अन्य
    Sunday, November 24, 2024
    अन्य

      सावधान ! जानलेवा नकली मिठाई का बाजार गर्म, प्रशासन है लापरवाह

      दीपावली आते ही बाजारों में नकली और घटिया मावा तथा पनीर से निर्मित मिठाई का कारोबार चल रहा है। दुकानदार उपर से मिठाईयों की उंची कीमत वसूल रहे हैं….”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। यूं तो समूचे नालंदा जिला में दीपावली को लेकर नकली मिठाई का कारोबार का खेल खूब चल रहा है।जिला मुख्यालय बिहारशरीफ में कई मिठाई प्रतिष्ठान में छापेमारी तो जरूर की है, फिर भी आलम है कि धंधेबाज मानते ही नहीं ।

      नालंदा के चंडी प्रखंड में भी मिलावटखोरों की खूब चलती दिख रही है।प्रखंड के बाजारों में नकली मिठाई का निर्माण और बिक्री धड़ल्ले से हो रही है।adulterated sweets nalanda 6

      प्रखंड के सभी शहरी एवं ग्रामीण इलाकों के बाजारों में मिलावटी मिठाई का धंधा चल रहा है।चंडी बाजार में कई ऐसे दुकानदार है जो ‘उंची दुकान फीकी पकवान वाली’ वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं। कई-कई दिन पुरानी मिठाई को ताजा बताकर ग्राहकों को बेच डालते हैं। इन दुकानों में मिठाई रखने की भी मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती है।सड़क किनारे दुकानों में मिठाईयों पर धूल उडती रहती है।

      इस त्योहार के मौसम में दर्जनों मिठाई दुकानदार, होटल संचालक मिलावट खोरी कर नकली मावे और सिंथेटिक सामग्री से तैयार मिठाई उंची कीमत पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाने की फिराक में लोगों के सेहत के साथ खिलवाड़ करने को तैयार है।

      बताया जाता है कि ज़्यादातर मिठाइयां मावे और पनीर से बनाई जाती हैं। दूध दिनोदिन महंगा होता जा रहा है। ऐसे में असली दूध से बना मावा और पनीर बहुत महंगा बैठता है।

      adulterated sweets nalanda 3

      फिर इनसे मिठाइयां बनाने पर ख़र्च और ज़्यादा बढ़ जाता है, यानी मिठाई की क़ीमत बहुत ज़्यादा हो जाती है। इतनी महंगाई में लोग ज़्यादा महंगी मिठाइयां ख़रीदना नहीं चाहते। ऐसे में दुकानदारों की बिक्री पर असर पड़ता है।

      इसलिए बहुत से हलवाई मिठाइयां बनाने के लिए नक़ली या मिलावटी मावे और पनीर का इस्तेमाल करते हैं। नक़ली और मिलावटी में फ़र्क़ ये है कि नक़ली मावा शकरकंद, सिंघाड़े, मैदे, आटे, वनस्पति घी, आलू, अरारोट को मिलाकर बनाया जाता है।

      इसी तरह पनीर बनाने के लिए सिंथेटिक दूध का इस्तेमाल किया जाता है। मिलावटी मावे उसे कहा जाता है, जिसमें असली मावे में नक़ली मावे की मिलावट की जाती है। मिलावट इस तरह की जाती है कि असली और नक़ली का फ़र्क़ नज़र नहीं आता।

      इसी तरह सिंथेटिक दूध यूरिया, कास्टिक सोडा, डिटर्जेन्ट आदि का इस्तेमाल किया जाता है। सामान्य दूध जैसी वसा उत्पन्न करने के लिए सिंथेटिक दूध में तेल मिलाया जाता है, जो घटिया क़िस्म का होता है। झाग के लिए यूरिया और कास्टिक सोडा और गाढ़ेपन के लिए डिटर्जेंट मिलाया जाता है। adulterated sweets nalanda 4

      फूड विशेषज्ञों के मुताबिक़ थोड़ी-सी मिठाई या मावे पर टिंचर आयोडीन की पांच-छह बूंदें डालें। ऊपर से इतने ही दाने चीनी के डाल दें। फिर इसे गर्म करें। अगर मिठाई या मावे का रंग नीला हो जाए, तो समझें उसमें मिलावट है। इसके अलावा, मिठाई या मावे पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड यानी नमक के तेज़ाब की पांच-छह बूंदें डालें।

