“यह तस्वीर सुशासन बाबू के गृह जिले के राजगीर प्रखंड अंतर्गत लोदीपुर पंचायत के प्राथमिक विद्यालय बेलदारीपर की है। यह तस्वीर उस विधानसभा क्षेत्र नालंदा की है जहां से लगातार 30 वर्षों से विधायक बनते आ रहे श्रवण कुमार, जो आज सुशासन बाबू के करीबी और वर्तमान में बिहार सरकार के मंत्री भी हैं।”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (राजीव रंजन)। राज्य एवं केंद्र-सरकार का मूल संकल्प राज्य का सर्वांगीण विकास है जिसके अंतर्गत ‘न्याय के साथ विकास की नीति’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
बिहार के चौतरफा विकास की गारंटी का जिक्र करते हुए राज्य-सरकार समाज के सभी वर्गों के विकास की समरूपता के लिए प्रतिबद्ध है। किंतु यह एक ओर जहाँ माननीय मुख्यमंत्री के गृह जिला नालंदा स्थित पर्यटन नगरी राजगीर जो सुशासन बाबू को स्वप्न में भी स्वर्ग नजर आता है।
यह तस्वीर उसी विकास पुरुष के गृह जिले की है जो पूरे राज्य ही नहीं बल्कि देश में जा जा कर विकसित बिहार का आईना दिखाते हैं।
राजगीर प्रखंड के लोदीपुर पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय बेलदारीपर की हालात यह कि इस विद्यालय में करीब 90 बच्चे नामांकित हैं जिसमें से करीब 70 नौनिहाल बच्चे पठन पाठन कार्य करने के लिए विद्यालय प्रतिदिन आते हैं और अपने झोले में अपना भविष्य बंद करके विद्यालय के पास पहुंचकर खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर अपने भविष्य को गढ़ते हैं।
शायद इनकी सुध लेने वाला कोई पदाधिकारी या जनप्रतिनिधि नहीं है। आखिर रहेंगे ही क्यों ? मैं सवाल उन रहनुमाओं एवं पदाधिकारी गण से करना चाहता हूं कि इसकी सुध इसलिए नहीं ली जाती है, क्योंकि शायद उनके अपने बच्चे इस विद्यालय में आकर धूप में बैठकर अपना भविष्य नहीं गढ़ते होंगे।
ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य सरकार की प्रतिबद्धता ‘न्याय के साथ विकास’ का प्रतिफलन किस रूप में संभव है, आप अंदाजा लगा सकते हैं। इन हालातों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना बेमानी है।
“गौरवशाली स्वर्णिम बिहार है बनाना पर सकारात्मक सोच का कहीं न ठिकाना”।”शिक्षकों की बात भी तो है निराली, बगिया को काट रहा खुद माली”। हाय रे! बिहार के शिक्षा की मर्यादा, क्या कहूँ अब ज्यादा ?
गांव की गलियों में एक कहावत है अंधेर नगरी चौपट राजा बस यही हाल है बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की। जहां शिक्षा खोज रहा अपने बचने का अस्तित्व कि लोग हमें शिक्षा के नाम से जाने मगर बिहार के छात्र-छात्राओं खुद अपने आप पर निर्भर करते हैं ना कि सरकारी शिक्षा, सरकारी विद्यालय और सरकारी शिक्षकों पर, राज्य सरकार शिक्षा के नाम पर कहीं बहुत ज्यादा खर्च तो करती है वह भी केवल अधिकारियों और शिक्षा विभाग के सरकारी कर्मचारियों और शिक्षा माफियाओं का जेब गर्म करने के लिए।
सोचने की बात यह है कि शिक्षा इतना चौपट कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी विद्यालय का अपना सरकारी भवन नहीं बना जिसमें बच्चे बैठ कर पढ़ाई कर सके मगर मध्यान भोजन बनाने के लिए सरकारी अधिकारियों एवं शिक्षा के रहनुमाओं के द्वारा कमरे का निर्माण करा दिया गया।
“हाय रे शिक्षा तूने तो कमाल कर दिया बिहार के अधिकारियों को मालामाल कर दिया” ऐसे में शिक्षा को लेकर सवाल उठता है कि आखिर कब सुधरेगी बिहार कि शिक्षा प्रणाली?
क्यों ना पदाधिकारियों एवं नेताओं के बच्चे को भी इसी विद्यालय में पढ़ाई करने के लिए भेजा जाए? वही शिक्षा माफिया नेताओं एवं पदाधिकारियों के द्वारा बड़े-बड़े निजी विद्यालयों को बनवाने के लिए बैंक से लोन तक सैंक्शन करवा दिया जाता है एवं उनकी भवनों को चार मंजिला पांच मंजिला बनाया जाता है आखिर क्यों?