पार्टी के हरिनारायण सिंह ने प्रचंड बहुमत से चंडी विधानसभा से जीत हासिल कर बीबीसी की सुर्खियों में आए थे।
1980 में डॉ रामराज सिंह ने फिर से वापसी की।इसी बीच दो साल बाद पूर्व मंत्री और विधायक डॉ रामराज सिंह की असमय निधन हो गई । यहां से चंडी विधानसभा में ‘विरासत’ की सियासत शुरू हो गई।
डॉ रामराज सिंह के निधन के बाद कौन? जनता के बीच ऐसे सवाल खडे हो गए। ऐसे में उनकी विरासत को संभालने के लिए कदम बढ़ाया उनके पुत्र अनिल कुमार ने।
उपचुनाव में अपने पिता की विरासत संभाले अनिल कुमार के सामने एक बार फिर से के पूर्व विधायक हरिनारायण सिंह लोकदल के टिकट पर चुनाव मैदान में थे।
राजनीति में उलटफेर का चाणक्य माने जाने वाले हरिनारायण सिंह ने 1983 के उपचुनाव में सभी दावे को झूठलाते हुए कांग्रेस के अनिल सिंह को मात दें दी।कांग्रेस नेता अनिल सिंह को सहानुभूति भी जीत नहीं दिला सकी।
वे अपने पिता की विरासत को बचा नहीं सके। लेकिन 1985 में विधानसभा चुनाव में अनिल कुमार को पहली बार जीत मिला। यहाँ से हरिनारायण सिंह और अनिल कुमार में शह और मात का खेल शुरू हो चुका था।
1990 में बिहार की राजनीति में तब तक मंडल कमीशन का खेल शुरू हो चुका था । एक बार फिर दोनों परम्परागत प्रतिद्वंद्वी आमने सामने थे।
इस बार फिर उलटफेर हुआ और जनता दल के हरिनारायण सिंह फिर से वापसी करते हुए विधायक निर्वाचित हुए। इस बार उन्हें लालूप्रसाद मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री बनने का सौभाग्य मिला।
1994 में जनता दल में एक और फूट पड़गई थी। जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में जनता दल का एक धड़ा अलग हो गई और समता पार्टी अस्तित्व में आ गई। बिहार के वर्तमान सीएम नीतीश कुमार भी समता पार्टी के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान रहा।
चंडी विधानसभा के पूर्व विधायक अनिल कुमार ने बदले राजनीतिक माहौल में समता पार्टी में शामिल होने का फैसला कर लिया था। समता पार्टी में शामिल होने का फैसला उनके हित में रहा।
1995 में समता पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। उनके सामने वर्तमान विधायक हरिनारायण सिंह चुनौती बनकर खड़े थे। लेकिन कांटे की टक्कर में अनिल कुमार बाजी मार ले गए।
बाद में हरिनारायण सिंह का जनता दल से मोह भंग हो गया। उन्होंने भी समता पार्टी में शामिल होने का फैसला कर लिया था। हरिनारायण सिंह के समता पार्टी में शामिल होते ही जनता के मन में सवाल कौंधने लगा कि अगला उम्मीदवार कौन?
हरिनारायण सिंह या अनिल कुमार? तब समता पार्टी के प्रमुख नीतीश कुमार ने अनिल कुमार का टिकट काटकर हरिनारायण सिंह में आस्था जताते हुए उन्हें चंडी विधानसभा से टिकट दिया।
चंडी विधानसभा क्षेत्र में चर्चा इस बात का भी रहा कि नीतीश कुमार अनिल कुमार कुमार को हिलसा से चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
तब के वर्तमान विधायक अनिल कुमार का फैसला उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा गलत फैसला माना जाता है। तब से दो दशक बाद भी अनिल कुमार एक स्थायी राजनीतिक ठिकाने की तलाश में है।
इस बीच उन्होंने दलीय तथा निर्दलीय विधानसभा से लेकर लोकसभा का चुनाव तक लड़ा लेकिन हर बार शिकस्त ही मिली। उधर 2000 से हरिनारायण सिंह की राह बिल्कुल आसान रही। उन्होंने 2005 विधानसभा तथा विधानसभा उपचुनाव भी आसानी से जीतकर हैट्रिक जीत दर्ज की।
इसी बीच परिसीमन की मार चंडी विधानसभा पर पड़ी। चंडी विधानसभा का नगरनौसा और चंडी हरनौत विधानसभा में शामिल हो गया।
लगा कि चंडी विधानसभा में हरिनारायण सिंह और अनिल कुमार के बीच की परम्परागत लड़ाई पर विराम लग जाएगा। दोनों की राजनीतिक पारी का अब अंत हो गया।
सीएम नीतीश कुमार हरनौत से ही किसी को टिकट दे सकते हैं। लेकिन राजनीतिक पंडितों की सारी अटकलें धरी की धरी रह गई । एक बार फिर से सीएम नीतीश के चहेते बन गए हरिनारायण सिंह।
2010 में चुनाव जीते ही नहीं बल्कि राज्य के शिक्षा मंत्री भी बनाएँ गए। 2015 विधानसभा चुनाव चुनाव में हरनौत से जीतकर उन्होंने लगातार पांचवी जीत दर्ज की।
इस तरह 1962 से लेकर 2020 तक चंडी और हरनौत विधानसभा में नगरनौसा प्रखंड का ही वर्चस्व रहा है।अब सवाल यह उठता है कि 1977 से विधायक रहे हरिनारायण सिह अब राजनीतिक संयास के उम्र पड़ाव पर हैं।
इसलिए उन्होंने भी अपने विरासत की राजनीति जारी रखने को लेकर अपने पुत्र अनिल कुमार को राजनीतिक का पाठ पढ़ा रहे हैं।
अपने हर राजनीतिक कार्यक्रम में उन्हें साथ लेकर चलते हैं। पिछले दिनों सीएम नीतीश कुमार के कार्यक्रम में अनिल कुमार की मंच पर सक्रियता यही दिखा रही थी।
विधानसभा चुनाव में भले ही अभी डेढ़ साल का समय है।लेकिन अभी से ही हरनौत विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों की बाढ़ सी आई हुई है। खासकर जदयू खेमे में। नगरनौसा प्रखंड से ही एक जदयू नेत्री और मुखिया की राजनीतिक सक्रियता देखी जा रही है।
वहीं चंडी प्रखंड से भी एक महिला नेत्री और जदयू की महिला जिला अध्यक्ष भी अपनी दावेदारी पक्की करने में लगी हुई हैं। वहीं विधायक हरिनारायण सिंह भी अपने पुत्र को राजनीतिक विरासत सौंपना चाह रहे हैं।
उधर एक दशक तक विधायक रहे अनील सिंह भी घर वापसी कर सबको चौंका सकते हैं, जैसा कि संकेत मिल रहे है। नीतीश भी उनकी वापसी कर पार्टी की ताकत मजबूत कर सकते हैं।
विधानसभा चुनाव आने तक कई और दावेदार आएंगे। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि हरनौत में आखिर हरिनारायण सिंह के बाद कौन होगा उम्मीदवार?
क्या उनके पुत्र अनिल कुमार अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालेगें या फिर कोई अन्य भी हो सकता है उम्मीदवार, या फिर सीएम नीतीश कुमार आखिरी बार हरनौत में हरि को बनाएँगे “नारायण”?
अगर हरिनारायण सिंह के पुत्र अनिल कुमार भी राजनीतिक में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं तो ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि 36 साल बाद हरनौत की नियति में ‘अनिल’ ही होंगे क्या?