देश

नालंदाः सबालों के घेरे में पत्रकारिता और पत्रकार संगठन

हमारे एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क के वरीय संपादन सहयोगी  पत्रकार जयप्रकाश नवीन पिछले दो दशक से सक्रीय लेखन के साथ आंचलिक पत्रकारिता से भी जुड़े रहे  हैं। राज्य से लेकर जिला, अनुमंडल व प्रखंड के गठित पत्रकार संगठनों के गवाह भी रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नालंदा की मीडिया से जुड़े अतीत के साथ वर्तमान की बड़ी सटीकता से विश्लेषण किया है…..

” जिस दिन हमारी आत्मा इतनी निर्बल हो जाय कि अपने प्यारे आदर्श से डिग जाएँ, जान-बूझकर असत्य के पक्षपाती बनें और उदारता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता को छोड़ देने की भीरूता दिखाएँ, वह दिन हमारे जीवन का सबसे अभागा दिन होगा और हम चाहते हैं कि हमारी उस नैतिक मृत्यु के साथ ही साथ हमारे जीवन का अंत हो जाए।”

media 3जीवन मूल्यों के लिए आजीवन संघर्षरत स्व. गणेश शंकर विधार्थी ने 9 नवम्बर 1913 को अपने समाचार पत्र “प्रताप” में पहले दिन  संपादकीय  का उपसंहार करते हुए उक्त टिप्पणी लिखी थी ।

लेकिन आज पत्रकारिता और पत्रकार संगठनों का स्वरूप बदल गया है। गणेश शंकर विधार्थी जैसे पत्रकार का अभाव दिखता है। समय के साथ पत्रकारिता विस्तृत हुई है पर कहीं कही विकृति भी छा गई है।

पत्रकारिता में आदर्श और यथार्थ का सुभग समन्वय होता है।वास्तव में पत्रकारिता एक पवित्र पेशा है। पत्रकार की लेखनी ‘ सत्यं शिवम् सुन्दरम्’ से बंधी होती है।उसकी  लेखनी बहकती है तो समाज विपथगामी होता है।

आज पत्रकार विवादास्पद हो चला है। वाचाल, विदूषक, चारण, चवर्ण, पटू, चंगू -मंगू , पतरकार, गोदी मीडिया आदि संज्ञाओ से जाना जाता है। वास्तव में कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं, जो आदर्शों को ताक पर रखकर अपनी अंतरात्मा का गला घोंटकर पत्रकारिता को द्रौपदी की भांति दांव पर लगाने में उधत हैं।

पत्रकार अब ‘युग चरण’ न बनकर ‘युग चारण’ बन रहे हैं और ‘युग चवर्ण’ कर रहे हैं। युग चारण पत्रकार विवेक को अलग रखकर स्तुति- निंदा के पाश में बंधकर दिग्दर्शन की जगह दिग्भ्रांति फैलाते हैं। इनका ध्येय येनकेन प्रकारेण अर्थप्राप्ति या स्वार्थ लोलुपता मात्र है । कुछ यहीं हाल पत्रकार संगठनों का रहा है। अवसरवादिता पत्रकारों  और संगठनों की गरिमा समाप्त कर देती है।media 2

कहने को तो पत्रकारों की रक्षा के लिए कई पत्रकार संगठन व क्लब बनते हैं और  बिखरते रहे है। लेकिन जब भी पत्रकारों के ऊपर कोई हमला या सोची समझी रणनीति के तहत दाग लगता है तो पत्रकार संगठन व क्लब रहस्यमय ढंग से चुप्पी साध लेते हैं और उनका कुछ अता-पता नहीं चल पाता।

आज पत्रकारों के बीच में जिस तरह से आपसी टकराव व द्वेष भावना देखने को मिल रही है, उसी का परिणाम है कि राजनेता व शासन तथा पुलिस के अफसर कुछ पत्रकारों को अपनी टोली में शामिल कर अपने विरोधी पत्रकारों को निशाने पर लेने से पीछे नहीं हटते हैं। जिसके चलते आज  की मीडिया में एक बडा बिखराव देखने को मिल रहा है।

कहने को तो समूची मीडिया अपने आपको एक होना दर्शाती है। लेकिन जब भी किसी छोटे समूह के पत्रकार पर हमला या उसे घेरने के लिए कोई चक्रव्यूह रचा जाता है तो उसके बाद एकजुटता का ढोल पीटने वाले दर्जनों पत्रकार उसकी रक्षा के लिए आगे आने का दम ही नहीं दिखा पाते हैं। जिसके चलते दर्जनों बार पत्रकारों के खिलाफ एक सोची समझी चाल के तहत उनकी घेराबंदी कर उन्हें खामोश करने का प्रयास किया जाता रहा है।

राज्य, जिला तथा अनुमंडलों में पत्रकारों की हितों की रक्षा का डंका पीटने वाले दर्जनों बडे समूह के पत्रकार सिर्फ अपनी ऊँची पैठ बनाने के लिए कभी भी किसी छोटे समूह के पत्रकार के साथ खडे हुए दिखाई नहीं देते हैं।

यह पत्रकारों के क्लब अब सिर्फ मौज मस्ती के क्लब ही बनकर रह गये हैं।  कुछ पत्रकार ऐसे क्लबों, संघों तथा संगठनों  के सहारे अपने हित साधने के लिए आगे आ जाते हैं।

mediaकोई पत्रकार सरकार व शासन के खिलाफ अपनी कलम की आवाज को कुंद करने के लिए उसका ठेका अपने किसी परिजन को संविदा या सरकारी नौकरी पर लगवाने के लिए ले लेता है और कुछ पत्रकार चंद राजनेताओं के हमजोली बनकर उनके सारे काले कारनामों को छिपाने के लिए अपने ही उन मीडिया के साथियों को घेर लेते हैं जो कि सच्चाई का आईना दिखाने के लिए आवाम को आगे आने का दम रखते हैं।

जब कोई संगठन खड़ा होता है तो बड़ी -बड़ी बातें की जाती है। लेकिन कुछ महीने के बाद ही संगठन निष्क्रिय होने लगता है। संगठन के बड़े पदाधिकारियों में मठाधीशी का अहं आ जाता है। नतीजा पत्रकार संगठनों में बिखराव ।पत्रकारों की एकता फुस्स हो जाती है।

नालंदा के हिलसा में तीन महीने पूर्व बनें सबडिबिजन पत्रकार संघ का भी यही हश्र हो रहा है। गठन के समय बड़ी बड़ी बातें की गई। लेकिन मामूली समस्या को लेकर अंचल के पत्रकारों की अवहेलना शुरू कर दी गई।

यहाँ तक कि उक्त पत्रकार संगठन पदाधिकारी की गोद में जा बैठी। जिसके परिणाम स्वरूप अलग और स्वतंत्र विचारधारा के पत्रकारों ने इस संगठन से अपने आप को अलग कर लिया। ऐसे संगठन, संघ और क्लब पर आधिपत्य जमाकर कुछ लोग अपना उल्लू साधना चाहते हैं।

पत्रकारों और संगठनों में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं कि…..

अब तो दरवाजे से अपने नाम की तख्ती उतार, लफ्ज नंगे हो गए, शोहरत भी गाली हो गई “

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!
Ashoka Pillar of Vaishali, A symbol of Bihar’s glory Hot pose of actress Kangana Ranaut The beautiful historical Golghar of Patna These 5 science museums must be shown to children once

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker