एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (मुकेश भारतीय)। नालंदा जिले के राजगीर स्थित गर्म कुंड परिसर से सटे अवैध दुकानों में रविवार की रात भीषण आगलगी की घटना हुई। इस घटना में कुल 52 चिन्हित लोगों की दुकानें जल कर पूरी तरह राख हो गई। इसमें कईयों ने अपना सपरिवार निवास स्थान बना रखा था।
विश्वसनीय प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष एवं आश्वस्त-गोपनीय सूत्रों के बीच हमारी पड़ताल में कई गंभीर पहलु उभर कर सामने आये हैं। इसमें आग के कारणों के बारे सें जो सूचनाएं मिली है, वे दिमाग सन्न कर देने वाले हैं।
कहते हैं कि 10 फरवरी की रात बीच की एक दुकान अचानक आग का गुब्बार बन उठा और देखते ही देखते आस-पास की सारी दुकानें स्वाहा हो गई। किसी भी कथित फुटपाथी झुग्गी-झोपड़ी सरीखे दुकान में अगलगी के बाद ऐसे भयावह शोले कभी नहीं देखे गये।
इस अग्निकांड को लेकर लोग तरह-तरह की बातें बता रहे हैं। कोई बिजली की शॉट-सर्किट बता रहा है तो कोई ईश्वरीय प्रकोप बता रहा है।
कुछ लोग कहते हैं कि पहले वह रजौली संगत की ठकुरबाड़ी की जमीन थी, उन्हीं की कहर है तो कह रहा है कि बगल में हनुमान जी का मंदिर है, जिसकी दीवर के बगल में पेशाब आदि करते रहता था, इसलिये उनके दंड स्वरुप यह ‘अवैध लंका’ पल में धधक गई।
हालांकि, प्रारंभिक तौर पर आशंका जाहिर की गई थी कि कहीं कोई रसोई गैस का छोटा-बड़ा सिलेंडर के आग पकड़ने से सब कुछ हुआ हो। लेकिन पड़ताल के बाद उन अवैध दुकानों में एक बड़े गोरखधंधे किये जाने और उसी में चूक के बाद भयावह स्वरुप प्रकट होने की बात सामने आई है।
बताते हैं कि राजगीर स्थित गर्म कुंड परिसर से सटे अनेक अवैध कथित फुटपाथी दुकानों में नकली नेल पॉलिश (नाखून रंगने का रंग-पेंट) बनाने का रात अंधेरे कारोबार हो रहा था। जिसमें अति ज्वलनशील स्प्रीट का उपयोग किया जाता है। उस रात एक दुकान में नकली नेल पॉलिश बनाने के क्रम में ही अचानक आग लगी।
चूकि, राख हुये दलालों और प्रशासन की कृपा से अनाधिकृत बाजार में कई दुकानों में यह कारोबार होता रहा, इसलिये आग काफी तीव्रता से भभकता चला गया।
यहां कई दुकानों में छोटे-बड़े गैस सिलेंडर भी रखे थे। उसमें कई तेज आग की लपटों में ब्लास्ट भी हुये। जिसने आग को और भी भयावय कर दिया। शुक्र है कि इस घटना के समय मेला परिसर में घने लोग नहीं थे, अन्यथा भारी जान-माल का नुकसान हो सकता था।
राजगीर में हुई आगलगी के कारणों के बारे में खुले तौर पर कोई भी पीड़ित बताने को तैयार नहीं है। इसका कारण है कि वे अपने अवैध कारोबार की पोल खुद कैसे खोल सकते हैं। लेकिन गेंहू के साथ पीसने वाले वेवश घुन बने दुकानदार सब कुछ दबी जुबान स्वीकार करते हैं।
बहरहाल सबाल है कि राजगीर पुलिस-प्रशासन या उसके प्रति पूर्णतः लापरवाह दिख रहे जिला प्रशासन फुटपाथी दुकानदार, अवैध बाजार और उसमें हो रहे कारोबार को अब किस रुप में देखती है। इस तरह के बाजार से वसूली करने वालों पर क्या कार्रवाई करने का क्या मादा रखती है।
अभी भी सरकारी रहनुमाओं का नजरिया नहीं बदला तो दलालो-बिचौलियों की आग में ऐसे अग्निकांड होते रहेंगे। उस पर भविष्य में अंकुश लगने की बात कोरी कल्पना से इतर नहीं होगी।