Home आस-पड़ोस सुनिए जनता की चित्कार, कब तक मरेंगे बच्चे, मेरे सरकार?

सुनिए जनता की चित्कार, कब तक मरेंगे बच्चे, मेरे सरकार?

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“मसला यह नहीं कि मेरा दर्द कितना है,
मुद्दा यह है कि,तुम्हें परवाह कितनी है………..”

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क ब्यूरो)। कुछ यही सवाल बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के परिजन बिहार के सरकार से पूछ रहे हैं? आखिर कब तक बिहार के मुजफ्फरपुर के बच्चे मरते रहेंगे, सरकार? आखिर पीड़ित बच्चों की सुध लेने की  रस्म अदायगी कब तक चलती रहेंगी ?

FAIL BIHAR HELTH SYSTEM 1आखिर कब तक मुजफ्फरपुर मीडिया की सुर्खियों में आता रहेगा? कभी बच्चियों के साथ बलात्कार को लेकर तो अभी चमकी बुखार को लेकर।

बिहार इन दिनों भीषण गर्मी और  मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार की भयानक त्रासदी का सामना कर रहा है। पिछले कई दिनों से बिहार के कई जिले भीषण गर्मी की चपेट में आया हुआ है।

बिहार का गया देश का पहला ऐसा जिला बना जहाँ भीषण गर्मी को देखते हुए धारा 144 लागू कर दिया गया। देखा देखी नालंदा, नवादा और औरंगाबाद में भी जिला प्रशासन ने भी यही कदम  उठाते हुए आम जनता के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए।

वही मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार  का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है।भीषण गर्मी के बीच पारा चढ़ने के साथ ही इस बुखार की चपेट में आकर बीमार होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है।

मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज और केजरीवाल अस्पताल में अब तक 130 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं दूसरे छोटे अस्पतालों में या घर पर हुए मौत का आकलन नहीं किया गया है। चिंताजनक बात यह है कि मरने वाले या गंभीर बीमार बच्चों में ज्यादातर बच्चियां है।

बिहार के मुजफ्फरपुर में महामारी का रूप धारण कर चुका चमकी बुखार ने अब तक डेढ़ सौ मासूम बच्चों की मौत से खेल चुका है। इस बुखार का कहर अब भी बरकरार है। ऐसा नहीं हैं कि मौत का चमकी बुखार पहली बार दस्तक दी है। पिछले कई सालों से इस बुखार का कहर मुजफ्फरपुर और उसके आसपास में देखा जा रहा है। लेकिन इस बार चमकी बुखार ने कहर बनकर आया है।

इस बुखार की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा चल रही हैं। दिल्ली से मीडिया की टीम इस महा मौत की कवरेज के लिए मुजफ्फरपुर पहुँची है।बिहार में इस बुखार के सामने सारी व्यवस्थाएँ  फेल दिख रही है ।यह बिहार में बच्चों के स्वास्थ्य का नंगा सच है।

बिहार में हर साल गंभीर समस्या बन चुका एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम(एईएस) से ज्यादातर बच्चे पीड़ित हो रहे हैं। देश के नेशनल हेल्थ पोर्टल की माने तो अप्रैल से जून के बीच मुजफ्फरपुर में उन बच्चों में यह रोग ज्यादा फैल रहा है जो कुपोषण के शिकार रहे हैं और लीची के बागानों में ज्यादा जाते रहे हैं। 

देखा जाए तो मुजफ्फरपुर में यह बीमारी पिछले ढाई दशक से देखा जा रहा है।लेकिन पिछले कई सालों में यह बीमारी भयावह होती जा रही है। इस संबंध में कई अध्ययन हुए लेकिन इस रोग का पता नहीं चल सका।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने इस रोग के लक्षणों के आधार पर इसका विश्लेषण करते हुए एक स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर तैयार किया और इस प्रोसीजर में तमाम बातों को शामिल किया गया जिससे इस रोग को नियंत्रित किया जा सकें, शायद ऐसा हुआ भी।

2015 से इस बीमारी के लक्षण में कमी दिखने लगी। उस साल सिर्फ 16 बच्चों की मौत हुई।  2016 में चार बच्चे की मौत हुई थी।  2019 में इस बीमारी ने फिर से वापसी करते हुए अब तक 130 से ज्यादा  बच्चों को लील चुका है।

