” केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार गाँवों के उत्थान के लिए चाहे कितनी भी कल्याणकारी योजनाओं चलाने का दावा कर ले लेकिन, ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही वयां करती है।”
केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक लगातार गाँवों के उत्थान के लिए चाहे कितनी भी कल्याणकारी योजनाओं चलाने का दावा कर ले लेकिन, ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही वयां करती है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां के दलितों का जीवन दूभर नजर आता है।
बताते चलें कि मैरा बरीठ पंचायत को खुले में शौच मुक्त करने के लिए कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। जबकि गांव के ऐसी दयनीय हालात है, जहाँ महादलितों के नाली का पानी निकलना मुश्किल है तो शेष पंचायत के दलित टोले के बारे में क्या कहना।
ग्रामीण प्रतिमा देवी, दुल्ली देवी, अनुज माँझी, किसन माँझी, सुरेश रविदास, डोमन रविदास, राजाराम माँझी, सुन्दर राजवंशी सहित दर्जनों ग्रामीणों ने बताया कि इस दलित टोले की आबादी करीव पांच सौ है। फिर भी इस टोले में विकास कुछ नही हुआ है।
यहाँ न तो मुख्य मार्ग से आने के लिए न कोई पगडंडी है और न ही इस टोले में नाली है। और न ही पक्की गली। सब कच्चा है, जो गर्मी के दिनों में भी कीचड़ युक्त रहता है। बारिश के मौसम में गली में एक दो फिट नाली का गंदा पानी जमा हो जाता है।
ग्रामीणों ने बताया कि जब भी चुनाव आता है, विभिन्न पार्टी से जुड़े नेता लोग पहुँच कर गांव व टोला के विकास का भरोसा दे वोट ले कर चले जाते है औऱ जब विजयी हो जाते है तो पांच वर्ष मुड़ कर इस गांव की एक झलक देखने तक नही आते। अपना विकास दिन दूनी-रात चौगनी की, लेकिन गांव टोला जवार के लोग आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं।
टोले गांव के उत्थान के लिए आज न तो इस ओर कोई ध्यान किसी जनप्रतिनिधियों के हैं और न ही प्रशासनिक पदाधिकारियों के। सब समस्या से अवगत होने के बावजूद कुम्भकर्ण के निंद्रा में है।