“बुनियादि सुविधाओं से महरुम तेलमर उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक एवं अन्य शिक्षकों ने उत्पन्न समस्याओं की बाबत प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, जिला पदाधिकारी, स्थानीय विधायक, सांसद से लेकर सीधे मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा, वही पुराने ढाक के तीन पात।”
विकास को ऐसे शर्मशार कर देने वाली तस्वीर नालंदा जिले के हरनौत प्रखंड के उच्च विद्यालय तेलमर से जुड़ी सामने आई है, जहां स्कूली बच्चे-बच्चियां सड़क या वैकल्पिक मार्ग के आभाव में धान के खेतों की पगदंडियों के सहारे गिरते-पछड़ते आ जा रहे हैं। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
इस स्कूल की यह त्रासदी ही है कि आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर टोटा है। विद्यालय में जाने के लिए रास्ता नहीं, छात्र-छात्राओं के पठन-पाठन के लिए भवन भी जर्जर, बच्चों के लिए न शौचालय, न ही पेयजल का समुचित व्यवस्था।
छात्र-छात्राओं को विद्यालय जाने के लिए रास्ते के अभाव में खेत की पगडंडियों से होकर लंबी दूरी तय कर विद्यालय पहुंचते हैं। जिस रास्ते से बच्चे स्कूल पहुंचते हैं, वह रास्ता भी आम रास्ता नहीं है।
अगर खेत मालिक चारों ओर से घेराबंदी कर दे तो बच्चों के साथ गुरुजनों को भी आवागमन के लिए सोचना पड़ेगा। विद्यालय में शौचालय की व्यवस्था नही होने से सबसे ज्यादा परेशानी छात्राओं व शिक्षिकाओं को हो रही है। पेयजल की समुचित व्यवस्था नही होने से छात्र-छात्राओं से लेकर शिक्षक तक लंबी दूरी तय कर गांव से पानी लाना पड़ता है।
बहरहाल इस समचार के साथ संलग्न तस्वीरों को गौर से देखिये और खुद आंकलन कीजिये कि विकास के ढिंढोंरे बाजों की असलियत क्या है। साथ में उन अनुरोध पत्रों को भी पढ़िये और अनुभव कीजिये कि अफसर से जनप्रतिनिधि तक थेथर कितने है।