      अगर इसमें मिलावट होगी, तो मिठाई या मावे का रंग लाल या हल्का गुलाबी हो जाएगा। मावा चखने पर थोड़ा कड़वा और रवेदार महसूस हो, तो समझ लें कि इसमें वनस्पति घी की मिलावट है। मावे को उंगलियों पर मसल कर भी देख सकते हैं अगर वह दानेदार है, तो यह मिलावटी मावा हो सकता है।

      इतना ही नहीं, रंग-बिरंगी मिठाइयों में इस्तेमाल होने वाले सस्ते घटिया रंगों से भी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। अमूमन मिठाइयों में कृत्रिम रंग मिलाए जाते हैं। जलेबी में कृत्रिम पीला रंग मिलाया जाता है, जो नुक़सानदेह है।

      मिठाइयों को आकर्षक दिखाने वाले चांदी के वरक़ की जगह एल्यूमीनियम फॉइल से बने वर्क़ इस्तेमाल लिए जाते हैं। इसी तरह केसर की जगह भुट्टे के रंगे रेशों से मिठाइयों को सजाया जाता है।

      चिकित्सकों का कहना है कि मिलावटी मिठाइयां सेहत के लिए बेहद नुक़सानदेह हैं। इनसे पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। फ़ूड प्वाइज़निंग का ख़तरा भी बना रहता है। लंबे अरसे तक खाये जाने पर किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ सकता है। आंखों की रौशनी पर भी बुरा असर पड़ सकता है। बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास अवरुद्ध हो सकता है।

      adulterated sweets nalanda 5

      घटिया सिल्वर फॉएल में एल्यूमीनियम की मात्रा ज़्यादा होती है, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के ऊतकों और कोशिकाओं को नुक़सान हो सकता है। दिमाग़ पर भी असर पड़ता है। ये हड्डियों तक की कोशिकाओं को डैमेज कर सकता है। मिठाइयों को पकाने के लिए घटिया क़िस्म के तेल का इस्तेमाल किया जाता है, जो सेहत के लिए ठीक नहीं है।

      सिंथेटिक दूध में शामिल यूरिया, कास्टिक सोडा और डिटर्जेंट आहार नलिका में अल्सर पैदा करते हैं और किडनी को नुक़सान पहुंचाते हैं। मिलावटी मिठाइयों में फॉर्मेलिन, कृत्रिम रंगों और घटिया सिल्वर फॉएल से लीवर, किडनी, कैंसर, अस्थमैटिक अटैक, हृदय रोग जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं।

      इनका सबसे ज़्यादा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है। सूखे मेवों पर लगा एसिड भी सेहत के लिए बहुत ही ख़तरनाक है। इससे कैंसर जैसी बीमारी हो सकती है और लीवर, किडनी पर बुरा असर पड़ सकता है।

      हालांकि देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिए कई क़ानून बनाए गए, लेकिन मिलावटख़ोरी में कमी नहीं आई। खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए खाद्य संरक्षा और मानक क़ानून-2006 लागू किया गया है।

      इस क़ानून में खाद्य पदार्थों से जुड़े अपराधों को श्रेणियों में बांटा गया है और इन्हीं श्रेणियों के हिसाब से सज़ा भी तय की गई है। पहली श्रेणी में जुर्माने का प्रावधान है। निम्न स्तर, मिलावटी, नक़ली माल की बिक्री, भ्रामक विज्ञापन के मामले में संबंधित प्राधिकारी 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगा सकते हैं।

      adulterated sweets nalanda 2

      इसके लिए अदालत में मामला ले जाने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी श्रेणी में जुर्माने और क़ैद का प्रावधान है। इन मामलों का फ़ैसला अदालत में होगा। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से अगर किसी की मौत हो जाती है, तो उम्रक़ैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी हो सकता है। पंजीकरण या लाइसेंस नहीं लेने पर भी जुर्माने का प्रावधान है।

      दिवाली पर मिठाई की मांग ज़्यादा होती है और इसके मुक़ाबले आपूर्ति कम होती है। मिलावटख़ोर मांग और आपूर्ति के इस फ़र्क़ का फ़ायदा उठाते हुए बाज़ार में मिलावटी सामग्री से बनी मिठाइयां बेचने लगते हैं।

      इससे उन्हें तो ख़ासी आमदनी होती है, लेकिन ख़ामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग द्वारा छापेमारी कर और नमूने लेकर ख़ानापूर्ति कर ली जाती है। फिर कुछ दिन बाद मामला रफ़ा-दफ़ा हो जाता है।

      चंडी प्रखंड में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का ही नतीजा है कि मिठाई दुकानदारों की मिलावट खोरी का धंधा खूब चल रहा है। उनकी चांदी कट रही है।

      संबंधित खबर

      error: Content is protected !!