पिछले ढाई दशक से बच्चों की मौत हो रही है। लेकिन अब तक बिहार सरकार की ओर से इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुछ ज्यादा नहीं किया जा रहा है। हर साल भाग्य भरोसे बीमारी को छोड़ दिया जा रहा है ।यही वजह है कि इस बार चमकी बुखार ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए है।

सीएम नीतीश कुमार पिछले दिन मीडिया के दबाव के बाद बच्चों का हालचाल जानने मुजफ्फरपुर पहुँचे तो जरूर लेकिन बीमार और पीड़ित बच्चों के परिजनों के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा।

इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन भी मुचफ्फरपुर गए। वे पांच साल पहले भी जब वे स्वास्थ्य मंत्री थें तब भी बिहार आए थें उस समय  लगभग तीन सौ बच्चों की मौत हुई थी। रहस्यमय बुखार, दिमागी बुखार या फिर चमकी बुखार बच्चों की जिंदगी को लील रहा है।

पिछले कई सालों के आकडे पर नजर डालें तो मुजफ्फरपुर में जितने भी बच्चों की मौत हुई है वो सभी इसी महीने में ज्यादा हुई है। इनमें से सबसे ज्यादा निम्न वर्ग के बच्चे थे।

इनके बारे में कहा जाता है कि बच्चे दोपहर में खुले बदन खेत खलिहानम में  निकल जाते हैं। सूर्य की गर्मी सीधे उनके शरीर को हीट करती है और वे दिमागी बुखार की चपेट में आ जाते हैं। बुनियादी समस्या मौत नहीं है।

बुनियादी समस्या और सवाल यह है कि यह मौत का बुखार क्या है?बिहार सरकार और स्वास्थ्य विभाग इसका समाधान क्यों नहीं ढूँढ सकी? सरकार ने भी उन बच्चों की मौत को नियति मान अपना काम करती रहीं  है।

किसी ने दलील दिया  कि बच्चों ने खाली पेट लीची खा ली तो उसके विषाणु के प्रभाव से मौत हो रही है। यदि इस तर्क को सही मान लिया जाए तो बच्चों को लीची खाने को क्यों दी जा रही है। ऐसा नहीं है प्रचंड गर्मी देश के दूसरे हिस्से में जानलेवा बुखार का कहर क्यों नहीं है।

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं सरकार ने तमाम बंदोबस्त किए हैं, हम मेहनत कर रहे है। सरकारी आकडे कुछ और बता रहे हैं लेकिन यह बीमारी एक भयावह त्रासदी है। लेकिन सरकार को इन बच्चों की मौत से कोई सरोकार नहीं दिख रहा है। यहां तक कि सीएम नीतीश कुमार की सरकार का भी विद्रुप सच है, जिनके एक मंत्री बच्चों की मौत को एक प्राकृतिक आपदा बता रहे है।

दरअसल यह व्यवस्था और सरकार के स्तर पर घोर लापरवाही का सच है।भले ही सरकार इसे स्वीकार करे या नहीं। सीएम नीतीश कुमार भले ही विकास का राग अलापे लेकिन बच्चों की मौत को विकास नहीं कह सकते हैं। विकास के नाम पर सड़कें चौड़ी कर देने और पेड़ काटकर सड़क विरान कर देना या फिर बड़े -बड़े भवन बना देना ही विकास नही है।

यह भी सर्वविदित सत्य है कि बिहार  शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में पिछड़ता जा रहा है। जनता भी वास्तविक विकास का मतलब नहीं समझती है।जिन्हें हम विकास समझ रहे हैं वह दुर्दशा की कहानी लिखी जा रही है।

ऐसे विकास राग में क्या मुजफ्फरपुर की यह नियति बन गई है कि आखिर कब तक बच्चियों के साथ बलात्कार होते रहेंगे और अबोध-दूधमुहे बच्चे काल के गाल में समाते रहेंगे। बिहार के सीएम नीतीश कुमार जनता पूछ रही है कि आखिर कब तक बिहार के बच्चे मरते रहेंगे?

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