एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। सीएम नीतीश कुमार राज्य के सभी अस्पतालों में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था के दावें करते हैं। लेकिन उनके ही गृह जिला नालंदा के चंडी का रेफरल अस्पताल खुद बीमार और मरणासन्न हालत में है। अपने जन्म से लेकर अब तक बदहाली पर आठ-आठ आँसू बहाने को विवश है।
सीएम नीतीश कुमार ने अपने केंद्रीय कृषि मंत्री और रेलमंत्री रहते चंडी प्रखंड में रेफरल अस्पताल, देश का दूसरा खुला जैविक उर्वरक संयंत्र तथा दनियावां -शेखपुरा रेलखंड की आधारशिला रखी थी। लेकिन तीनों अपने भाग्य को कोसने को मजबूर। आखिर किस घड़ी में उनका आधारशिला रखा गया।
लेकिन चंडी प्रखंड के दस्तूरपर निवासी आरटीआई कार्यकर्ता उपेन्द्र प्रसाद सिंह चंडी रेफरल अस्पताल के अस्तित्व को लेकर अपनी लड़ाई जारी रखें हुए हैं। उन्होंने बीमार रेफरल अस्पताल की बदहाली दूर करने के लिए पीएमओ को चिठ्ठी लिखी है। जिसका असर भी दिखने लगा है।
रेफरल अस्पताल में एक भी चिकित्सक नहीं है।सिर्फ़ दो एएनएम और दो स्वास्थ्य कर्मचारी के भरोसे चल रहा है अस्पताल। चंडी रेफरल अस्पताल पर ‘सुहागन हुई पर नहीं मिला सुहाग’ वाली कहावत चरितार्थ हो रहा है।
चंडी रेफरल अस्पताल को रेफरल का तो दर्जा मिला लेकिन रेफरल अस्पताल की सुविधाएँ कोसो दूर है। कहने को यह रेफरल अस्पताल है लेकिन सुविधा नगण्य।
जब राज्य सरकार के कान पर जूं नही रेंगी तो आरटीआई एक्टिविस्ट उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने पीएमओ को आवेदन देकर रेफरल अस्पताल में पूर्ण सुविधा उपलब्ध कराने के साथ अल्ट्रासांउड की मांग की है। पीएमओ ने उनके आवेदन पर कार्रवाई करते हुए मुख्य सचिव पटना तथा विभागीय सचिव स्वास्थ्य विभाग को रेफर कर दिया है।
रेफरल अस्पताल में पूर्ण सुविधा को लेकर मामले की सुनवाई 25 अगस्त को जिला लोक शिकायत में होनी तय है। इधर रेफरल अस्पताल में कार्यरत एकमात्र चिकित्सक को सिविल सर्जन, नालंदा ने प्रतिनियुक्ति पर जिला बुला लिया है।
नालंदा के चंडी प्रखंड के उपेन्द्र प्रसाद सिंह वही शख्स है जिनकी पहल और लंबी कागजी कार्रवाई के बाद चंडी प्रखंड की जनता को पता चलता है कि चंडी रेफरल अस्पताल को वर्ष 2005 में ही रेफरल का दर्जा मिल चुका था।
चंडी रेफरल के साथ अस्थावां तथा इस्लामपुर रेफरल अस्पताल को एक ही दिन 8 अगस्त 2011 को रेफरल अस्पताल की स्वीकृति मिली थीं। नालंदा में चौथे रेफरल अस्पताल का दर्जा सीएम के गृह प्रखंड हरनौत को 10 फरवरी 2017 को मिला ।
चंडी में रेफरल अस्पताल का सपना राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह का था। 1985 में उनके विधायक पुत्र अनिल कुमार उनके सपने को मूर्त रूप देने में सफल रहे। लेकिन इसका लाभ तत्कालीन कृषि मंत्री नीतीश कुमार तथा क्षेत्रीय विधायक हरिनारायण सिंह उठाने में सफल रहे।
21 अक्टूबर 1990 को 30 शैय्या वाले इस रेफरल अस्पताल का आधारशिला रखा गया था। 15 साल बाद 2005 में रेफरल अस्पताल को मंत्रिमंडल से दर्जा प्राप्त हो गया था। लेकिन क्षेत्रीय विधायक की उदासीनता के कारण मामला ठंडे बस्ते में पड़ा था ।
इसी बीच उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने रेफरल अस्पताल को जीवंत करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् तथा बिहार स्वास्थ्य विभाग के अपर सचिव का दरवाजा खटखटाया। अपर सचिव के द्वारा उपलब्ध जानकारी के बाद पता चला कि चंडी रेफरल अस्पताल को मंत्रिमंडल से दर्जा तो पहले ही मिला हुआ है।
8 अगस्त 2011 को विधिवत इसे रेफरल अस्पताल का दर्जा प्राप्त हुआ। लेकिन अब तक इस अस्पताल को रेफरल की सुविधा नहीं मिली है।
8 अप्रैल 2016 को एकमात्र चिकित्सक अजय कुमार की नियुक्ति हुई थीं ।उन्हें भी सिविल सर्जन द्वारा जिला में प्रतिनियुक्त कर दिया गया है।
यहाँ अब सिर्फ़ दो एएनएम और दो स्वास्थ्य कर्मचारी कार्यरत रह गए हैं। यहाँ तक कि अस्पताल में अल्ट्रासांउड की भी व्यवस्था अब तक नहीं हुई है।
अस्पताल को पूर्ण चिकित्सकीय सुविधा की मांग को लेकर श्री सिंह ने पीएमओ को पत्र लिखा था। जिसपर उन्हें जानकारी दी गई थीं कि शीघ्र ही रेफरल अस्पतालों में अल्ट्रा साउंड की सुविधा उपलब्ध करा दी जाएगी।
अस्पताल में पूर्ण सुविधा को लेकर जिला लोक शिकायत में 25 अगस्त को अगली सुनवाई होनी है।
अस्पताल में अभी तक रोगी कल्याण समिति का गठन भी नहीं हो सका है। जिस कारण विकास के कार्य ठप्प पड़ा हुआ है। श्री सिंह ने जनता दरबार में पिछले साल आवेदन देकर रोगी कल्याण समिति का गठन का मांग किया था। उन्होंने अस्पताल में चिकित्सक नहीं रहने की शिकायत राज्य स्वास्थ्य समिति से भी की है।
इधर क्षेत्रीय विधायक हरिनारायण सिंह ने भी सिविल सर्जन से अस्पताल से चिकित्सक को जिला बुलाने पर रोष व्यक्त करते हुए चिकित्सक को शीघ्र वापस भेजने का निर्देश दिया है।